यह एक नया मंत्रालय है और ग्रीन ऊर्जा पाने के उद्देश्य से इसका गठन किया गया था। इसकी नजर वर्तमान पर ही नहीं, भविष्य पर भी है। यह मनमोहन सरकार का सबसे छोटा मंत्रालय है। इस मंत्रालय में स्टाफ भी बहुत कम हैं। इसमें एक सचिव, एम अतिरिक्त सचिव, दो संयुक्त सचिव और दो वैज्ञानिक हैं।

फारूक अब्दुल्ला बात नहीं, बल्कि काम करने में विश्वास करते हैं। वे ज्यादा पब्सिसीटी के चक्कर में भी नहीं रहते और अपने काम को चुपचाप करते जा रहे हैं। इस बीच उन्होंने भारत को दुनिया का पवन ऊर्जा उत्पादन करने वाला पांचवां सबसे बड़ा देश बना दिया है। इस स्रोत के द्वारा दुनिया भर में 200 गीगा वाट तक बिजली का उत्पादन किया जा रहा है। चीन सबसे आगे है। वहां 50 हजार मेगावाट बिजली का उत्पादन इसी स्रोत से हो रहा है। अमेरिका, जर्मनी और स्पेन क्रमशः दूसरे, तीसरे और चैथे स्थान पर है। भारत ने इस स्रोत से बिजली उत्पादन की शुरूआत 1999 में की और 2009 में तेजी प्राप्त की। उस समय फारूक अब्दुल्ला सरकार के गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोत के मंत्री बन गए थे। उन्होंने इस क्षेत्र में तेजी से चलने का फैसला किया। भारत की शुरुआती सफलता में सुजलान नाम की एक कंपनी का भी हाथ था। तुलसी तांती की यह कंपनी विश्व स्तर की पवन टरबाइन बनाती है।

पिछले एक सप्ताह में सुजलान विश्व स्तर पर अपनी धाक जमा चुका है। दुनिया भर में पवन टरबाइन के बाजार के 7 दशमलव 7 प्रतिशत पर 2006 में ही इसने कब्जा कर लिया था। इस समय यह भारत का सबसे बड़ा पवन टरबाइन उत्पादक है और देश में इस उत्पाद में इसका 43 फीसदी हिस्सा है।

सौर ऊर्जा में भी भारत ने सफलता हासिल की है। यह देश के अनेक राज्यांे में सफलता पा रही है। केरल से लेकर राजस्थान और पूर्वाेत्तर के दूर दराज इलाकों में भी सौर ऊर्जा से बिजजी उत्पादन के लिए काम किए जा रहे हैं। फारूक अब्दुल्ला का कहना है कि सौर ऊर्जा ही दुनिया का ऊर्जा भविष्य है।

उत्तर प्रदेश के अनेक जिलों मंे भी सोलर ग्रिड हैं। छत्तीसगढ़ में भी सोलर ऊर्जा से उत्पादित बिजली से अंधेरा दूर किया जा रहा है।

बायोगैस से भी बिजली बनाई जा रही है। इससे गन्ने को क्रश करने का काम किया जा रहा है। यानी चीनी के मिलों में बायोगैस का इस्तेमाल हो हरा है। ग्रामीण इलाकों में इगवर्नेंस के लिए बिजली के ये स्रोत बहुत ही काम के साबित होंगे। (संवाद)