मार्च तक कांग्रेस के संगठनात्मक चुनाव भी होने हैं। सोनिया गांधी एक बार फिर कांग्रेस की अध्यक्ष के रूप में चुन ली जाएंगी। राहुल गांधी की उस चुनाव के बाद पार्टी में क्या भूमिका होगी, यह देखना दिलचस्प होगा। फिलहाल उन्होंने अपने आपको युवा कांग्रेस और पार्टी की छात्र इकाई तक ही सीमित कर रखा है। सवाल उठता है कि क्या वे पार्टी के मुख्य संगठन का काम देखंेगे या नहीं।

केन्द्र की यूपीए सरकार के लिए भी यह साल चुनौतियों भरा है। उसकी सबसे बड़ी राजनैतिक चुनौती तेलंगना का मसला है। केन्द्र सरकार ने अलग तेलंगना राज्य के गठन की घोषणा तो कर दी है, लेकिन उस घोषणा पर अमल उसके लिए कठिन साबित हो रहा है। तेलंगना के गठन की केन्द्र से सहमति के बाद अनेक नये राज्यों के गठन की मांग भी आ खड़ी हुई है। छोटे राज्यों के लिए देश के अनेक हिस्सों मंे आंदोलन होंगे और केन्द्र सरकार को उन आंदोलनों से निपटना होगा।

राष्ट्रमंडल खेलों का सफल आयोजन भी केन्द्र सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है। इसकी तैयारी समय से नहीं चल रही है और सबकुछ समय पर निपटने को लेकर संदेह पैदा हो गया है। सफल आयोजन के साथ साथ अपने खिलाड़ियों का बेहतर प्रदर्शन भी एक बड़ी चुनौती है।

इस साल अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा भी हो रही है। उनकी इस यात्रा से दोनों देशों के संबंध कौन का रूप लेंगे, यह देखना दिलचस्प होगा। भारत की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल इस साल चीन की यात्रा करेंगी। उनकी यह यात्रा भी काफी मायने रखेगी, क्योंकि दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव की पृष्ठ भूमि में उनकी यह यात्रा हो रही है।

मुख्य विपक्षी भारतीय जनता पार्टी के लिए भी यह साल काफी महत्वपूर्ण साबित होने वाला है। भाजपा का नियंत्रण नई पीढ़ी के हाथ में आने का यह वर्ष है। नीतीन गडकरी पाटीै के अध्यक्ष बन गए हैं। उन्हें पार्टी के अन्दर अपनी पकड़ मजबूत करनी होगी और अपनी पार्टी को हताशा की वर्तमान हालत से खींचकर आगे ले जाना है। बिहार भाजपा के लिए भी एक बड़ी चुनौती साबित होने वाला है।

वाममार्चे के लिए भी यह साल कठिन साबित होने वाला है। 2009 में उसने बहुत कुछ खोया है। खासकर सीपीएम को तो इस बात के लिए मलाल होगा कि पश्चिम बंगाल और केरल दोनों राज्यों में उसने पराजय का सामना किया है। पश्चिम बंगाल की राजनैतिक जमीन उसके पैरों के नीचे से खिसक चुकी है। उसे एक के बाद एक तृणमूल कांग्रेस के हाथों पराजय का सामना करना पड़ रहा हैं। 2011 में राज्य विधानसभा के चुनाव होने हैं और उस चुनाव में उसे अपनी पराजय दिखाई पड़ रही है। सीपीएम को इसी साल यह तय करना होगा कि उसे अगला चुनाव बुद्धदेव भट्टाचार्य के नेतृत्व में लड़ना है कि किसी और के नेत्त्व में। (संवाद)