वाममोर्चे का नेतृत्व करने वाली सीपीएम में ही विभाजन दिखाई पड़ रहा है। यह विभाजन दो स्तरों पर दिखाई पड़ रहा है। पिछले दिनों 12 नगर निकायों के चुनाव हुए। उनमें सीपीमए की करारी हार हुई। उस हार के लिए पार्टी में पैदा विभाजन भी जिम्मेदार था। विभाजन का दूसरा उदाहरण पार्टी के आंदोलन के कार्यक्रमों को लेकर दिखाई पड़ रहा है।

सीपीएम की दुर्गति का पता इसीसे लगाया जा सकता है कि नाडिया और वर्दमान के दो जिलों मंे तो चुनाव प्रचार के दौरान ही उसके नेता भाग खड़े हुए और वे तृणमूल कांग्रेस के आतंक का हवाला देते रहे। इससे पता चलता है कि सीपीएम में कितना भ्रम फैला हुआ है। इतना ही नहीं, प्रदेश के पार्टी सचिव बिमान बोस ने दोनों जिलों की ईकाइयों द्वारा चुनाव के बहिष्कार का समर्थन कर दिया। पर पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने पार्टी द्वारा चुनाव से भागने की आलोचना कर दी। उनका कहा है कि पार्टी जीते या हारे, लेकिन उसे अंत अंत तक लड़ना चाहिए था। दोनों नेताओं ने अपने अपने विचार सार्वजनिक कर दिए हैं और इस तरह पार्टी के अंदर का विभाजन सामने आ गया है।

पार्टी की स्थिति को खराब करते हुए टीवी चैनलों ने चुनाव प्रचार और चुनाव के दौरान हिंसा की कुछ खबरें तो प्रसारित की और फुटेज भी दिखाई, लेकिन ऐसा कुछ नहीं दिखाया जिससे लगता हो कि तृणमूल समर्थकों ने आतंक फैला रखा था। इसके कारण सीपीएम का यह आरोप गलत साबित होता है कि कोई आतंक जैसा माहौल बना हुआ था। जाहिर है सीपीएम के दो जिलों से पलायन करने का कारण तृणमूल का आतंक नहीं था, बल्कि हार की आशंका थी।

इस तरह चुनाव के भागने से सीपीएम के बारे में बहुत ही गलत संदेश लोगों के बीच में गया है। इससे आम लोगों के बीच ही नहीं, बल्कि सीपीएम के कार्यकत्ताओ और समर्थकों के बीच भी बहुत ही खराब संदेश गया है और वे अपने आपको हताश महसूस कर रहे हैं। सच कहा जाय, ता उनमें हताशा का दौर तो पहले से ही चल रहा है, चुनाव से भागने की इस घटना के बाद उनकी हताशा और भी बढ़ती जा रही है।

सीपीएम के एक राज्य कमिटी के सदस्य ने पार्टी के एक कार्यकत्र्ता के साथ अपनी बातचीत में यह स्वीकार किया कि पिछले दो सालों से पार्टी ने अपनी स्थिति में सुधार के लिए कुछ नहीं किया और उसका परिणाम है कि स्थानीय निकायों के चुनावों के ये खराब परिणाम दिखने को मिल रहे हैं।

शारधा घोटाले को मीडिया में जबर्दस्त कवरेज मिल रहा है। यह एक बहुत बड़ा घोटाला है जिससे पश्चिम बंगाल की आबादी का एक बड़ा हिस्सा प्रभावित हुआ है। लाखों परिवारों को इससे झटका लगा है। इस घोटोले के सामने आने के बाद कम से कम 30 लोगों ने आत्महत्या भी की है। इसका फायदा सीपीएम सहित अन्य विपक्षी पार्टियों को मिल सकता है। घोटालेबाजों के कुछ तृणमूल नेताओं के साथ संबंध स्थापित भी हो चुके हैं, लेकिन इस सबके बावजूद सीपीएम तृणमूल कांग्रेस को जनता के बीच कमजोर करने में सफल नहीं हो रही है।

आखिर वह सफल हो, तो कैसे हो? इसके खिलाफ वह आंदोलन तक नहीं चला पा रही है। जहां तहां कुछ दिखावे के लिए इस घोटाले के खिलाफ सीपीएम ने कुछ प्रदर्शन किए हैं। सच कहा जाय तो वाम दलों ने इस मसले पर कोई बड़ा आंदोलन चलाया ही नहीं है।

यह निश्चय ही अचरज की बात है कि जब तृणमूल कांग्रेस के नेता लोगों के बीच और मीडिया में शारधा घोटाले के लिए जिम्मेदार बताए जा रहे थे और उनकी थू थू हो रही थी, तब भी वामपंथी दल उनके खिलाफ कोई आंदोलन नहीं चला पाए। जाहिर है, वाम दल अभी भी लकवाग्रस्तता के दौर से गुजर रहे हैं। (संवाद)