बुधवार, 16 अगस्त 2006
असली देशप्रेमियों की जान पर आफत
नकली वाहवाही भी लूटते हैं और सरकारी खजाना भी
ज्ञान पाठक
समय - स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या। अवसर - भारत के राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम द्वारा देश के कुछ विशेष लोगों के लिए एक प्रीतिभोज का आयोजन। इस अवसर पर एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन। आकाशवाणी के कलाकारों द्वारा कारगिल के जवानों पर स्वयं श्री कलाम की लिखी कविता का हिंदी में गायन। देशप्रेम का ऐसा माहौल कि कोई भी देशभक्त रोमांचित हो उठे।
जान की बाजी लगाकर कारगिल के युद्ध में जिन जवानों ने देश की रक्षा की उनके प्रति भारत के जनमानस में श्रद्धा का उमड़ना स्वाभाविक है। लेकिन उस अवसर पर जो चेहरे वहां उपस्थित थे उनमें से कई वैसे थे जो यह याद दिला देते हैं कि किस तरह कारगिल युद्ध के दौरान जब हमारे जवान सीमा पर अपनी जान की बाजी लगाकर हमारी रक्षा कर रहे थे उस समय उनके बहाने सरकारी खजाना भी लूटा जा रहा था; उसके बाद भी देशभक्ति का बढ़चढ़कर दिखावा करते हुए, ऐसा दिखावा कि उनके आगे असली देशभक्तों का वही हाल होता है जो सूर्य के उदित होने पर तारों का होता है, लूट जारी रही थी; और फिर आज तक दोषियों को बचाया जा रहा है।
ऐसा याद इसलिए भी आता है क्योंकि 14 अगस्त को ही कारगिल के नाम पर हुए घोटालों मे से एक के संबंध में खबर आयी थी। सर्वोच्च न्यायालय ने रक्षा मंत्रालय और केन्द्रीय जांच ब्यूरो (सी बी आई) समेत सरकार की जमकर खिंचाई की थी।
संक्षेप में कहानी कुछ यूं है। वर्ष 1999 में जब कारगिल युद्ध हो रहा था उस समय सेना के जवानों के लिए जल्दबाजी में अनेक साजो सामान खरीदने की जरुरत आन पड़ी थी। उसके लिए रक्षा सौदों के नियमों में अनेक ढील दिये गये थे। उस समय अनेक तरह के रक्षा सौदे और घपले हुए जिनकी खबरें बाद में आयीं भी।
लेकिन तत्कालीन भाजपा नेतृत्व वाली राजग सरकार ने उपकरणों, हथियारों और गोला-बारूद की खरीद पर प्रक्रियाओं में आपातकालीन स्थिति में जो ढील दी थी उन्हें युद्ध की समाप्ति पर भी जारी रखा गया जो अनेक बड़े अधिकारियों और नेताओं के कमाई का जरिया बना रहा। वे सबसे बड़े देशप्रेमी होने का ढोंग करते रहे और सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचाते रहे।
बाद में भारत के महालेखापरीक्षक और नियंत्रक (कैग) ने जांच के दौरान पाया कि उस क्रम में भारत के राजकोष को 2175 करोड़ रुपये का चूना लगाया गया। कैग ने अपनी रपट 2001 में ही दे दी थी और उस रपट को भारत की संसद के पटल पर रख दिया गया था।
उसके बाद इस मामले में भी वही हुआ जो वैसे अधिकांश मामलों में होता है, विशेषकर उन मामलों में जिनमें आरोप बड़े अधिकारियों और नेताओं पर होते हैं। बचने-बचाने का खेल शुरू हुआ जो अबतक जारी है।
ऐसे हालात से निराशा के कारण सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा एक जनहित याचिका के माध्यम से खटखटाया गया। इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय पीठ ने रक्षा सौदों में अनियमितता बरतने और गैरकानूनी हथकंडे अपनाने वालों के खिलाफ कार्रवाई की पहल शुरु न करने और कारगिल घोटालों की जांच मंथर गति से करने पर रक्षा मंत्रालय को खूब फटकारा।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति वाई के सभरवाल, न्यायमूर्ति सी के ठक्कर और न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू की इस पीठ ने जिस ढंग से सरकार इन मामलों की जांच कर रही है उसे गलत बताया। उन्हें सी बी आई को आदेश देना पड़ा कि वह कारगिल युद्ध के दौरान और उसके बाद के रक्षा सौदों में हुए घपलों की जांच की अब तक की प्रगति की रपट अदालत में पेश करे।
अदालत में सरकार की ओर से जो बात कही गयी वह किसी भी भारतीय दिल वाले व्यक्ति को नागवार लगेगी।
उदाहरण के लिए, सरकार की ओर से महाधिवक्ता ने अदालत को बताया कि सी बी आई को कारगिल घपलों से संबद्ध 25 मामले भेजे गये थे। सी बी आई ने उनमें से 13 मामलों को पर्याप्त तथ्य न होने के आधार पर लौटा दिया। शेष 12 मामलों में से एक में प्राथमिकी दर्ज की गयी है। उन्होंने अदालत को बताया कि सरकार दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का इरादा रखती है और इस संबंध में मार्च (2006) में सरकार की ओर से अदालत में एक शपथनामा भी जमा किया गया है।
याचिकादाता का आरोप था कि सरकार कारगिल घपलों को रफा-दफा करने में लगी हुई है।
अदालत ने टिप्पणी की कि दो वर्षों से इस मामले के अदालत में रहने के बावजूद प्रक्रिया मंथर गति से आगे बढ़ रही है। क्या कैग रपट के आधार पर कार्रवाई करना रक्षा मंत्रालय का काम नहीं था? क्या उस रपट में पर्याप्त दम नहीं था? आपको सी बी आई से एक और जांच करवाने की जरुरत ही क्या थी? जिस ढंग से सी बी आई जांच कर रही है उसमें तो वर्षों लगेंगे। सी बी आई तो इसी ढंग से काम करती है।
विलम्ब पर अदालत की टिप्पणी थी, “यह मामला देश की रक्षा के सौदों से संबद्ध है। इसे गंभीरता से लेने की आवश्यकता है क्योंकि अधिकारियों ने अपने कर्तव्यों की अवहेलना की है। उनके खिलाफ कार्रवाई न कर आप उन्हें परोक्ष मदद पहुंचा रहे हैं।”
देशप्रेमियों के असली और नकली चेहरों का खुलासा और क्या हो सकता है! कुछ लोगों के लिए देशप्रेम राजनीति है, देशद्रोह का कवच है, मनोरंजन है और वे आगे-आगे भी रह लेते हैं, लेकिन अनगिनत अनाम देशभक्तों की दुर्दशा को देखने वाले नहीं दिखते। क्या राष्ट्रपति भवन में देशभक्ति की कविता सुनने वाले कुछ करेंगे? #
ज्ञान पाठक के अभिलेखागार से
असली देशप्रेमियों की जान पर
System Administrator - 2007-10-20 05:43
समय - स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या। अवसर - भारत के राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल कलाम द्वारा देश के कुछ विशेष लोगों के लिए एक प्रीतिभोज का आयोजन। इस अवसर पर एक सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन। आकाशवाणी के कलाकारों द्वारा कारगिल के जवानों पर स्वयं श्री कलाम की लिखी कविता का हिंदी में गायन। देशप्रेम का ऐसा माहौल कि कोई भी देशभक्त रोमांचित हो उठे।