पर लालू के जेल जाने और चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिए जाने के बाद मुसलमानों के पास नीतीश के पाले में जाने के सभी कारण मौजूद थे। बिहार में आज तीन ही राजनैतिक ताकत है. लालू, नीतीश और भाजपा। लालू की राजनीति पर ग्रहण लगने के बाद मुसलमानों के पास सिर्फ एक ही विकल्प रह गया है और वह है नीतीश कुमार का दल, जो कांग्रेस के साथ समझौता कर मुस्लिम समर्थन को और भी पुख्ता कर सकती है। इसलिए तर्क तो यही कहता है कि लालू के पतन पर नीतीश खेमे में जश्न होना चाहिए था। नीतीश की पार्टी के लोग और समर्थक लगभग हर चुनावों में चारा घोटाले और उसमें लालू के शामिल होने को चुनावी मुद्दा बनाते रहे है। लालू के खिलाफ हमल का सबसे बड़ा हथियार चारा घोटाला ही हुआ करता है। पर उस घौटाले में लालू के सजा पाने के बाद भी यदि नीतीश खेमे में जश्न के बदले मातम का माहौल बना हुआ है, तो इसका कारण नीतीश के उसमें खुद भी फंसने की आशंका है।

लालू के मुदकमे का फैसला आने के पहले ही नीतीश पर भी मुकदमा चलाने के लिए रांची के सीबीआई कोर्ट और हाई कोर्ट में पटीशनबाजी हो रही थी। नीतीश के एक बहुत पुराने साथी मिथिलेश कुमार सिंह इस पटीशनबाजी में लगे हुए थे और अदालत से मांग कर रहे थे कि उसके सामने नीतीश के भी इस घोटाले में शामिल होने और पैसा पाने के सबूत मौजूद हैं, तो सीबीआई अदालत को चाहिए कि वह सीबीआई को नीतीश के खिलाफ भी मुकदमा चलाने का आदेश दे।

चारा माफिया के प्रमुख श्याम बिहारी सिन्हा हुआ करते थे। उनके बयानों के आधार पर ही सीबीआई ने लालू व अन्य राजनैतिक नेताओं के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए थे। लेकिन जिस बयान के आधार पर मुकदमे दर्ज किए गए, उसमें नीतीश, शिवानद तिवारी और ललन सिंह को भी रुपये देने की स्वीक्ति है। दो अन्य आरोपियों ने भी अपने अलग बयानों में जो कहा है, उनसे सिन्हा के बयान की सच्चाई सामने आती है। इसलिए कायदे से तो 1997 में ही सीबीआई को लालू के साथ नीतीश कुमार को भी मुकदमे में नामजद किया जाना था। सिन्हा के अनुसार उन्होंने 1995 में नीतीश को एक करोड़ दिए थे। नीतीश ने उनसे पैसे की मांग की थी और वह पैसा सिन्हा ने अपनी माफिया कमिटी की बैठक से स्वीकृति मिलने के बाद दी थी। पैसे पाकर नीतीश ने सिन्हा को फोन करके उसकी प्राप्ति की भी पुष्टि की थी और अनुरोध किया था कि चारा माफिया उन्हें आगे भी इसी तरह सहयोग करता रहे। ये सब बातें 161 और 164 के तहत मजिस्ट्रेट को दिए गए बयान में कही गई हैं। जाहिर है, ये बयान अदालत में पुख्ता सबूत की तरह होते हैं। जिस समय नीतीश ने पैसे लिए, उस समय वे लोकसभा सांसद थे। जाहिर है, मामला भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत नीतीश के खिलाफ कार्रवाई का भी बनता है। लेकिन अज्ञात कारणों से सीबीआई ने उनके खिलाफ मुकदमा नहीं चलाया।

नीतीश पर मुकदमा चलाने की याचिका डालने वाले मिथिलेश कुमार सिंह नीतीश कुमार के पुराने साथी हैं। दोनों जयप्रकाश नारायण आंदोलन मे एक साथ थे। उसके बाद जनता पार्टी की सरकार के समय दोनो ंने एक साथ राजनीति की। दोनों एक दूसरे को अच्छी तरह जानते हैं। और वही मिथिलेश कुमार सिंह उनके पीछे हाथ धोकर पड़े हुए हैं। पहले उन्होंने रांची की सीबीआई अदालत को कहा कि वह नीतीश पर मुकदमा चलाने का आदेश जारी करे। बिना सुनवाई किए ही अदालत ने मना कर दिया। फिर मिथिलेश रांची हाई कोर्ट में पहुंचे। हाई कोर्ट ने उन्हें दुबारा सीबीआई अदालत की शरण में जाने को कहा और सीबीआई अदालत को आदेश दिया कि वह मिथिलेश की याचिका पर सुनवाई करने के बाद ही कोई फैसला। निचली अदालत ने सुनवाई की और फैसला दिया कि नीतीश के खिलाफ मुकदमे की इजाजत का मामला नहीं बनता। अब मिथिलेश एक बार फिर रांची हाई कोर्ट की अदालत में हैं, जहां उस मामले की सुनवाई हो रही है। सुनवाई की अगली तारीख 22 नवंबर है। उसके पहले सीबीआई को यह बताना पड़ेगा कि वह नीतीश के खिलाफ मुकदमा चलाना चाहता है या नहीं। यदि नहीं, तो इसका कारण भी उसे बताना पड़ेगा। सभी पक्षों की सुनने के बाद हाई कोर्ट यह निर्णय करेगा कि नीतीश पर मुकदमा चले या नहीं। यदि मुकदमा चलाने का आदेश आता है, तो फिर नीतीश की राजनीति भी प्रभावित होगी। उसके बाद लोकसभा चुनाव तक उन्हें अपने पद पर बना रहना मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि इस बीच उन्हें जेल भी जाना पड़ सकता है।

यह तो अदालत और जांच की बात हुई। राजनैतिक रूप से भी नीतीश की स्थिति कमजोर हो गई है। लालू यादव का राजद उनकी सजा के बाद यही सवाल खड़ा कर रहा है कि चारा घोटालेबाजों से पैसा लेने वाले नीतीश बाहर हैं और जिस लालू को उन घोटालेबाजों से चवन्नी तक नहीं मिली, वह जेल में हैं। खुद मिथिलेश कुमार सिंह का कहना है कि लालू को चारा माफिया ने चवन्नी तक नहीं दिया। जाहिर है, राजद के राजनैतिक अभियान के केन्द्र में अब नीतीश कुमार ही होंगे, जिनके बारे में कहा जाएगा कि पैसा उन्होंने खाया था।

नीतीश की स्थिति आज इतनी नाजुक है कि वे चारा माफिया से पैसा खाने के इलजाम पर लगभग चुप हैं। वे किसी प्रकार का बयान देकर नया विवाद खड़ा नहीं करना चाहते। पर उनके पुराने दोस्त मिथिलेश ने सुप्रीम कोर्ट में भी उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और उनके रेल मंत्री रहते हुए ट्रेन स्लीपर प्रोजेक्ट में हुए घोटाले की जांच की मांग कर रहे हैं। बहरहाल उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने पीआईमल दाखिल करने की अनुमति दे दी है। यदि सुप्रीम कोर्ट में मामला चला, तो नीतीश की हालत और भी नाजुक हो जाएगी। नीतीश के इन घोटालों मे ंशामिल होने के आरोपों ने बिहार की राजनीति में अनिश्चय का दौर शुरू कर दिया है। (संवाद)