इस साल की सबसे बड़ी घटना हमारे देश में लोकसभा चुनाव की होगी, जिसे मई महीने में संपन्न होना है। कुछ राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव भी होने हैं। जिन राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव होने हैं, उनमें महाराष्ट्र, हरियाणा, आंध्र प्रदेश और उ़ड़ीसा महत्वपूर्ण हैं। अभी यह कहना कठिन है कि लोकसभा चुनाव के बाद हमारे देश में भाजपा के नेतृत्व में सरकार बनेगी या कांग्रेस के नेतृत्व में या यह तीसरे मोर्चे की सरकार होगी।
यह साल अनेक राजनेताओं के लिए भी काफी महत्वपूर्ण होगा। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह खुद राजनीति से बाहर हो सकते हैं। पर सवाल उठता है कि शरद पवार का क्या होगा? वे कह रहे हैं कि वे इस बार लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ेंगे, पर उम्र में उनसे भी ज्यादा लालकृष्ण आडवाणी अभी भी चुनाव लड़ने का इरादा रखते हैं। करुणानिधि के लिए भी शायद 2014 का यह लोकसभा चुनाव उनके लिए अंतिम चुनाव साबित हो। क्या इस चुनाव के बाद मायावती का सितारा बुलंद होगा या गर्दिश में चला जाएगा? मुलायम सिंह क्या अपनी प्रासंगिकता बनाए रख पाएंगे। इस चुनाव मे ंलालू यादव का राजनैतिक भविष्य भी तय हो जाएगा। महबूबा मुफ्ती, जगन मोहन रेड्डी और चन्द्रबाबू नायडू कितने पानी में हैं, इसका भी पता चल जाएगा।
यदि नरेन्द्र मोदी भाजपा को सत्ता तक नहीं पहुंचा पाते हैं, तो यह अंटी क्लाइमेक्स माना जाएगा और यदि उनके नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बन जाती है, तो वे मैन औफ द इयर माने जाएंगे। उन्होंने लोकसभा चुनाव का अभियान बहुत पहले से ही शुरू कर रखा है और देश के अनेक क्षेत्रों मंे उन्होंने बड़ी बड़ी सभाओं को संबोधित किया। इसका कारण वातावरण भाजपा के पक्ष में बन गया है।
विधानसभाओं के पिछले चुनाव में भाजपा को तीन राज्यों मे ंशानदार सफलता मिली। उसके कारण उसका मनोबल काफी बढ़ा, लेकिन दिल्ली में केजरीवाल के आम आदमी पार्टी ने भाजपा का मजा किरकिरा कर दिया है। आम आदमी पार्टी की सरकार दिल्ली मे बन भी गई है। देश की राजनीति को यह नई पार्टी किस तरह प्रभावित करेगी, इसके बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। सच तो यह है कि इसके कारण देश का राजनैतिक माहौल और भी अनिश्चित हो गया है। हालांकि आप की सफलता कांग्रेस सहित देश की अन्य पार्टियों के लिए आंखें खोलने वाली होनी चाहिए।
जहां तक राहुल गांधी की बात है, तो 2014 के चुनाव में यह पता चल जाएगा कि वे अपनी पार्टी के उम्मीदवारों को वोट दिलवा सकते हैं या नहीं। कांग्रेस के सामने सरकार विरोधी भावनाओं का समंदर है। देश के लोग महंगाई और भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े हैं। एक के बाद एक आए भ्रष्टाचार के मामलों ने यूपीए और कांग्रेस की विश्वसनीयता को बहुत ही नीचे कर दिया है। अब कोई मनमोहन सिंह की ईमानदारी की दुहाई नहीं देता।
2014 को हम एक नई राजनीति की शुरुआत का साल कह सकते हैं। इस राजनीति की शुरुआत केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने की है। वे एक भ्रष्टाचार मुक्त सरकार की बात कर रहे हैं। वे अभी सत्ता में आ गए हैं और अपने आपमें यह एक उपलब्धि है। आप के कारण यूपीए विरोधी मतों का एक हिस्सा भाजपा के बदले नई पार्टी की ओर जा सकता है। देश में 200 सीटें ऐसी हैं, जिन्हें हम शहरी कह सकते हैं। उन शहरी सीटों पर आप भाजपा के वोटों को काटेगी।
तीसरे मोर्चे की संभावना भी है, लेकिन इसका गठन लोकसभा चुनाव के बाद ही हो सकता है। क्षेत्रीय नेता कोई एक दूसरे को नेता मानने को तैयार नहीं हैं। ममता, जयललिता, नवीन पटनायक और नीतीश कुमार सभी अपना विकल्प खुला रखना चाहते हैं। सभी लोकसभा चुनाव में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतना चाहेंगे और उन सीटों के बूते चुनाव के बाद केन्द्र की सत्ता में ज्यादा से ज्यादा भागीदारी के लिए सौदेबाजी करेंगे।
जहां तक विधानसभा चुनावों का सवाल है, तो कांग्रेस इस समय हरियाणा, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और अरुणाचल प्रदेश में सत्ता में है। इन राज्यों में स्थितियां उनके विपरीत हैं। आंध्र प्रदेश में तेलंगाना को लेकर कांग्रेस ने अपनी स्थिति खराब कर रखी है। यदि तेलंगाना का गठन नहीं होता है, तो कांग्रेस वहां न तो तेलंगाना में और न शेष आंध्रा में चुनाव जीत पाएगी। (संवाद)
अनिश्चितता का साल होगा 2014
राजनैतिक चक्र तेजी से चलेगा
कल्याणी शंकर - 2014-01-03 12:17
साल 2014 एक अनिश्चितताओं का साल होगा। इनकी घटनाओं के बारे में अभी से दावे से कुछ भी नहीं कहा जा सकता। सच तो यह है कि इसके बारे में अनुमान लगाना भी खतरे से खाली नहीं है। इसका कारण यह है कि राजनैतिक और आर्थिक मोर्चे पर आज अभूतपूर्व अनिश्चय बना हुआ है और उसके साथ विदेश नीति और विदेशों से हमारे संबंधों पर भी अनिश्चय के बादल मंडरा रहे हैं।