हालांकि राजनैतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि उन तमाम निचले बिन्दुओं में सबसे नीचे का बिन्दु खोजने की प्रक्रिया आसान है। जिस दिन राहुल गांधी ने उनकी सरकार द्वारा तैयार उस अध्यादेश को फाड़कर फेंक दिया था, जिसमें सजायाफ्ता सांसदों/विधायकों राहत देने का प्रावधान था, वह दिन मनमोहन सिंह के कैरियर का सबसे निचले बिन्दु वाला दिन था। हालांकि यह सच है कि राहुल गांधी द्वारा उस दिन दिए गए झटके में अकेले मनमोहन सिंह शामिल नहीं थे, बल्कि उसमें सोनिया गांधी भी शामिल थीं। इसका कारण है कि जिस कोर ग्रुप की बैठक में पार्टी ने उस अध्यादेश पर अपनी स्वीकृति दी थी, उसकी अध्यक्षता खुद सोनिया गांधी ही कर रही थीं। उस अध्यादेश को उनकी भी मंजूरी प्राप्त थी।
राहुल गांधी द्वारा मनमोहन सिंह के किए गए अपमान के बाद प्रधानमंत्री के एक पूर्व मीडिया सलाहकार ने राहुल को उसके लिए लताड़ लगाई थी और कहा था कि प्रधानमंत्री को उसके बाद तो इस्तीफा ही दे देना चाहिए था। लेकिन मनमोहन सिंह ने राहुल की उस फटकार पर किसी तरह की प्रतिक्रिया नहीं दिखाई।
इसमें कोई शक नहीं कि राहुल गांधी द्वारा उस तरह अपमानित किया जाना और मनमोहन सिंह का उस पर चुप्पी साध जाना श्री सिंह के कैरियर का सबसे नीचा बिन्दु था। इतिहास इसे याद रखेगा।
उनके कैरियर का दूसरा सबसे नीचा बिन्दु उनके अपने संचार मंत्री अंदीमुथु राजा के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करना था। उन्होंने उनके मामले को सुप्रीम कोर्ट के ऊपर छोड़ दिया और जब राजा के जेल जाने का समय आया, तभी उन्हें मंत्रिपरिषद से हटाया गया। उनके खिलाफ कार्रवाई न करने का कारण बताते हुए मनमोहन सिंह ने कहा था कि यदि उस तरह के मामले में उनकी तरफ से कार्रवाई की जाती, तो प्रत्येक महीने चुनाव करवाने की नौबत आ जाती।
लेकिन इस तरह के तर्क देने से मनमोहन सिंह का कद घटने से नहीं बच सका। उनके कहने का मतलब यह लगाया गया कि पार्टी को सत्ता में बनाए रखने के लिए उस तरह का अपराध होते देखते रहना गलत नहीं है। लेकिन उससे फायदा किसे हुए? तमिलनाडु में उस प्रकरण के बाद होने वाले चुनाव में डीएमके और कांग्रेस की जो करारी हार हुई, उसकी ओर भी तो मनमोहन सिंह का ध्यान जाना चाहिए।
जैसा कि समझा जाता है प्रधानमंत्री ने ए राजा के खिलाफ इसलिए कार्रवाई नहीं कि क्योंकि उसके बाद डीएमके केन्द्र सरकार से बाहर आ जाती और इससे अपना समर्थन भी वापस ले लेती। यह विवशता मनमोहन सिंह की हो सकती है, लेकिन तमिलनाडु की जनता के सामने तो इस प्रकार की विवशता नहीं थी और उसने वहां विधानसभा के हुए चुनाव में कांग्रेस और डीएमके दोनों को सबक सिखाने में झिझक नहीं दिखाई।
ए राजा वाली गलती अब आदर्श घोटाले के मामले में भी मनमोहन सिंह दुहरा रहे हैं। उस घोटाले में शामिल लोगों को बचाने मे केन्द्र की सरकार और कांग्रेस लगी हुई है।
जिस तरह सजायाफ्ता कानून निर्माता को बचाने वाले अध्यादेश लाने में सोनिया गांधी का भी हाथ था, उसी तरह ए राजा को बचाने में भी सोनिया गांधी का हाथ रहा होगा। इसका कारण यह है कि वह भी किसी भी हालत में सत्ता में बनी रहना चाहती है और इसके लिए सभी प्रकार के समझौते करने का तैयार दिखती हैं।
जिस तरह ए राजा को अपने मन मुताबिक अपना मंत्रालय चलाने की छूट प्रधानमंत्री ने दे रखी थी, उसी तरह उन्होंने जयंति नटराजन को भी अपना पर्यावरण मंत्रालय चलाने की छूट दे रखी थी। और सुश्री नटराजन लाइसेंस परमिट राज के दिनों की तरह अपना मंत्रालय चला रही थी। इसके कारण निजी सेक्टर के उ़द्योगों को नुकसान हो रहा था, पर प्रधानमंत्री चुपचाप तमाशा देख रहे थे, क्योंकि सुश्री जयंति के सिर पर सोनिया गांधी का हाथ था। उनके पहले के पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश भी वैसा ही कर रहे थे। वे भी उद्योगों को तंग करने में कोई कमी नहीं छोड़ रहे थे। जाहिर है, इतनी सारी कमियों के कारण मनमोहन सिंह को इतिहास एक कमजोर प्रधानमंत्री के रूप में याद रखेगा। (संवाद)
मनमोहन में हैं कमियां अनेक
इतिहास उन्हें एक कमजोर प्रधानमंत्री के रूप में याद करेगा
अमूल्य गांगुली - 2014-01-15 11:56
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अमेरिका के साथ भारत के हुए परमाणु करार को अपने राजनैतिक कैरियर का सबसे ऊंचा बिन्दु बताया। लेकिन जब उसी संवाददाता सम्मेलन में एक संवाददाता ने उनके कैरियर का सबसे नीचले बिन्दु के बारे में जानना चाहा, तो उनके पास कोई जवाब नहीं था। इसका जवाब शायद वह इस कारण से नहीं खोज पाए, क्योंकि उनके कैरियर में निचले बिन्दुओं की संख्या इतनी ज्यादा है कि उसमे किसी एक को चुनना उनके लिए भी आसान नहीं था।