गौरतलब है कि दिल्ली पुलिस दिल्ली की प्रदेश सरकार के अधीन नहीं है। यह केन्द्र सरकार के गृह मंत्रालय के अधीन है। दिल्ली के मुख्यमंत्री दिल्ली पुलिस के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकते हैं। पहले भी दिल्ली पुलिस को लेकर मुख्यमंत्री और केन्द्र सरकार के बीच मतभेद हुआ करते थे। बतौर मुख्यमंत्री शीला दीक्षित अनेक बार इस मसले पर अपना विरोध जताती थी, लेकिन उनके कार्यकाल में यह मामला उतना कभी गंभीर नहीं हुआ, जितना आज दिखाई पड़ रहा है।

केजरीवाल सरकार की एक मंत्री राखी बिडलान ने पुलिस थाने को एक महिला पर हो रहे अत्याचार की सूचना दी और उसकी शिकायत पर कार्रवाई करने को कहा। पुलिस ने उस महिला की शिकायत को नजर अंदाज कर दिया। बाद में उस मतिला को उसके ससुराल वाले ने आग लगाकर मारने की कोशिश की।

उस महिला को जलाए जाने के बाद भी पुलिस ने उचित कार्रवाई नहीं की और अपराधी सामने होने के बावजूद उन्हें गिरफ्तार नहीं किया। मंत्री ने पुलिस द्वारा अपने कर्तव्य का पालन नहीं किए जाने पर उसे लताड़ा, तो पुलिस थानेदार ने मंत्री को ही चुनौती दे डाली कि वे जैसे हैं, वैसे ही रहेंगे और यदि वह उसको ट्रांसफर करवा सकती हैं, तो करवा दें।

जाहिर है, यह पुलिस द्वारा एक निर्वाचित विधायक, जो मंत्री भी हैं को दी गई एक ऐसी चुनौती है, जिसे किसी भी लोकतंत्र में स्वीकार नहीं किया जा सकता। इससे भी गंभीर बात यह है कि अपना काम सही ढंग से न करने वाले और मंत्री को चुनौती देने वाले थानेदार के खिलाफ उसके सीनियर अधिकारियों ने भी कोई कार्रवाई नहीं की।

दूसरा मामला कानून मंत्री से संबंधित है। उनकी और उनके इलाके में रह रहे लोगों की शिकायत है कि वहां सेक्स रैकेट चल रहा है और नशीली दवाओं का धंधा भी चल रहा है। उसकी शिकायत पिछले कई महीने से पुलिस में की जा रही थी। चुनाव जीत कर मंत्री बने सोमनाथ भारती ने पुलिस को वहां चल रहे काले धंधे के खिलाफ कार्रवाई की मांग की। पुलिस ने उनकी बात नहीं मानी। लोगों ने खुद हंगामा खड़ा किया। पर पुलिस ने वहां उपस्थित लोगों को अपनी कार्रवाई से संतुष्ट नहीं किया, उल्टे मंत्री को ही चुनौती देने लगी।

हालांकि पुलिस इस मामले में अपना बचाव करते हुए कह रही है कि उसने जो कुछ किया, वह नियमों के अधीन ही किया और मंत्री उससे नियमों को तोड़कर कार्रवाई करने की मांग कर रहे थे।

इन दोनों मामले पर मुख्यमंत्री उपराज्यपाल और गृहमंत्री से मिल चुके हैं। दिल्ली के पुलिस आयूक्त अपने मातहत अधिकारियों के पक्ष में हैं। उपराज्यपाल ने मामलों की उच्च स्तरीय जांच के आदेश दे डाले हैं और मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि जांच होने तक आरोपी पुलिस अधिकारियों को निलंबित किया। पुलिस आयुक्त निलंबन से इनकार कर रहे हैं।

अब मामले केन्द्र सरकार के गृह मंत्रालय के पास है, जिसके अधीन दिल्ली पुलिस आती है। निर्णय गृहमंत्री शिंदे को लेना है। केजरीवाल ने चेतावनी दे रखी है कि यदि सोमवार 10 बजे तक उन पुलिस अधिकारियों को निलंबित नहीं किया गया, तो उनकी सरकार दिल्ली के लोगों के साथ मिलकर शिंदे के घर का घेराव करेगी।

इस विवाद में लोगों की भावना केजरीवाल के साथ है। इसके कारण यदि दिल्ली सरकार और केन्द्रीय गृह मंत्रालय के बीच कोई टकराव हुआ, तो लोग केजरीवाल का ही साथ देंगे और एक अभूतपूर्व स्थिति पैदा हो सकती है कि कोई मुख्यमंत्री गृहमंत्री के घर के घेराव का नेतृत्व करे।

केजरीवाल दिल्ली पुलिस को दिल्ली सरकार के अधीन करने की मांग भी कर रहे हैं। जिस तरह से दिल्ली में अपराध बढ़ रहे हैं और महिलाओं के साथ होने वाले बलात्कार की खबरें आ रही है, उससे दिल्ली पुलिस को ज्यादा से ज्यादा जवाबदेह बनाने की जरूरत है। केन्द्रीय गृह मंत्रालय या तो अपने अधीन दिल्ली पुलिस को ज्यादा कारगर बनाए अथवा उसे दिल्ली सरकार के अधीन करे। यदि इन दोनों में से कुछ भी नहीं किया जाता है, तो केजरीवाल केन्द्र के साथ टकराव और भी बढ़ा सकते हैं।

यदि ऐसा होता है, तो केन्द्र सरकार की भारी किरकिरी होगी। कांग्रेस की भी फजीहत होगी, क्योंकि ने आम आदमी पार्टी को समर्थन ने रखा है। यदि वह मुख्यमंत्री द्वारा केन्द्रीय गृहमंत्री के घर के घेराव की हालत में केजरीवाल सरकार से समर्थन वापस लेती है, तो फिर जनता का मूड उसके खिलाफ हो जाएगा, क्यांेकि संदेश जाएगा कि कानून व्यवस्था को लेकर केन्द्र सरकार चिंतित नहीं है और वह न तो खुद उस संभाल सकती है और न ही दूसरे को संभालने देती है।

दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार कांग्रेस के गले की फांस बन गई है। उसे समर्थन देकर बनाए रखने में भी उसकी फजीहत हो रही है और यदि समर्थन वापस लेती है, तो उसकी फजीहत और भी बढ़ने की संभावना है। पुलिस अधिकारियों को निलंबित करके गृह मंत्रालय इस समय तो तनाव को टाल सकती है, लेकिन इसके साथ ही उसके ऊपर दिल्ली पुलिस को दिल्ली सरकार के अधीन करने का दबाव भी बढ़ जाएगा। (संवाद)