सवाल उठता है कि क्या राहुल गांधी में आए इस बदलाव और उनमें पैदा हो रहे आत्मविश्वास से कोई फर्क पड़ेगा और इसका लाभ आगामी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस उठा पाएगी? फिलहाल स्थितियां उनके खिलाफ हैं। नरेन्द्र मोदी तो पहले ही उनके सामने एक चुनौती थे, अरविंद केजरीवाल के रूप में अब एक नई चुनौती उनके सामने आ खड़ी हुई है। केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी के कुमार विश्वास ने तो अमेठी में जाकर भी उन्हे चुनौती दे चुके हैं। हालांकि अभी यह नहीं कहा जा सकता कि अमेठी में राहुल को आम आदमी पार्टी से मिल रही चुनौती कितनी घातक है, लेकिन यह तो कहा ही जा सकता है कि वहां से राहुल गांधी को चुनाव जीतना अब आसान नहीं होगा।
दिल्ली का कांग्रेस अधिवेश राहुल सत्र था। बहुत सोच विचार के बाद कांगेस ने एक अच्छा निर्णय लिया और वह निर्णय था राहुल गांधी को आगामी लोकसभा चुनाव के पहले अपना प्रधानमंत्री उम्मीदवार नहीं घोषित करना। सच कहा जाय तो कांग्रेस को इसकी जरूरत ही नहीं थी, क्योंकि सबको पता है कि यदि कांग्रेस के नेतृत्व में अगली सरकार बनती है तो प्रधानमंत्री कौन होगा। सच कहा जाय तो कांग्रेस को प्रधानमंत्री उम्मीदवार की घोषणा की जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि सबको पता होता है कि उसका प्रधानमंत्री उम्मीदवार कौन है।
जवाहरलाल नेहरू के समय सबको पता हुआ करता था कि चुनाव जीतने के बाद वे ही प्रधानमंत्री होंगे। इन्दिरा जी के समय में भी लोगों को पता होता था कि वे ही प्रधानमंत्री होंगी। यही बात राजीव गांधी के समय में भी थी। अब जब मनमोहन सिंह कह चुके हैं कि प्रधानमंत्री के रूप में यह उनका अंतिम कार्यकाल है, तो जाहिर हो गया है कि यदि कांग्रेस अगले चुनाव के बाद सरकार बनाती है, तो राहुल ही प्रधानमंत्री होंगे। ऐसी स्थिति में राहुल के प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में घोषणा करने की कोई जरूरत ही नहीं है।
कांग्रेस मे प्रधानमंत्री पद के लिए चुनाव भी नहीं होते। बस एक बार ऐसा हुआ था। लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद इन्दिरा गांधी और मोरारजी देसाई के बीच मुकाबला हुआ था। तब मतदान हुए थे, जिसमें इन्दिरा गांधी की जीत हुई थी। उसके पहले जब जवाहर लाल नेहरू का निधन हुआ था, तो लालबहादुर शास्त्री कांगेस संसदीय दल की सर्वसम्मति से नेता चुने गए थे। 1991 में राजीव गांधी की मौत के बाद नरसिंह राव का चुनाव भी सर्वसम्मति से ही हुआ था।
राहुल गांधी के नाम की घोषणा नहीं करने के पीछे एक और बड़ा कारण हो सकता है। आप अनुमान लगाइये कि चुनाव के बाद ऐसी स्थिति पैदा हो रही हो कि कांग्रेस के नेतृत्व वाला गठबंधन तो सत्ता मे आ सकता है, लेकिन गठबंधन की एक या दो पार्टियों के नेता राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए सहमत नहीं हो रहे हों। तब कांगेस को किसी और व्यक्ति को पीएम बनाना पड़ सकता है। अब यदि राहुल गांधी का नाम पहले से प्रधानमंत्री के रूप में घोषित कर दिया जाय, तब राहुल की जगह गठबंधन के दबाव में किसी और कांग्रेसी नेता को प्रधानमंत्री बनाना राहुल और कांग्रेस दोनों के लिए अशोभनीय होगा।
भारतीय जनता पार्टी के लिए अपना प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित करना जरूरी था, क्योंकि उसके अनेक नेता प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा पाल रहे हैं। उसके सामने नेतृत्व का संकट खड़ा था और नाम न घोषित करने की सूरत में भाजपा का अंतकर्लह और बढ़ता दिखाई पड़ रहा था। इसके अलावा यदि प्रधानमंत्री के नाम की पहले से घोषणा नहीं होती, तो चुनाव के बाद उनके नेताओ ंमें आपसी मतभेद हो जाता। लेकिन कांग्रेस के सामने इस तरह की समस्या नहीं है।
अधिवेशन में राहुल गांधी के भाषण पर कांग्रेसी नेताओं ने बहुत गर्मजाशी दिखाई। उनका उत्साह बढ़ाने मे राहुल कामयाब रहे। यानी अब कांग्रेस ने अपने आपको भाजपा का मुकाबला करने के लिए तैयार कर लिया है। (संवाद)
नये रूप में राहुल
कांग्रेस भाजपा का सामना करने को तैयार
हरिहर स्वरूप - 2014-01-20 12:03
पिछले शुक्रवार को कांग्रेस के अधिवेशन में राहुल गांधी के भाषण को सुनकर तो ऐसा ही लगता है कि अब वे लय में आने लगे हैं। उनके विरोधी चाहे जो कहें, लेकिन उनका वह भाषण बहुत ही शानदार था। सच कहा जाय तो जयपुर सम्मेलन के बाद उनका यह दिया गया अब तक का सबसे अच्छा भाषण था। गौरतलब है कि जयपुर सम्मेलन में ही उनके कांग्रेस उपाध्यक्ष बनने की घोषणा की गई थी।