पिछले सप्ताह एक बात उभरकर यह सामने आई कि मुख्यमंत्री केजरीवाल को लगता है कि सभी समस्याओं का एक ही समाधान है और वह है सड़कों पर आंदोलन के लिए उतर जाना। फिर बिना कोई सफलता पाए हुए ही अपनी विजय की घोषणा कर देना। इसके कारण अब जिन लोगों ने आम आदमी पार्टी को वोट दिए थे, उन्हें केजरीवाल के सरकार चलाने की क्षमता पर ही संदेह पैदा हो रहा है। वे केजरीवाल से सरकार चलाने की उम्मीद करते हैं न कि कोई राजनैतिक ड्रामा करने की।
पिछले तीन सप्ताह में मुख्यमंत्री केजरीवाल ने यह महसूस किया है कि उनका तो दिल्ली पुलिस, डीडीए, एनडीएमसी, और एमसीडी पर कोई नियंत्रण ही नहीं है। पिछले 15 सालों तक इसी का रोना तो शीला दीक्षित भी रो रही थीं। दिल्ली पुलिस केन्द्र सरकार के गृह मंत्रालय को रिपोर्ट करती है। एक संवैधानिक व्यवस्था यह है कि दिल्ली सरकार बजट संसद द्वारा स्वीकृत किया जाता है। दिल्ली नगर निगम इस समय भारतीय जनता पार्टी के कब्जे में है। डीडीए उपराज्यपाल के नियंत्रण में है। इसलिए केजरीवाल की शक्ति बहुत सीमित है और वे चाहकर भी दिल्ली के लिए कुछ खास नहीं कर सकते।
आखिर रेल भव के सामने केजरीवाल ने 33 घंटों का यह राजनैतिक नाटक क्यों किया? हम यह नहीं कह सकते कि ऐसा करने के पहले उन्होंने काफी सोचविचार नहीं किया होगा। सच तो यह है कि इसका सबसे प्रमुख कारण केजरीवाल की राजनैतिक महत्वाकांक्षा है। वे अब प्रधानमंत्री की कुर्सी की ओर देख रहे हैं। उस प्रदर्शन के दौरान उनके समर्थक नारा भी लगा रहे थे कि देश का पीएम कैसा हो, अरविंद केजरीवाल जैसा हो।
केजरीवाल की राजनीति को यह सूट करेगा, यदि कांग्रेस उनकी सरकार से समर्थन वापस ले ले अथवा केन्द्र सरकार उस बर्खास्त कर दे। ऐसा होने पर उन्हें शहीद होने का तगमा मिल जाएगा और लोकसभा चुनाव की तैयारियों के लिए भी समय मिल जाएगा। इस समय तो केजरीवाल को दिल्ली सरकार चलाने के लिए समय देना पड़ता है, जिसके कारण लोकसभा चुनाव की तैयारियों के लिए कम समय मिलता है। आम आदमी पार्टी के अंदर से जो असंतोष उमड़ रहा है, उसका भी निदान उनकी सरकार के पतन से निकल जाएगा। यही कारण है कि उन्होंने पूरी कोशिश की कि केन्द्र सरकार उन्हें बर्खास्त कर दे। पर कांग्रेस और केन्द्र सरकार ने वैसा नहीं किया। कांग्रेस केजरीवाल के जाल में नहीं फंसी।
केजरीवाल ने अपने इस आंदोलन में दिल्ली पुलिस को निशाना बनाया। इसका कारण यह है कि उन्हें पता है कि दिल्ली के लोग दिल्ली पुलिस को पसंद नहीं करते। दिल्ली के लोग दिल्ली पुलिस को पसंद नहीं करते हों, लेकिन इस आंदोलन का भी दिल्ली के लोगों ने उत्साह के साथ समर्थन नहीं किया। लोगों को आंदोलन से परेशानी हो रही थी। जाहिर है केजरीवाल की यह रणनीति पिट गई।
केजरीवाल सड़क पर ही अपने सरकारी फाइलों को क्लियर कर रहे थे। अधिकारी उनके पास आते थे और वे फाइल निबटाते थे। इस तरह खुले में सरकार चलाना भी लोगों को रास नहीं आया। लोगों को लगता है कि केजरीवाल को अपने पद की मर्यादा का भी ख्याल करना चाहिए। आप नारों से सरकार नहीं चला सकते। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ना एक बात है, लेकिन सरकार में आने पर सरकार चलानी भी पड़ती है।
कुछ लोगों का कहना है कि आम आदमी पार्टी के अंदर से जो विद्रोह उठ रहा था, उसे दबाने के लिए भी केजरीवाल ने यह नाटक किया। विधायक बिनोद कुमार बिन्नी धमकी दे रहे थे कि वह अपने समर्थकों के साथ सड़क पर उतरेंगे। उसके पहले ही केजरीवाल सड़क पर उतर गए। इस तरह उन्होंने अपनी पार्टी के अंदर के अपने विरोधियों को भी पछाड़ने की कोशिश की। (संवाद)
केजरीवाल का राजनैतिक ड्रामा
दिल्ली को सरकार चलाने वाला चाहिए
कल्याणी शंकर - 2014-01-24 11:32
जब आम आदमी पार्टी के नेता दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ले रहे थे, तो देश भर में एक प्रकार का उत्साह पैदा हुआ था। लग रहा था कि देश में राजनीति का एक नया अध्याय शुरू हो रहा है। आम आदमी पार्टी की सफलता ने लोगों की उम्मीद बढ़ा दी थी। इसे मध्य वर्ग ही नहीं, बल्कि गरीबों का भी भारी समर्थन हासिल हुआ था। वे अच्छी सरकार चाहते थे। इसलिए उन्होंने आम आदमी पार्टी और उसके नेता केजरीवाल को पसंद किया था। लेकिन एक महीने के अंदर जब इसका आकर्षण कुछ कम हुआ है और यदि इसने जल्द ही अपने आपको एक सही राजनैतिक पार्टी के रूप में तब्दील नहीं किया, तो उसका आकर्षण और भी कम हो सकता है।