सवाल उठता है कि केजरीवाल को इस तरह की कार्रवाई करने की जरूरत ही क्यों पड़ी? जाहिराना तौर पर तो यही लगता है कि देश भर में वे अपनी लोकप्रियता बढ़ाना चाह रहे थे, ताकि आगामी लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी के उम्मीदवारों को ज्यादा से ज्यादा सफलता मिल सके। वे चाह रहे थे कि केन्द्र सरकार उनकी सरकार को बर्खास्त कर दे अथवा कांग्रेस अपना समर्थन वापस ले ले। उसके बाद वे लोगों के बीच शहीद बनकर जाते और लोकसभा चुनाव में उस शहादत का फायदा उठाने की कोशिश करते। लेकिन उनकी योजना विफल हो गई। इसका कारण है कि कांग्रेस ने उनके आंदोलन के बावजूद समर्थन वापस नहीं लिया और केन्द्र सरकार ने उनकी सरकार को बर्खास्त नहीं किया। इसके कारण उन्हें इस आंदोलन से फायदा के बजाय नुकसान ही हो गया।

कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को बाहर से समर्थन ही इसीलिए दिया है, ताकि व गलतियां करे और लोगों के बीच अलोकप्रिय होती चली जाय। एक बार उसकी लोकप्रियता का स्तर काफी नीचे गिरा नहीं कि कांगेस उससे अपना समर्थन वापस ले लेगी और वह सरकार गिर जाएगी। केजरीवाल ने पहली बड़ी गलती कर दी है और इसके कारण कांग्रेसियों को खुश देखा जा सकता है।

केजरीवाल सरकार के कानून मंत्री सोमनाथ का व्यवहार बहुत ही गैर जिम्मेदाराना रहा। मंत्री खुद वकील हैं और दिल्ली हाई कोर्ट नहीं, बल्कि सुप्रीम कोर्ट तक में भी वकालत कर चुके हैं। इसलिए उनसे यह जानने की उम्मीद तो की ही जा सकती है कि पुलिस मनमाने तरीके से कहीं छापेमारी नहीं कर सकती। खासतौर पर महिला के घर में रात को छापा मारना तो पुलिस के लिए बेहद ही संवेदनशील मामला होता है। वह झूठी शिकायतों पर रात को किसी महिला के घर पर छापेमारी करके उसे हिरासत में बिना किसी सबूत के नहीं ले सकती। भारती के मामले में भी यही हुआ। जिन महिलाओं के खिलाफ रात में ही कार्रवाई की मांग कानून कर रहे थे, उनके पास से पुलिस को कोई सबूत नहीं मिला। कानून मंत्री को मालूम होना चाहिए कि इममोरल ट्रैफिकिंग का कानून महिलाओं को दंडित करने के लिए नहीं, बल्कि उनकी रक्षा करने के लिए बना है।

दिल्ली पुलिस ने सोमनाथ भारी के हुक्म को मानने से इनकार करके अच्छा ही किया। अब उस मामले की न्यायिक जांच के आदेश दे दिए गए हैं। लेकिन जांच के आदेश के बाद भी आम आदमी पार्टी के नेता अधीर हो रहे थे। जांच के पहले ही वे उन पुलिस अधिकारियों को सस्पेंड करने की मांग कर रहे थे। उनका तर्क था कि यदि वे अपने पद पर बने रहे, तो जांच को प्रभावित कर सकते हैं। इसलिए वे उनके सस्पेंशन से नीचे उतर कर ट्रांसफर पर आ गए। अंत में उनके छुट्टी पर चले जाने के बाद अपना आंदोलन वापस ले लिया।

जब सोमनाथ भारती को कानून मंत्री के पद से हटाए जाने की मांग उठी, तो केजरीवाल उस मांग को उचित नहीं मान रहे है। यह उनका दोहरा मानदंड है। पूरे मामले की जांच चल रही है, जिसमें आरोप कानून मंत्री पर भी लगा है। यदि एक छोटा पुलिस अधिकारी अपने पद पर रहते हुए जांच को प्रभावित कर सकता है, तो मंत्री तो और भी ताकतवर होता है। अपनी ताकत का इस्तेमाल कर वह भी जांच को प्रभावित कर सकता है। पर केजरीवाल यह मानने के लिए तैयार नहीं है।

इस आंदोलन से हो रहे नुकसान को यदि केजरीवाल कम करना चाहते हैं, तो उन्हें अपने कानून मंत्री को हटा देना चाहिए। लेकिन वे ऐसा करने को तैयार नहीं और उल्टे दिल्ली पुलिस को ही दिल्ली सरकार के अधीन करने की मांग कर रहे हैं। इस तरह की मांग कोई पहली बार नहीं हो रही है। शीला दीक्षित की सरकार और उसके पहले की भाजपा की सरकारों ने भी इसी तरह की मांग की थी। लेकिन इस मांग को मनवाने के लिए इस तरह के आंदोलन की जरूरत नहीं है। (संवाद)