शुक्रवार, 28 जुलाई, 2006

परमाणु समझौताः क्या खोया क्या पाया

ज़ोरदार बहस जारी, परस्पर विरोधी दावे प्रतिदावे

ज्ञान पाठक

अमरीकी प्रतिनिधि सभा में भारत-अमेरिका नाभिकीय समझौते के संबंध में जिस तरह के विधेयक पर विचार हो रहा था उसपर अंततः प्रधान मंत्री डा. मनमोहन सिंह ने भी कह दिया कि उसकी कुछ बातें भारत के लिए चिंतनीय थीं। राज्य सभा में उनके इस बयान के कुछ ही समय बाद अमरीकी प्रतिनिधि सभा ने इसे भारी बहुमत से पारित कर दिया।

अमरीकी संसद के निचले सदन अर्थात प्रतिनिधि सभा में भारत-अमरीका परमाणु सहयोग समझौते के पारित होने के बाद अनुमोदन के लिए इसे सीनेट में भेजा जायेगा। समझौते का सार यह है कि इसके तहत अमरीका भारत को असैनिक मकसदों के लिए परमाणु ईंधन और तकनीक देगा और दूसरी ओर भारत उसे अपने परमाणु संयंत्रों के निरीक्षण की इजाज़त देगा। यहीं विवाद है क्योंकि यदि कोई देश स्वतंत्र तथा किसी अन्य के अधीन नहीं है तो वह अपने निरीक्षण का अधिकार क्यों देगा? यदि भारत ने यह अधिकार अमेरिका को दे दिया तो वह जब चाहेगा हमारे प्रतिष्ठानों का निरीक्षण करेगा और उस स्थिति में हम स्वतंत्र कहां रह गये?

ध्यान रहे कि भारत ने अंतरराष्ट्रीय परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं और इसीलिए 1974 में भारत के पहले परमाणु विस्फोट के बाद से अमरीका ने असैनिक मकसदों के लिए भी भारत को परमाणु तकनीक और ईंधन नहीं दिया है। बिना अंतर्राष्ट्रीय मदद के और किसी देश के आगे बिना झुके ही भारत अपनी नाभिकीय क्षमता विकसित कर ली और 1998 में फिर परमाणु परीक्षण किये। अब हमारे देश के वर्तमान नेता अमेरिका के आगे झुकने और उससे अपने प्रतिष्ठानों का निरीक्षण करवाने के लिए तैयार हैं। उनका तर्क है कि ऐसा करने से लाभ होगा लेकिन स्वतंत्रता के पक्षधर किसी भी लाभ के लिए गुलामी के नजदीक जाने को तैयार नहीं हैं और इस समझौते का विरोध कर रहे हैं।

उधर अमेरिका में अधिकांश के इसके पक्ष में होना स्वाभाविक है। विधेयक को संशोधित कर और मजबूत किया गया है ताकि समय आने पर भारत की बाहें मरोड़ी जा सके।

प्रतिनिधि सभा में बहस के दौरान एक अन्य डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्य जो क्रौली का कहना था, "भारत ने कभी एक बार भी अपनी सीमाओं के बाहर परमाणु तकनीक का प्रसार नहीं किया है। लेकिन ये उसके कुछ पड़ोसियों के बारे में नहीं कहा जा सकता।"

लेकिन एक अन्य डेमोक्रेटिक पार्टी सदस्य डेनिस कुसिनिक का कहना था, "हम ग़लत दिशा में जा रहे हैं। विश्व में इस संकट की घड़ी में हमें परमाणु हथियार ख़त्म करने की बात करनी चाहिए..."

समाचार एजेंसियों के अनुसार डेमोक्रेटिक पार्टी के एक सदस्य एड मार्की का कहना था, "ये भारत के लिए बहुत बड़ी रियायत होगी। ये अप्रसार संधि को बड़ा धक्का होगा और इससे भारत को अपने परमाणु हथियारों के भंडार का विस्तार करने का मौका मिलेगा।"

डेमोक्रेटिक पार्टी के वरिष्ठ नेता टॉम लैंटॉस ने इस समझौते के बारे में कहा, "ये भारत और अमरीका के रिश्तों में एक बड़ा बदलाव है। हम इतिहास के उस मोड़ पर हैं जब हम दोनो देश सामान्य मूल्यों और हितों के आधार पर नए संबंध कायम कर रहे हैं।"

अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश चाहते हैं कि कांग्रेस यानि अमरीकी संसद भारत को उन अमरीकी क़ानूनों से मुक्त करे जिनके तहत अमरीका परमाणु यंत्रों और सामग्री का व्यापार केवल उन देशों से कर सकता है जिन्होंने पूरी तरह अंतरराष्ट्रीय निरीक्षण की स्वीकृति दी हो।

भारत के प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने कहा है कि अमरीका के साथ हुई परमाणु सहमति को लेकर भारत कोई नई शर्तें स्वीकार नहीं करेगा। उन्होंने कहा, "हम ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे जो 18 जुलाई के भारत-अमरीका संयुक्त बयान के अनुरूप न हो।"

कुल मिलाकर दोनों ओर कथनी और करनी में भारी अंतर है। #