इन गलतियों में अपने सहयोगी दलों के भ्रष्टाचार के सामने आत्मसमर्पण करना भी शामिल है। 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले में कांग्रेस ने जानबूझकर आंखें इसलिए बंद रखीं, क्योंकि वह डीएमके को नाराज नहीं करना चाहती थी। इसके कारण घोटालों की एक श्रृंखला ही बनने लगी। इसके कारण सरकार की प्रतिष्ठा ही जाती रही और इसका नेतृत्व करने वाली कांग्रेस को भी भारी क्षति उठानी पड़ी।

पिछले दिनों हिंदी राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव मेें इसका सूुफड़ा साफ हो गया। चारो राज्यों में यह हारी। तीन में तो यह बुरी तरह हारी। दिल्ली में तो यह तीसरे स्थान पर आ गर्इ। इन चुनावों के नतीजों ने बिल्कुल साफ कर दिया कि सोनिया गांधी के इशारे पर केन्द्र सरकार जिन नीतियों पर चल रही है, उन्हें जनता ने पूरी तरह ठुकरा दिया है। जिन नीतियों को जनता ने ठुकरा दिया, उनमें मनरेगा ही नहीं, बलिक खाध सुरक्षा कानून भी है, जिसे शरद पवार के भारी विरोध के बावजूद सोनिया गांधी की जिद पर तैयार किया गया।

सरकार ने शिक्षा के अधिकार और सूचना के अधिकार का खूब ढिंढोरा पीटा, लेकिन जनता मानने को तैयार नहीं हुर्इ कि कांग्रेस गरीबों से हमदर्दी रखने वाली पार्टी है। इसका कारण यह है जनता को दी जाने वाली सुविधाओं को सुधार के विकल्प के रूप में देखा गया। सच तो यह है कि आर्थिक सुधार के कारण विकास की दर तेज रहती और लोगों को ज्यादा रोजगार मिलते।

लेकिन सोनिया परिवार को न तो आर्थिक सुधार की चिंता थी और न ही विकास दर की। उसे बस चिता इस बात की थी कि परिवार के सदस्यों के नाम पर योजनाओं चलाओ और गरीबों को मुफत में कुछ न कुछ बांटते रहो। लेकिन मुफत बांटने की वह योजना भी भ्रष्टाचार का शिकार हो रही थी। वह परिवार के सदस्यों के नाम लोगों के बीच प्रचारित करने में ज्यादा दिलचस्पी दिखा रही थी। इंदिरा आवास योजना के साथ साथ राजीव गांधी आवास योजना भी जारी कर दी गर्इ।
इसलिए आर्थिक सुधार कार्यक्रम जिसके द्वारा निजी क्षेत्र की मदद से विकास दर तेज करन था दरकिनार कर दिए गए और उसकी जगह सरकारी मदद पर भरोसा किया गया। और फिर इसके लिए सरकारी खजाना खोल दिया गया। सरकारी खजाने को खोलने की कांग्रेस की इस नीति को उस समय दुनिया ने देखा, जब राहुल गांधी कांग्रेस के सेसन में कह रहे थे कि गैस के नौ सिलींडर से उनका काम नहीं चलता, उन्हें सबिसडी वाले गैस के 12 सिलींडर चाहिए। राहुल की उस मांग को देखकर सोनिया गांधी बहुत ही गदगद हो रही थीं। उन्हें गदगद होते भी पूरी दुनिया ने देखा।

इस तरह की बातें करना उस परिवार के लिए चिंता की बात नहीं है, जो विलासिता में पली हो। इसीलिए सोनिया गांधी खर्चीले कार्यक्रमों की घोषणा करते हुए कहती हैं कि खर्च के लिए पैसे का इंतजाम सरकार को करना होगा। उसे पता करना होगा कि खाध सुरक्षा कानून को लागू करने के लिए संसाधन कहां से प्राप्त किए जाएं। सरकार के खजाने की हालत क्या है, इसे समझे बिना सोनिया गांधी ऐसी परियोजनाओं के अमल के लिए दबाव बनाती रही, जिसकी संवैधानिकता पर भी सवाल खड़े किए जा सकते हैं।
अभी ताजा उदाहरण राहुल गांधी की वह जिद है, जिसके तहत भ्रष्टाचार विरोधी कानूनों को बनाने के लिए अध्यादेश का रास्ता अपनाना था। यह रास्ता संवैघानिक मर्यादाओं का उल्लंघन करने वाला था। इन कानूनों को संसद के सत्र के दौरान ही पास किया जाना था, लेकिन वैसा हो नहीं सका। फिर तो राहुल गांधी ने कहा कि इसे अध्यादेश द्वारा पारित करवा दिया जाय। उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि अध्यादेश को बहुत ही आपातकालीन सिथति में जारी किया जाता है, जब संसद का सत्र नहीं चल रहा हो।
सच कहा जाय तो राहुल गांधी के लिए यह आपातकालीन सिथति ही है, क्योंकि उनकी कांग्रेस के सामने भारी आपदा की सिथति बनी हुर्इ है। लोग अनुमान लगा रहे हैं कि शायद इस बार कांग्रेस को 100 सीटें भी नहीं मिल पाए। इसके पहले सोनिया गांधी के नेतृत्व में लड़े चुनाव में ही कांग्रेस को सबसे कम 112 लोकसभा सीटें मिली थीं। सोनिया के नेतृत्व में ही कांग्रेस उस रिकार्ड को भी तोड़ सकती है।(संवाद)