उम्मीदवारों का चयन करना राजनैतिक पार्टियों के हाथ में है, लेकिन उन्हें जीत दिलाना मतदाताओं के हाथ में है। लोकसभा को बेहतर बनाने के लिए राजनैतिक पार्टियों को चाहिए कि वे स्वच्छ छवि के उम्मीदवारों का चयन करें। मतदाताओं को चाहिए कि वे खराब छवि वाले उम्मीदवारों को पराजित करें। धनबल और बाहुबल के धनी उम्मीदवारों की हार भी मतदाताओं को सुनिशिचत करनी चाहिए।
15वीं लोकसभा अबतक की सबसे खराब लोकसभा रही है। इसके दौरान अनेक बार अप्रिय सिथति का सामना करना पड़ा। तेलंगाना राज्य के गठन के मामले में तोे लोकसभा में वह हुआ, जो पहले कभी नहीं हुआ था। लोग इस तरह की हरकतो ंसेअब उबने लगे हैं। संसद को चलाने में काफी रुपया खर्च होता है और यदि इन खर्चों के बाद भी वहां काम न हो तो इससे देश और जनता का ही नुकसान होता है।
संसद में अनेक विधेयक पारित ही नहीं हो सके। अन्य अनेक विधेयकों को बिना बहस के ही पारित कर दिया गया। कभी कभी तो मार्शल का भी सहारा लेना पड़ा। ये सिथतियां बहुत खराब हैं। संसद के अलावा अनेक राज्यों की विधानसभाओं में भी ऐसी सिथतियां पैदा होती रही हैं। इसलिए मतदाताआें को चाहिए कि वे मतदान करते समय उम्मीदवारों के बारे में सोच समझकर फैसला लें और ऐसे लोगों को चुनकर न भेजें, जो लोकसभा का माहौल खराब कर सकते हैं।
यदि हम मतदाताओं की चर्चा करे, तो पाते हैं कि इस बार सफलता की चाभी युवा मतदाता और महिलाओं के पास है। युवाओं को पहले 1977 मे मौका मिला था। उसके बाद उन्हें 1989 में भी मौका मिला। इस बार फिर उन्हें मौका मिल रहा है। युवा देश की राजनीति को बदलना चाहते है। वे भ्रष्टाचार मुक्त राजनीति चाहते हैं। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सफलता ने साबित कर दिया। उसमें ऐसे उम्मीदवार भी जीत कर आए, जिन्हें लोग जानते तक नहीं थे। उन्होंने चुनाव में न तो धनबल का इस्तेमाल किया और न ही बाहुबल का ही।
कुछ राजनैतिक विश्लेषक चुनावों में हो रहे भारी मतदान को इस बात का संकेत मान रहे हैं कि युवा वर्ग बदलाव चाहता है और वह भारी पैमाने पर चुनाव में भाग ले रहा है। एक अनुमान के अनुसार दिल्ली विधानसभा चुनाव में युवाओं के 47 फीसदी ने आम आदमी पार्टी का समर्थन किया। युवाओं की मतदान में उत्साह के साथ हो रही भागीदारी जारी रहने की संभावना है। यही कारण है कि नरेन्द्र मोदी, राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल युवाओ को अपनी ओर आकर्षित करने पर विशेष जोर दे रहे हैं।
युवाओं के अलावा महिलाओं ने भी मतदात को प्रभावित करना शुरू किया है। राहुल गांधी महिलाओ के सशकितकरण को चुनावी मुददा बना रहे हैं। पर जबतक महिलाओं को निर्णय प्रकि्रया में शामिल नहीं किया जाता, उनके सशकितकरण की बात करना बेमानी है। इसलिए यह जरूरी है कि राजनैतिक पार्टियां महिलाओं को ज्यादा से ज्यादा संख्या में सीटें दें। यदि कांग्रेस और भाजपा चाहें, तो मिलकर किसी भी विधेयक को पारित करवा सकते हैं। ऐसा उन्होने कुछ विधेयकों के मामले में किया भी है। पर महिला आरक्षण विधेयक को उन्होंने लोकसभा से पारित क्यों नहीं करवाया? इस सवाल का उनके पास शायद कोर्इ जवाब नहीं है। गौरतलब है कि ये दोनो पार्टियां महिला आरक्षण विधेयक के वर्तमान स्वरूप का समर्थन करती हैं।
आगामी लोकसभा चुनाव में लोग राजनीति को साफ करना चाहेंगे। वे चाहते हैं कि राजनैतिक पार्टियां स्वच्छ छवि के उम्मीदवार दें। वे मतदान भी स्वच्छ छवि के उम्मीदवारों के पक्ष में ही करना चाहेंगे। आम आदमी पार्टी की सफलता ने उनमें नर्इ उम्मीद जगार्इ थी। प्रशासन करने में आप सरकार की विफलता से वे निराश भी हुए हैं। देखना होगा कि इस चुनाव में जाति और मजहब के आधार पर लोग वोट डालेंगे या विकास और सुशासन के नाम पर। (संवाद)
लोकसभा चुनाव पर लगे हैं बड़े दांव
हो रहा है दो विचारों के बीच मुकाबला
कल्याणी शंकर - 2014-03-08 15:37
लोकसभा चुनाव अब सिर पर है। इसके साथ साथ ओडीसा, आंध्र प्रदेश और सिक्कम के चुनाव भी होने वाले हैं। चुनाव के बाद किस प्रकार की लोकसभा हमारे सामने होगी? क्या यह 15वीं लोकसभा से बेहतर होगी, या उससे बदतर होगी? क्या यूपीए की फिर से वापसी होगी? क्या मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार बनेगी या तीसरे मोर्चे की सरकार होगी? इन सवालों का सही सही जवाब अभी नहीं मिल पा रहा है।