भ्रष्टाचार ने पुलिस बल का भी राजनैतिककरण कर दिया है। इसके कारण लोगों के बीच काफी हताशा है। थाने पर एफआर्इआर दायर करने की भी कोर्इ स्पष्ट नीति नहीं है। नगरपालिका और निगम निकायों में भी भारी भ्रष्टाचार है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली का तो कहना ही क्या। भ्रष्टाचार ने सरकारी अस्पतालों और शैक्षिक संस्थानों तक को नहीं बख्सा है। गरीबों के लिए चलार्इ जाने वाली सरकारी योजनाएं लूट का अखाड़ा बनी हुर्इ हैं। इसके कारण इनका लाभ लक्षित वर्ग तक नहीं पहुंच पाता। राष्ट्रीय संसाधनों की लूट जारी है। सरकार का काम उस लूट को रोकना होता है, लेकिन भ्रष्टाचार में लिप्त हमारे हुक्मरान उस लूट का हिस्सा बने हुए हैं। कार्पोरेट जगत को मनमाने तरीके से राष्ट्रीय संपतितयों को सौंपा जा रहा है। सरकारी और कार्पोरेट सौदे में पारदर्शिता का घोर अभाव है। हमारी सुरक्षा व्यवस्था में भी भ्रष्टाचार के कारण सेंध लग गर्इ है। आतंकवादी घटनाएं तो घट ही रही हैं, सुरक्षा के संगठनों की कार्यक्षमता भी भ्रष्टाचार के कारण गिर रही है। अभी एक सिंधुरत्न नाम की एक पनडुब्बी डुब गर्इ। उसके बाद और भी नौसैनिक प्रतिष्ठानों से दुर्धटना की खबरें आर्इं।
महंगार्इ पिछले कर्इ सालों से रुकने का नाम नहीं ले रही। जैसे जैसे भ्रष्टाचार बढ़ता जाता है, महंगार्इ की समस्या विकराल होती जा रही है। इसका कारण यह है कि हमारे देश की मंगार्इ न तो मांग पक्ष में कोर्इ भारी बढ़ोतरी का नतीजा है और न ही आपूर्ति पक्ष में आर्इ गिरावट का परिणाम। बलिक इसका असली कारण भ्रष्टाचार है। भ्रष्टाचार हमारी अर्थव्यवस्था को उच्च लागत वाली अर्थव्यवस्था बनाती जा रही है।सच कहा जाय, तो भ्रष्टाचार आज हमारे देश की सबसे बड़ी राष्ट्रीय समस्या है।
भ्रष्टाचार के कारण प्रशासन भी पंगु होता जा रहा है। सरकार अपना काम सही ढंग से नहीं कर रही। नीतियों के स्तर पर भी सरकार लकवाग्रस्त हो गर्इ है। कि्रयान्वयन के स्तर पर नौकरशाह ढीले हो गए हैं। भ्रष्टाचार करना और भ्रष्टाचार में पकड़े जाने से डरना- हमारी नौकरशाही की आज की दो बड़ी विशेषताएं हैं, जिनके कारण सरकारी कामकाज बहुत ही धीमा हो गया है।
राजनैतिक पार्टियों को अपने घोषणापत्रों में यह बताना पड़ेगा कि प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए उनके पास क्या योजनाएं हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने प्रशासन के पंगु होने की बात स्वीकार की थी, लेकिन वे भी इस समस्या को हल नहीं कर सके। इसका कारण यह है कि यदि सरकार तेजी से निर्णय करने लगती है और ज्यादा काम होने लगता है, तो फिर उसका भ्रष्टाचार भी उतनी ही तेजी से सबके सामने आने लगता है। यह आज की बनी प्रशासिनक व्यवस्था का नतीजा है। नर्इ सरकार को एक ऐसी व्यवस्था बनानी पड़ेगी, जिसके तहत तेज काम का मतलब तेज भ्रष्टाचार नहीं होना चाहिए।
आज राजनैतिक नेताओं और नौकरशाहों के बीच एक नापाक गठबंधन बन गया है, जिसके तहत उन्होंने नियमन करने वाले निकायों में अपने लोगों को भर दिए हैं। इससे यह गठबंधन और भी मजबूत हो गया है और इसके कारण भ्रष्टाचार का साम्राज्य स्थापित हो गया है। पार्टियों को अपने घोषणापत्रों में यह स्पष्ट करना पड़ेगा कि इस गठबंधन को तोड़ने का उसके पास क्या फार्मूला है। (संवाद)
चुनावी घोषणा पत्रों में जोर अच्छे प्रशासन पर होना चाहिए
भ्रष्टाचार सुशासन से ही कम हो सकता है
नन्तू बनर्जी - 2014-03-11 14:08
भ्रष्टाचार इस चुनाव में सबसे बड़ा मुददा है। सभी पार्टियों को इस मुददे पर स्पष्ट होना होगा। यूपीए सरकार का नेतृत्व करने वाली कांग्रेस भी इस मुददे को नजरअंदाज नहीं कर सकती, हालांकि उसकी सरकार ने भ्रष्टाचार के सारे रिकार्ड तोड़े और एक के बाद एक उजागर हो रहे भ्रष्टाचार पर कुछ भी ऐसा नहीं किया, जिससे लोगों को लगता कि वह इसके खिलाफ थोड़ी भी गंभीर है। उसे कांग्रेस को भी अन्य पार्टियों की तरह इस मसले पर खुलकर सामने आना होगा और महज यह कहने से काम नहीं चलेगा कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ है। भ्रष्टाचार हमारी अर्थव्यवस्था ही नहीं, बलिक लोकतंत्र के लिए भी खतरा बन गया है और इसके खिलाफ देश में वातावरण भी बन गया है। राजनैतिक पार्टियों को इस बुरार्इ को दूर करने के लिए कृतसंकल्प होना ही पड़ेगा।