पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 21 फीसदी मत मिले थे और महज 8 विधानसभा सीटों पर जीत से उसे संतोष करना पड़ा था, जबकि आम आदमी पार्टी को 29 फीसदी मत मिले थे और उसे 20 सीटें प्राप्त हुर्इ थीं। भारतीय जनता पार्टी को साढ़े 33 फीसदी मत मिले थे और उसे 31 सीटों पर जीत हासिल हुर्इ थी।

पिछले विधानसभा चुनाव की तरह इस बार भी मुख्य मुकाबले में भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी ही होगी। पिछले साल विधानसभा चुनाव में मतदान के पहले आम आदमी पार्टी ने अपने एक सर्वेक्षण में पाया था कि विधानसभा में जो उन्हें मतदान करना चाहते हैं, उनमें 31 फीसदी मतदाता प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी को पसंद करना चाहेंगे।

जाहिर है, यदि आम आदमी पार्टी को वोट देने वाले मतदाता अपनी पसंद को बरकरार रखें, तो भारतीय जनता पार्टी को दिल्ली की सातों लोकसभा सीटों को जीतने में कोर्इ परेशानी नहीं होगी, लेकिन केजरीवाल के मुख्यमंत्री पद पर शपथ लेने के बाद मतदाताओं की पसंद भी अब बदल गर्इ है। भारतीय जनता पार्टी अब यह दावा नहीं कर सकती कि आम आदमी पार्टी के करीब एक तिहार्इ मतदाता उसे मत डालेंगे।

दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी के शुरुआती समर्थकों में भी इसके प्रति उत्साह कम हुआ है। उनमें से अनेक इसके खिलाफ भी हो गए हैंं। इसलिए नव निर्मित यह पार्टी यह दावा नहीं कर सकती कि जिन लोगों ने इसे विधानसभा चुनाव में मत डाले थे, वे एक बार फिर उसे ही पसंद करेंगे।

कांग्रेस पार्टी को सबसे ज्यादा नुकसान होता दिखार्इ दे रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव के समय लोगों को लग रहा था कि मुख्य मुकाबले में कांग्रेस ही है। इसके कारण भी अनेक भाजपा विरोधी लोगों ने कांग्रेस को ही पसंद किया। मुसिलम मतदाता इसके उदाहरण हैं। किसी भी मुसिलम बहुल क्षेत्र में आम आदमी पार्टी का कोर्इ उम्मीदवार नहीं जीता। जितने मुसिलम विधायक जीत कर आए, उनके खिलाफ मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में भी आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार कहीं नहीं दिखे। जाहिर है मुसलमानों ने पिछले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को वोट दिया ही नहीं।

लेकिन इस बार कांग्रेस मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के साथ आ गया है। खासकर मुसिलम मतदाता आम आदमी पार्टी में ही भाजपा उम्मीदवारों की पराजित करने की संभावना देख रहे हैं। अब यदि कांग्रेस को पड़े मतों को एक तिहार्इ भी आम आदमी पार्टी की ओर आ जाता है, तो उसका मत प्रतिशत बढ़कर 36 हो जाएगा, पर इसकी शर्त यह है कि इसे विधानसभा में मिले मत इसके साथ बरकरार रहे।

आम आदमी पार्टी की अपने मूल समर्थक वर्ग में सिथति कमजोर हुर्इ है। इसका एक बड़ा कारण टिकटों को लेकर हुआ हंगामा है। पार्टी ने दावा किया था कि वे टिकटों के वितरण में पारदर्शिता बनाए रखेंगे और उन्हें ऊपर से नहीं थोपा जाएगा। लोगों से आवेदन आमंत्रित किए गए और आवेदकों को कहा गया कि वे कम से कम 1000 प्रस्तावकों के दस्तखत और मोबाइल नंबर के साथ आवेदन करें। हजारों लोगों ने काफी मेहनत करके आवेदन तैयार किया और दाखिल भी किया। लेकिन उसी बीच आरोप लगे कि उम्मीदवारों को पहले ही तय कर दिया गया है। बाद में जब उम्मीदवारों की घोषणा की गर्इ, तो यही पता चला कि कुछ उम्मीदवार तो पहले ही तय कर दिए गए थे और कुछ को बाहर से लाकर लोगों के ऊपर थोप दिया गया। इसके कारण आम आदमी पार्टी के अनेक संस्थापक सदस्य नाराज हो गए हैं। और अब यह पार्टी यह दावा नहीं कर सकती कि पिछले विधानसभा चुनाव में जो लोग इसके साथ थे, वे सारे के सारे अभी पार्टी के साथ ही बने हुए हैं।

जाहिर है, आम आदमी पार्टी के साथ नये लोग जुड़े हैं, तो पुराने लोग टूटे भी हैं। इसके कारण इसकी सही शकित का अभी अनुमान नहीं लगाया जा सकता, लेकिन इतना तय है कि दिल्ली में मुख्य मुकाबले भी भाजपा को चुनौती आम आदमी पार्टी ही दे रही है। (संवाद)