लेकिन मोर्चे में प्रधानमंत्री बनेगा कौन? कोर्इ एक या दो नेता अपना नाम नहीं चला रहे हैं, बलिक करीब दर्जन भर क्षेत्रीय नेता पीएम बनना चाहते हैं। उत्तर प्रदेश के मुलायम सिंह यादव अपनी चुनावी सभाओं में अपने आपको प्रधानमंत्री का दावेदार बताकर अपने समर्थकों से ज्यादा से ज्यादा सीटों पर जीत सुनिशिचत करने की मांग कर रहे हैं। मायावती भी खुद को प्रधानमत्री का दावेदार खुले रूप में कर रही हैं। पड़ोसी राज्य नीतीश कुमार अपने को प्रधानमंत्री के लिए सबसे योग्य नेता अपने एक चुनावी भाषण में कर चुके हैं। बिहार के पड़ोस में ही पशिचम बंगाल और आडिसा के मुख्यमंत्री ममता बनजी और नवीन पटनायक भी इस रेस में अपने को रहने का संकेत कर्इ बा दे चुके हैं। उत्तर भारत के इन नेताओं के अतिरिक्त दक्षिण के एच डी देवेगौड़ा भी एक बार और प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा रखते हैं। महाराष्ट्र के शरद पवार को यदि मौका मिले, तो वे भी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठकर बहुत खुश होंगे।

तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने भी संकेतों में खुद को प्रधानमंत्री पद के एक दावेदार के रूप में पेश कर दिया है। भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी से उनके अच्छे निजी ताल्लुकात रहे हैं। लेकिन वे प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी के नाम पर सहमत नहीं है, तो इसका कारण यही है कि वे खुद ही इस पद पर बैठना चाहती हैं और इसके लिए वे अपने प्रदेश के लोगों से सभी 39 सीटों पर उनके उम्मीदवारों को जीत दिलाने की मांग कर रही हैं। पांडिचेरी भी तमिलभाषी राज्य है। वहां की एक सीट पर भी वह लोगों से अपनी पार्टी के उम्मीदवार की जीत को सुनिशिचत करने के लिए कह रही हैं।

प्रधानमंत्री के इन उम्मीदवारों में यदि कोर्इ सबसे ज्यादा योग्य हैं, तो वह जयललिता ही हैं। वे दक्षिण की चारों भाषाओं को जानती हैं। हि'दी और अंग्रेजी पर भी उनकी अच्छी पकड़ है। वह फांसिसी भाषा भी जानती है। सात भाषाओं की जानकार जयललिता के पास सरकार चलाने का लंबा अनुभव भी है। वह अनेक बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं।

तमिलनाडु की राजनैतिक सिथति भी आज उनके माकूल है। वहां से वह ज्यादातर सीटों पर जीत हासिल कर सकती हैं। इसका कारण यह है कि प्रमुख विपक्षी दल डीएमके मे वहां अफरातफरी का माहौल है। करूणानिधि ने अपने बड़े बेटे को पार्टी से निष्कासित कर दिया है, जिसके कारण डीएमके कमजोर हो गर्इ है। इसका फायदा जयललिता और उनकी पार्टी को ही मिलना है।

ऐसे माहौल में यदि जयललिता के साथ ममता बनर्जी और मायावती आ जाए, तो फिर किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। वाम पार्टियों से गठबंधन टूटने के बाद ममता बनर्जी ने मायावती को फोन भी किया और अपने समर्थन का इजहार भी किया। मायावती ने अभी जयललिता से संपर्क नहीं किया है, लेकिन चुनाव के बाद वह ऐसा कर सकती हैं। जयललिता, ममता और मायावती की पार्टियों को मिली लोकसभा सीटों की संख्या अच्छी खासी हो सकती हैं। तीनों मिलकर तीसरे मोर्चे की धुरी तैयार कर सकती हैं, जिसके केन्द में जयललिता होंगी और अन्य क्षेत्रीय दल उस धुरी के इर्द गिर्द इकटठे हो सकते हैं।

पर जयललिता के साथ एक समस्या भी है। वह समस्या एक 28 साल पुराने मुकदमे से संबंधित है। वह मामला अब अंतिम चरण में पहुंच चुका है और उस पर फैसला अब जल्द ही आने वाला है। यदि वह फैसला जयललिता के खिलाफ जाता है और अगली सरकार के गठन के पहले ही आ जाता है, तो फिर उनके लिए मुशिकल हो जाएगी। (संवाद)