लेकिन दिगिवजय सिंह का विचार भाजपा के विचार से अलग था, क्यांकि वह तब सोनिया गांधी के विचारों को अभिव्यकित प्रदान कर रहे थे। सोनिया गांधी को भी तब यही लग रहा था कि माओवादियों के खिलाफ उस तरह की सशस्त्र कार्रवार्इ नहीं की जानी चाहिए, बलिक उनके साथ बातचीत चलार्इ जानी चाहिए, क्योंकि वे भटके हुए लोग हैं।

इसमें शक नहीं कि दिगिवजय सिंह की तरह ही सलमान खुर्शीद भी सोनिया गांधी के विचारों को व्यक्त करने की एक मशीन भर हैं। वह अनेक प्रकार के विवादों को जन्म देते रहे हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के समय तो उन्होंने निर्वाचन आयोग को ही चुनौती दे डाली थी। आयोग उन्हें मुसिलम आरक्षण के मसले पर अपना मुह बंद रखने के लिए कह रहा था और वे लगातार बोलते जा रहे थे। उन्होनें यहां तक कह डाला था कि पशमांदा मुसलमानों के पक्ष में आवाज उठाने से उन्हें कोर्इ नहीं रोक सकता। जाहिर है, वे निर्वाचन आयोग की सत्ता को ही चुनौती दे रहे थे। अब वे निर्वाचन आयोग को चुनौती देते हुए कह रहे हैं कि क्या वहां बैठे तीन आयुक्त यह निर्णय करेंगे कि चुनाव प्रचार के दौरान नेता क्या बोलें।

आयुक्तों की सख्या पर बल देने का एक खास मकसद है। पहले निर्वाचन आयोग में एक ही आुक्त हुआ करते थे, जिन्हें मुख्य चुनाव आयुक्त कहा जाता था। जब टी एन शेषन मुख्य चुनाव आयुक्त थे, तो उन्होंने सरकार से स्वतंत्र होकर निर्णय लेना शुरू कर दिया था और उसके कारण सरकार में बैठे लोगों को असुविधा होने लगी थी। तब उनकी ताकत करने के लिए आयोग में दो और आयुक्तों का प्रावधान कर दिया गया। एक मुख्य आयुक्त के अलावा दो और आयुक्तो की नियुकित की व्यवस्था कर दी गर्इ। टी एन शेषन तो रिटायर होकर आयोग से चले गए और फिर आयोग तीन सदस्यीय हो गया, लेकिन शेषन ने जो परंपरा बना दी थी, वह जारी रही। आयोग सरकार से स्वतंत्र होकर निर्णय लेता रहा और वह अभी तक होता आ रहा है।

लेकिन कांग्रेस को आयोग की वह स्वतंत्रता पसंद नहीं है। इसके कारण वह जब तब उसका विरोध करती रहती है। आयोग स्वतंत्र रूप से कार्रवार्इ करते हुए अन्य पार्टियों के लिए भी असुविधाजनक सिथति पैदा करता है, पर उस पर सबसे ज्यादा हमला कांग्रेस की तरफ से ही होता है। इस बार तो खुर्शीद के आयोग पर हुए हमले का कांग्रेस भी समर्थन कर रही है। जाहिर है यह तभी हो सकता है, जब सोनिया गांधी का भी उसे समर्थन हासिल हो।

सलमान खुर्शीद सिर्फ निर्वाचन आयोग पर ही हमला नहीं कर रहे हैं, बलिक उनके हमले की जद में न्यायपालिका भी है। उन्हें यह पसंद नहीं कि न्यायपालिका नीतियां तय करे। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसले राजनेताओं पर भारी पड़ रहे हैं। एक फैसले मे तो सुप्रीम कोर्ट ने दो साल से ज्यादा की सजा पाए सांसदों और विधायको की सदस्यता रदद करते हुए उन्हें दुबारा चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी। इसके कारण लालू यादव जैसे लोग अब चुनाव नहीं लड़ पा रहे हैं। अब सुप्रीम कोर्ट ने सांसदों और विधायकों से संबंधित उन मुकदमों की सुनवार्इ 6 महीनें में पूरा करने का आदेश जारी कर दिया, जिसमें दो साल से ज्यादा सजा का प्रावधान है। इन दोनों फैसलों से हमारे देश का राजनैतिक वर्ग बौखला गया है और सलमान खुर्शीद द्वारा सुप्रीम कोर्ट पर किया जा रहा वह हमला उसी बौखलाहट का नतीजा है। (संवाद)