2014 का यह चुनाव अन्य चुनावों से कई मायनों में अलग है। चुनावी परिदृश्य इस तरह से धुंधला है कि कोई संभावित विजेता नहीं दिखाई देता है। कांग्रेस सांप्रदायिक विभाजन पर आश्रित होकर चुनाव लड़ रही है, तो भारतीय जनता पार्टी बदलाव पर जोर दे रही है। लेकिन दोनों जनता की आकांक्षाओं पर खरी नहीं उतर रही हैं। चुनाव के बाद दोनों के सामने मुश्किल भरे समय आने वाले हैं। कांग्रेस और भाजपा से अलग लगभग आधा दर्जन नेता ऐसे हैं, जो प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा रखते हैं। आम आदमी पार्टी के उदय से परिदृश्य को और भी अनिश्चित बना दिया है।
चुनाव के बाद तीन तरह की संभावना हो सकती हैं। एक संभावना कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए की सरकार बनने की है। लेकिन इसकी संभावना बहुत ही कम है। इसका कारण यह है कि कांग्रेस की ताकत लगातार कम होती जा रही है। सरकार अनेक घोटालों में शामिल रही है और लोगों का गुस्सा इसके खिलाफ है। यह चुनाव सोनिया गांधी परिवार के राजनीति में रहने का एसिड टेस्ट भी होगा। सोनिया गांधी 1998 में कांग्रेस की अध्यक्ष बनी थी। 1999 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस ने उनके नेतृत्व में लड़ा था, जिसमें कांग्रेस ने अबतक का सबसे खराब प्रदर्शन किया था। उसे लोकसभा में मात्र 112 सीटें हासिल हुई थी। सोनिया उस समय लोकसभा में विपक्ष की नेता बनीं। 2004 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की स्थिति बेहतर हुई। भाजपा को उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा, जिसके कारण यूपीए सत्ता में आ गई। इसे सोनिया गांधी की जीत के रूप में प्रचारित किया गया।
लेकिन असली जीत कांग्रेस की 2009 के लोकसभा चुनाव में हुई। उसे लोकसभा मे 200 से ज्यादा सीटें हासिल हुईं। और उसके नेतृत्व वाले यूपीए बहुमत के पास पहुंच गया। यह चुनाव उसके लिए अब काफी मायने रखता है, क्योंकि राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेय व्यवहारिक रूप से यह चुनाव लड़ रही है, हालांकि सोनिया गांधी अभी भी कांग्रेस की अध्यक्ष हैं। यदि कांग्रेस इसमें हारती है, तो राहुल के नेतृत्व को चुनाव के बाद निश्चित रूप से चुनौती मिलेगी। अभी तो हाल यह है कि दिग्विजय सिंह, पी चिदंबरम और जी के बासन जैर वरिष्ठ कांग्रेस नेता चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। आंध्र प्रदेश कभी कांग्रेस का सबसे बड़ा गढ़ हुआ करता था, लेकिन इस समय कांग्रेस नेताओं की वहां जाने की हिम्मत तक नहीं है। तेलंगाना के गठन ने कांग्रेस का सूफड़ा वहां साफ कर दिया है। तमिलनाडु में आज कांग्रेस का कोई सहयोगी नहीं है। उसे वहां अकेले चुनाव लड़ना पड़ रहा है। 7 राज्य ऐसे हैं, जहां कांग्रेस और भाजपा की सीधी भिड़ंत है। यूपीए लगातार सिकुड़ रहा है और कोई पार्टी इसकी ओर आने के लिए तैयार नहीं दिख रही है। कांग्रेस 100 से ज्यादा सीटें पाने के लिए भी संघर्ष करती दिखाई पड़ रही है।
दूसरी संभावना भाजपा के नेतृत्व मंे एनडीए की सरकार बनने की है। भाजपा के हौसले बुलंद दिख रहे हैं। उसके नेता नरेन्द्र मोदी बड़ी बड़ी सभाएं संबोधित कर रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी के सबसे बड़ी पार्टी बनने की भविष्यवाणी की जा रही है। लेकिन सरकार बनाने के लिए इसे भी चुनाव के बाद नये सहयोगियों की तलाश करनी होगी। अभी तक तो यह मोदी के जादू पर निर्भर है। संघ परिवार भी मोदी के लिए काम कर रहा है। फिर भी स्थिति उतनी बेहतर नहीं है, जितना भाजपा के नेता दावा कर रहे हैं। यदि भाजपा को 200 से ज्यादा सीटें हासिल होती हैं, तोे मोदी प्रधानमंत्री बन जाएंगे। यदि सीटों की संख्या 160 से 180 तक ही सीमित रहती है, तो भाजपा को कोई अन्य नेता पीएम बन सकता है।
तीसरी संभावना किसी गैर भाजपा सरकार की है, जिसे कांग्रेस का समर्थन मिल रहा हो। गैर भाजपा गैर कांग्रेस पार्टियां आपस में मार्चाबंदी कर सकती हैं। इस मोर्चे में अनेक छोटे छोटे दल हो सकते हैं। (संवाद)
चुनाव परिदृश्य अभी भी है अनिश्चित
भाजपा और कांग्रेस दोनों को चाहिए और सहयोगी
कल्याणी शंकर - 2014-03-21 16:24
राजनैतिक दलों द्वारा अपने उम्मीदवारों की घोषण के बाद जो कुछ दिखाई पड़ रहा है वह बहुत ही दिलचस्प है। गठबंधन भी बन रहे हैं। वे अबतक पूरे भी हो चुके हैं। चुनाव अभियान भी तेज हो गया है और बड़े नेता देश भी का दौरा कर रहे हैं। 7 अप्रैल से 12 मई तक होने वाले मतदान में 81 करोड़ से भी ज्यादा मतदाता भाग लेंगे। यह आबादी यूरोप की कुल सम्मिलित आबादी से भी ज्यादा है।