भाजपा में पार्टी के अंदर विरोध के स्वर उभर रहे हैं। सबसे बड़ा विरोध फूलचंद वर्मा की ओर से आया है। देवास लोकसभा क्षेत्र से वे 5 बार चुनाव जीत चुके हैं। लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव में उनकी 91 मतों से हार हो गई थी। कांग्रेस उम्मीदवार सज्जन सिंह वर्मा ने उन्हें पराजित किया था। उनका कहना है कि चूंकि उनकी हार बहुत ही मामूली मतों से हुई थी, इसलिए टिकट पाने का सहज दावा उन्हीं का बनता था। लेकिन पार्टी ने किसी और को टिकट दे दिया।

भाजपा कार्यकत्र्ता इस बात को लेकर भी नाराज हैं कि दो क्षेत्रों से उन्हें उम्मीदवार बना दिया गया है, जो दो महीने पहले ही पार्टी में आए थे। भिंड और होसंगाबाद से ऐसे ही दो लोगों को पार्टी ने उम्मीदवार बना दिया।

भिंड से उम्मीदवार बनाए गए भगीरथ प्रसाद एक रिटायर आइएएस अधिकारी हैं। कांग्रेस के टिकट पर उन्होंने 2009 का चुनान लड़ा था और हार गए थे। उन्हें इस बार भी वहां से कांग्रेस ने लोकसभा का टिकट दिया, पर जिस दिन उन्हें कांग्रेस का टिकट मिला, उसी दिन उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा भी दे दिया और उसी दिन भाजपा में शामिल भी हो गए।

भगीरथ प्रसाद का कहना है कि उन्होंने कांग्रेस से त्यागपत्र इसलिए दे दिया, क्योंकि उनकी प्रतिभा को वहां सही सम्मान नहीं मिला। पर सच्चाई कुछ और है। आइएएस से सेवानिवृत होने के बाद उन्हें इन्दौर विश्वविद्यालय का कुलपति बना दिया गया था। इसके अलावा कांग्रेस ने उन्हें 2009 में भी टिकट दिया और 2014 में भी। उनकी दूसरी बीबी को मेहरुनिसा परवेज को पद्मश्री से सम्मानित किया गया और राज्य महिला आयोग का सदस्य भी बनाया गया।

उदय प्रताप सिंह एक अन्य दलबदलू हैं, जिन्हें भारतीय जनता पार्टी ने होसंगाबाद से टिकट दिया है। वे इस सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में 2009 में विजयी हुए थे। पिछले साल नवंबर महीने में उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था। विधानसभा चुनाव के समय उन्होंने ऐसा किया था।

कुछ अन्य क्षेत्रों में भी भाजपा के कार्यकत्र्ता नाराज हैं, क्योंकि बाहरी लोग उनके ऊपर थोप दिए गए हैं। उदाहरण के लिए अटल बिहारी वाजपेयी के भतीजा अनूप मिश्र को मोरैना से लड़ने को कहा गया है। दिल्ली से आ रही प्रचार सामग्री में शिवराज सिंह चैहान की उपेक्षा कर दिए जाने के कारण भी लोगों में नाराजगी है। नरेन्द्र मोदी के बड़े बड़े होर्डिंग्स लगाए जा रहे हैं और शिवराज सिंह चैहान की उसमें भी उपेक्षा की जा रही है। चैहान के समर्थकों का कहना है कि मुख्यमंत्री की उपेक्षा कर नरेन्द्र मोदी चुनाव में जीत नहीं दिलवा सकते।

कांग्रेस के अंदर भी विरोध के स्वर तेज हो रहे हैं। सबसे तेज विरोध आरिफ अकील ने किया। वे मध्यप्रदेश के अकेले मुस्लिम विधायक हैं। अकील का कहना है कि कांग्रेस को चाहिए था कि वह उन्हें भोपाल लोकसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाती। भोपाल में मुस्लिम मतदाताओं की अच्छी संख्या है। इसलिए यदि किसी एक क्षेत्र से मध्यप्रदेश में कोई मुस्लिम चुनाव जीत सकता है, तो वह भोपाल ही है। अकील 4 बार से मध्यप्रदेश विधानसभा में सदस्य हैं।

भोपाल से भाजपा नेता कैलाश जोशी सांसद हैं। उन्होंने इस बार चुनाव न लड़ने का फैसला किया है और वे चाहते हैं कि यहां से लालकृष्ण आडवाणी चुनाव लड़ें।

जबलपुर से कांगे्रस ने विवके तन्खा को अपना उम्मीदवार बना दिया है। वे एक नामी वकील हैं। उनकी उम्मीदवारी का भी कांग्रेसजन विरोध कर रहे हैं, क्योंकि वे कभी भी कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय नहीं रहे हैं। जाहिर है, दोनों मुख्य पार्टियों में टिकट वितरण को लेकर काफी रोष है। (संवाद)