यह संघर्ष दिखाई भी पड़ रहा है। सुषमा स्वराज नाराज हैं। कर्नाटक में यदूरप्पा को पार्टी में लेने का वह विरोध तो पहले ही कर रही थीं। अब बी श्रीमालू को भी पार्टी मंे ले लिया गया है और उन्हें टिकट भी दे दिया गया है। यह नरेन्द्र मोदी के इशारे पर ही किया गया। उतना काफी नहीं था। जसवंत सिंह को टिकट राजस्थान से नहीं दिया गया। सबसे बड़ी बात तो यह हुई कि लालकृष्ण आडवाणी को भी बहुत अपमान के बाद गांधीनगर से टिकट दिया गया।
शिवसेना को यह अच्छा नहीं लगा कि आडवाणी को टिकट देने में इस तरह का रवैया भाजपा ने क्यों अपनाया। वे पार्टी के सबसे बुजर्ग नेता हैं। पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान वे भाजपा के प्रधानमंत्री उम्मीदवार भी थे। इसके बावजूद उनको टिकट देने में देरी की गई। उन्हें तो टिकट कायदे से पहली सूची में ही दे दिया जना चाहिए था। पर भाजपा की एक के बाद एक सूची आती रही और सबमें आडवाणी का नाम नदारद था। आडवाणी गांधीनगर से टिकट पाने को लेकर इस तरह से अनिश्चय के माहौल में जी रहे थे कि उन्हें एक बार खुद सार्वजनिक तौर पर कहना पड़ा कि वे गांधीनगर से ही चुनाव लड़ेंगे। उनकी उस सार्वजनिक घोषणा के बाद भाजपा को आधिकारिक तौर से स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए थी। पर वैसा नहीं किया गया और आडवाणी के नाम आने का इंतजार होता रहा।
फिर बात यह सामने आने लगी कि गांधीनगर से आडवाणी चुनाव हार भी सकते हैं, क्योंकि हो सकता है वहां के स्थानीय कार्यकत्र्ता उनको सहयोग ही नहीं करें। उसके बाद तो आडवाणी ने गांधीनगर से चुनाव लड़ने की अपनी इच्छा का ही त्याग कर दिया और कहने लगे कि वे भोपाल से चुनाव लड़ेंगे। अंत में उन्हें टिकट गांधीनगर से ही दिया गया। भोपाल से चुनाव लड़ने की उनकी इच्छा को दरकिनार कर दिया गया।
भाजपा के अन्य अनेक वरिष्ठ नेता सहज महसूस नहीं कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के कलराज मिश्र, लालजी टंडन और मुरली मनोहर जोशी सबके साथ वह हो रहा है, जो पहले उनके साथ कभी नहीं हुआ। जोशी बनारस से ही चुनाव लड़ना चाहते थे। पर उन्हे ंवहां से हटा दिया गया। टंडन लखनऊ से सांसद हैं। वे वहीं से एक बार फिर लड़ना चाहते थे, लेकिन उनको भी वहां से हटा दिया गया। कलराज मिश्र को भी उनकी पसंद का क्षेत्र कानपुर नही दिया गया। उन्हें वहां भेज दिया गया, जहां कोई और चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा था। देवरिया के सूर्य प्रताप शाही नाराज हो गए। वे भी उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष रह चुके हैं। यानी उत्तर प्रदेश में तो अनेक नेताओं की ऐसी तैसी हो गई। यह सब किया राजनाथ सिंह ने, लेकिन वे मोदी के समर्थन के बिना यह सब नहीं कर सकते थे।
जहां जोशी और आडवाणी को मनपसंद सीटें नहीं मिली, वहीं दूसरी तरफ राजनाथ सिंह और अरुण जेटली को वे सीटें मिलीं, जिनसे वे लड़ना चाहते थे। लखनऊ से ठंडन को हटाकर राजनाथ खुद वहां के पार्टी उम्मीदवार बन गए, जबकि अमृतसर से सिद्धु को हटाकर अरुण जेटली वहां से उम्मीदवार बन बैठे।
जहिर है नरेन्द्र मोदी राष्ट्रीय राजनीति में वही कर रहे हैं, जो वे गुजरात की राजनीति में कर चुके हैं। वहां उन्होंने भाजपा नेताओं को ठिकाने लगा दिया। शंकर सिंह बाघेला को भाजपा से खदेड़ डाला। कांशीराम राणा की वहां नहीं चलने दी। केशूभाई पटेल की भी उन्होंने ऐसी तैसी कर दी। इस बार मोदी ने हिरेन पाठक को भी नहीं छोड़ा। उनका टिकट काट दिया गया। अब यही वे केन्द्र की राजनीति मे आकर भी कर रहे हैं। (संवाद)
मोदी हैं भाजपा के नये रैम्बो
पार्टी के शीर्ष पर संघर्ष और होगा तेज
अमूल्य गांगुली - 2014-03-26 11:07
जब शिवसेना पते की बात करे, तो उसे गंभीरता से लेना चाहिए। उसने अभी कुछ दिन पहले कहा है कि भारतीय जनता पार्टी में मोदी युग की शुरुआत हो गई है, लेकिन आडवाणी युग अभी भी समाप्त नहीं हुआ है। इससे पता चलता है कि भारतीय जनता पार्टी में अभी सत्ता संघर्ष समाप्त नहीं हुआ है।