चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों को गंभीरता से लेने वालों में ममता बनर्जी भी अब शामिल हो गई हैं। हालांकि वे बातचीत में कहती हैं कि ये सर्वे सही नहीं हैं, लेकिन जिस तरह से वे भारतीय जनता पार्टी और उसके प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी पर हमले कर रही हैं, उससे साफ लगता हैं कि वे उन सर्वे नतीजों से आतंकित हो गई हैं, जिनके अनुसार भारतीय जनता पार्टी की पश्चिम बंगाल में स्थिति मजबूत हो रही है।
ममता द्वारा भारतीय जनता पार्टी पर हमला करना नई बात है। इसके पहले वे अपने भाषणों में भारतीय जनता पार्टी की चर्चा तक नहीं करती थीं। लेकिन अब वे इसके बारे में जनसभाओं और मीडिया चैनलों के सामने जमकर बोलती हैं। वे भाजपा को दंगाइयों की पार्टी बताती है। उनका इशारा 2002 में हुए गुजरात दंगों की तरफ होता है।
ममता बनर्जी भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली अटल सरकार में कभी मंत्री भी थी। भाजपा से अपने पुराने रिश्तों के बारे में कहती हैं कि उन्हें जब पता चला कि वह एक सांप्रदायिक पार्टी है, तो उन्होंने उससे इस्तीफा दे दिया।
हालांकि उनका यह कहना गलत है। सच तो यह है कि उन्होंने 2001 में अटल सरकार से उस समय इस्तीफा दिया था, जब तहलका ने भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष को घूस लेते रंगे हाथ पकड़ा और रक्षा सौदे में भी दलाली की बात उजागर की थी। उस समय ममता बनर्जी के खिलाफ भी सबूत होने की बात हो रही थी। उनके खिलाफ मीडिया में कोई उद्घाटन हो, उसके पहले ही उन्होंने वाजपेयी मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया। वे वाजपेयी मंत्रिमंडल में कुछ महीने तक बिना विभाग की मंत्री भी बनी रहीं। उनकी नजर उस समय रेल मंत्रालय पर थी, जो नीतीश के पास जा चुकी थी और वे उसे वापस चाहती थीं, पर वैसा संभव नहीं हो पा रहा था। इसलिए वे वाजपेयी सरकार मे एक असंतुष्ट मंत्री के रूप में कुछ महीने तक बिना विभाग के काम करती रहीं।
ममता बनर्जी का भाजपा से संबंध तोड़ने का कारण कुछ भी हो सकता है, लेकिन वह सांप्रदायिकता नहीं था। न ही मुसलमानों की चिंता करते हुए उन्होंने अटल सरकार छोड़ा था। लेकिन जनसभाओं में वे बहुत शान से कहती हैं कि उन्होंने भाजपा के सांप्रदायिक होने की जानकारी मिलने के बाद उसे छोड़ दिया। भाजपा नेताओं पर बाबरी मस्जिद तोड़ने के मुकदमे उस समय चल रहे थे, जब ममता ने उससे हाथ मिलाया था। राम रथ यात्रा से भी वह परिचित थीं और भाजपा द्वारा सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने की राजनीति से भी वे अपरिचित नहीं थीं। इसके बाद भी उन्होंने उससे हाथ मिलाया और जब उसका साथ छोड़ा, तो उस समय गुजरात का दंगा भी नहीं हुआ था, फिर भी वे अपने को मुस्लिम हितों की रक्षक के रूप में पेश करती हुई भाजपा के खिलाफ आग उगल रही है।
यदि वे ऐसा कर रही है, तो इसका ठोस कारण है और वह यह है कि पश्चिम बंगाल में भाजपा का ग्राफ बढ़ रहा है। यहां करीब डेढ़ करोड़ हिंदी भाषी लोग हैं। वे पहले कांग्रेस का समर्थन किया करते थे। उसके कमजोर होने के बाद वे ममता के समर्थक बन गए। पर इधर वे भाजपा की ओर आकर्षित हो रहे हैं। इसका एक कारण बिहार के एक टैक्सी ड्राइवर की बेटी के साथ बलात्कार और उसकी हत्या के बाद ममता ने बहुत ही असंवेदनशील रवैया दिखाया था।
यदि भाजपा का ग्राफ बढ़ता है, तो इसका सीधा नुकसान ममता बनर्जी को होगा, क्योंकि भाजपा उसको मिलने वाले वोट ही काट रही है। इसके कारण भाजपा को सीटें मिले या न मिले, पर ममता की पार्टी को नुकसान जरूर हो जाएगा और फायदा में रहेगा लेफ्ट फ्रंट। यही कारण है कि ममता बनर्जी ने भाजपा पर हमला तेज कर दिया है। उनकी नजर मुस्लिम मतों पर है, जो प्रदेश की आबादी का 25 प्रतिशत है। (संवाद)
पश्चिम बंगाल में भी भाजपा का बढ़ रहा है समर्थन
ममता बनर्जी ने मोदी पर हमले तेज किए
आशीष बिश्वास - 2014-03-27 14:46
कोलकाताः पश्चिम बंगाल में चुनाव लड़ रहे मुख्य पार्टियों के अधिकांश नेता चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों को गलत बता रहे हैं। वे इन्हें बोगस कहते हैं। सिर्फ भारतीय जनता पार्टी ही इसे सही मान रही है, लेकिन अन्य पार्टियों के व्यवहार से साफ लगता है कि उन्हें भी कहीं न कहीं लगता है कि ये सर्वे सही हैं। और अपनी रणनीति बनाते समय इन सर्वेक्षणों के नतीजों को गंभीरता से ले रहे हैं।