इनमें सबसे वरिष्ठ हैं रीता बहुगुणा जोशी, जो प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा की बेटी हैं। वे लखनऊ से चुनाव लड़ रही हैं। उनके अलावा संजय गांधी के बेटे वरुण गांधी हैं, संजय की पत्नी मेनका भी हैं। मुलायम सिंह यादव के वंश के अनेक लोग हैं, जिनमें उनकी बहु और अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव भी शामिल हैं। जितेन्द्र प्रसाद के बेटे जितिन प्रसाद भी वंशवाद का लाभ उठा रहे हैं।
बिहार में ऐसे लोगों की संख्या कम हैं, लेकिन उनमें से कुछ नाम बहुत बड़े हैं। रामविलास पासवान ने अपने बेटे चिराग को मैदान में उतारा है। वे अपने भाई रामचन्द्र पासवान को भी चुनाव लड़वा रहे हैं। दूसरी तरफ लालू यादव ने अपनी बेटी मीसा भारती को मैदान में उतार रखा है। उनकी पत्नी राबड़ी देवी सारण से चुनाव मैदान में हैं। जयनारायण निषाद के बेटे अजय निषाद भी चुनाव में कूद चुके हैं और उन्हें भारतीय जनता पार्टी से टिकट मिला है।
कर्नाटक में आधे दर्जन उम्मीदवार वंशवादी राजनीति के परिणाम हैं। उनमें एक एचडी कुमारस्वामी हैं, जो कर्नाटक के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं, लेकिन राजनीति में वे अपने पिता एचडी देवेगौड़ा की बदौलत हैं। उन पर आरोप लगाया जाता है कि उन्होंने कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी को मजबूत बनाने का आधार प्रदान किया। एस सीट पर पर तो भाई और बहन आपस में ही उलझे हुए हैं। वे पूर्व मुख्यमंत्री बंगारप्पा की संतान हैं। बंगारप्पा की बेटी गीता शिवकुमार जनता दल (सेकुलर) के टिकट से शिमोगा से चुनाव लड़ रही हैं, जहां उनका सामना भारतीय जनता पार्टी के बी एस यदुरप्पा के साथ हैं। लेकिन उनका भाई कुमार बंगारप्पा उनका खेल बिगाड़ने में लगे हुए हैं और वे खुद वहां से उम्मीदवार बन गए हैं।
तमिलनाडु में बेटे ही नहीं, दामादों ने भी वंशवादी रंग जमा रखा है। कांग्रेस ने कुमारमंगलम खानदान के मोहन कुमारमंगलम को प्रत्याशी बनाया है। उनके दादा एम कुमारमंगलम और पिता आर कुमारमंगलम भी कांग्रेस के बड़े नेता हुआ करते थे। वे अभी सालेम से लड़ रहे हैं। चिदंबरम ने इस बार खुद चुनाव नहीं लड़कर अपने बेटे को मैदान में उतारा है। वह शिवगंगा से चुनाव लड़ रहे हैं।
असम में मुख्यमंत्री तरूण गोगोई के बेटे गौरव गोगोई के अतिरिक्त पूर्व केन्द्रीय मंत्री संतोष मोहन देव की बेटी सुष्मिता देव भी चुनाव मैदान में हैं।
वंशवादी राजनीति अब सिर्फ गांधी परिवार, कश्मीर के अब्दुल्ला परिवार, हरियाणा के चैटाला परिवार, ओडिसा के पटनायक परिवार, तमिलनाडु के करुणानिधि परिवार अथवा उत्तर प्रदेश के मुलायम परिवार तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह देश के कोने कोने में फल फूल रहा है।
यह कोई गुप्त रहस्य नहीं रह गया है कि वर्तमान लोकसभा के सदस्यों मंे से 29 फीसदी सदस्य राजनैतिक वंशवाद के कारण संसद में हैं। इसके कारण देश की राजनैतिक प्रक्रिया दूषित हो रही है और संसद के काम काज पर भी प्रभाव पड़ रहा है। वंशवाद के कारण तेजतर्रार राजनीतिज्ञ आगे नहीं बढ़ पाते हैं और परिवार से जुड़े लोग योग्यता की कमी के बावजूद आगे बढ़ जाते हैं। यह हमारे देश के लिए बहुत ही खतरनाक है। (संवाद)
भारत
राजनैतिक पार्टियों में वंशवादी बुखार जोरों पर
कांग्रेस सूची में सबसे ऊपर
हरिहर स्वरूप - 2014-03-31 17:04
जिस तरह से देश के कोने कोने में सभी पार्टियों मंे वंशवाद का प्रचलन इस तरह बढ गया है कि अब हम भारतीय लोकतंत्र को वंशवादी लोकतंत्र भी कह सकते हैं। हमारी राजनीति में वंशवाद कोई नई चीज नहीं है, लेकिन अब इसने अपनी गिरफ्त में लगभग सभी पार्टियों को ले लिया है। उत्तर प्रदेश इस वंशवादी राजनीति की राजधानी कहा जा सकता है, जहां 26 उम्मीदवार इस समय वंशवादी राजनीति के कारण टिकट पा सके हैं। कांग्रेस में वैसे 10 उम्मीदवार हैं। समाजवादी पार्टी ने 7 वैसे उम्मीदवार खड़े किए हैं। बहुजन समाज पार्टी के 6 और भारतीय जनता पार्टी के 4 उम्मीदवार भी इस श्रेणी में हैं।