इस बार दझिण भारत दोनों राष्ट्रीय पार्टियों के लिए निराशा का कारण बनने जा रहा है। भारतीय जनता पार्टी तो कर्नाटक के अलावा किसी अन्य राज्य में कोई ताकत ही नहीं है। कांग्रेस को पिछले चुनाव में आंध्रप्रदेश में शानदार सफलता मिली थी। तमिलनाडु में करुणानिधि के डीएमके को सफलता हासिल हुई थी। उन दोनों राज्यों की यूपीए की सरकार बनाने में महत्चपूर्ण भूमिका थी, क्योंकि एनडीए को अपने मजबूत प्रदेशों में कोई खास सफलता हासिल नहीं हुई थी।

दक्ष्णि भारत में लोकसभा की 130 सीटें हैं। इनमें से 42 आंध्र प्रदेशमें हैं। विभाजन के बाद अब तेलंगाना में 17 और शेष आंध्र प्रदेश मंे 25 सीटें रह गई हैं। आंध्र प्रदेश हमेशा से कांग्रेस का गढ़ रहा है। एनटीरामाराव के तेलुगू देशम की अवधि को छोड़कर यहां हमेशा कांग्रेस की ही सरकार रही है। 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 29 सीटें मिली थीं, जो 2009 में बढ़कर 33 हो गईं। जाहिर है आंध्र प्रदेश की भूमिका दोनों बार केन्द्र की सरकार गठन में काफी महत्वपूर्ण रही।

पर इस बार आंध्र प्रदेश कांग्रेस के हाथ से निकल गई है। उसके विभाजन के कारण शेष आंध्र प्रदेश के लोग उससे काफी नाराज हैं। वहां दो नई पार्टियों का भी उदय हुआ है, जिसके कारण कांग्रेस की संभावना और भी धूमिल हो गई है। जगनमोहन रेड्डी की पार्टी सबसे आगे दिखाई पड़ रही है। चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों की मानें तो जगनमोहन की पार्टी को 15 से 18 सीटें तक मिल सकती हैं।

आंध्र प्रदेश के निवर्तमान मुख्यमंत्री किरण रेड्डी ने अपनी एक अलग पार्टी बना ली है। अभिनेता चिंरजीवी के भाई पवन कल्याण ने भी अपनी पार्टी बना ली है, हालांकि उन्होंने घोषणा की है कि उनकी पार्टी चुनाव नहीं लड़ने जा रही है। चंद्रबाबू नायडू अपनी पुरानी प्रतिष्ठा पाने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं। भाजपा के साथ गठबंधन की उनकी बातचीत चल रही है। यह लगभग होने को है। यदि यह हो जाता है, तो इस गठबंधन को 8 से 10 सीटें हासिल हो सकती हैं।

तमिलनाडु में अबतक संघर्ष मुख्य रूप से डीएमके और आल इंडिया अन्ना डीएमके बीच ही होती रही है। एक के नेता करुणानिधि है, तो दूसरे की जयललिता। 1967 मंे सत्ता खोने के बाद कांग्रेस हमेशा इन दोनों में से किसी एक के साथ मिलकर चुनाव लड़ती रही है। पर पहली बार वह अकेली चुनाव लड़ने को बाध्य हो रही है। करुणानिधि के परिवार में फूट पड़ गई है। उसके कारण जयललिता की जीत की संभावना भी बढ़ गई है, हालांकि अपने गठन के बाद उनकी पार्टी पहली बार अकेली तमिलनाडु का चुनाव लड़ रही है। डीएमके ने कुछ छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन भी किया है, लेकिन उसे 10 से कम ही सीटों के मिलने की संभावना है। दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी ने तमिलनाडु की 5 पार्टियों के साथ एक गठबंधन बनाया है। उनमें एमडीएमके, पीएमके और डीएमडीके प्रमुख हैं।

भारतीय जनता पार्टी ने कर्नाटक में पहली बार विजय हासिल करके अपन सरकार बनाई थी। यदुरप्पा उसकी सरकार के मुख्यमंत्री थे, पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था। वे फिर भाजपा से ही बाहर हो गए थे। अब वे फिर भाजपा में वापस आ गए हैं, लेकिन इस बीच कर्नाटक की सत्ता फिर से कांग्रेस के हाथ मे चलीगई है। इस बार वहां मुकाबला कड़ा है। 6 पूर्व मुख्यमंत्री चुनाव मैदान में हैं। मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच में ही है, जिसमे कांग्रेस की स्थिति बेहतर दिखाई पड़ रही है। यहां लोकसभा की 28 सीटें हैं, जिनमें से पिछली बार 19 पर भाजपा की जीत हुई थी। इस बार कांग्रेस को करीब 15 सीटें आ सकती हं। एक या दो सीटों पर जनता दल (सेकुलर) की जीत भी हो सकती है। शेष पर भााजपा के उम्मीदवार जीतेंगे।

केरल में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ और सीपीएम के नेतृत्व वाले एलडीएफ के बीच मुकाबला है। कुछ समय पहले तक एलडीएफ भारी दिखाई पड़ रहा था, पर यूडीएफ ने अब माहौल अपने पक्ष मंे कर लियाहै। इसका कारण एलडीएफ के अंदर के मतभेद हैं।

दक्षिण के चारों में कांग्रेस की स्थिति भाजपा से बेहतर होगी। जयललिता की पार्टी को यदि 30 से ज्यादा सीटें मिलीं, तो केंन्द्र की सरकार बनाने में उसकी भूमिका महत्वपूर्ण हो जाएगी। (संवाद)