लेकिन भाजपा की ओर से उन्हें कोई हरी झंडी नहीं मिल रही थी। इसलिए उन्हें लाचार होकर अपनी पार्टी बनाना पड़ा है। उन्होंने अपने बेटे को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया है। खुद तो वे अध्यक्ष बन नहीं सकते, क्योंकि वे एक निर्दलीय लोकसभा सदस्य हैं। और दल बदल विरोधी कानून के अनुसार यदि कोई निर्दलीय सांसद किसी दल की सदस्यता हासिल करता है, तो उसकी सदस्यता समाप्त हो जाती है।
यही कारण है कि कल्याण सिंह ने जिस जनक्रांति पार्टी का गठन किया है, उसके वे औपचारिक सदस्य तक नहीं बन सकते। सवाल उठता है कि कल्याण सिंह की पार्टी की सफलता के कितने असार हैं? यदि खुद कल्याण सिंह की मानें तों उनकी पार्टी राज्य की सबसे मजबूत पार्टी बनकर उभरेगी। उनका मानना है कि मुसलमान मुलायम का साथ छोड़ चुके हैं। हिंदू भाजपा का साथ छोड़ चुके हैं। पूरे राज्य की जनता मायावती की बसपा से नाराज है। रंगनाथ मिश्र की रिपोर्ट पर अमल नहीं होने के कारण मुसलमान कांग्रेस से भी नाराज हैं। इसलिए उनकी नव नवनिर्मित पार्टी के सामने कहीं से कोई चुनौती नहीं है। और उन्होंने घोषणा कर रखी है कि विधानसभा के अगले आमचुनाव में वे उत्तर प्रदेश की सभी सीटों से अपनी पार्टी का उम्मीदवार खड़ा करेंगे।
लेकिन खुद कल्याण सिंह किस आधार की राजनीति करेंगे? पार्टी गठन के बाद उन्होंने अयोध्या दौरा किया और राम लला के दर्शन किए। जाहिर है अपनी राजनीति का बेड़ा पार लगाने के लिए उन्होने राम का आसरा ले रखा है। उनके मुख्यमंत्रित्वकाल में बाबरी मस्जिद को ढहाया गया था। मस्जिद गिरने के कारण उन्हें सुप्रीम कोर्ट से सजा भी मिल चुकी है। उन्होंने कोर्ट में मस्जिद बचाने का वचन दिया था, पर उस पर अमल नहीं कर सके। उसी के जुर्म में उन्हें सजा मिली थी और उसके लिए उन्होंने एक या दो दिनों की जेल की सजा भी भुगती थी।
सच कहा जाउ तो बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद अबतक उसके लिए सिर्फ एक व्यक्ति को सजा मिली है और वह व्यक्ति हैं कल्याण सिंह। जाहिर है बाबरी मस्जिद गिरने के बाद कल्याण सिंह ने न केवल अपनी उत्तर प्रदेश की सरकार गंवाई, बल्कि इसके लिए वे जेल की सजा भी काट चुके हैं। वे बहुत गर्व से कहते हैं कि उन्होने कारसेवकों पर गोली नहीं चलवाई और मस्जिद को गिरने दिया। यदि इसके लिए उन्हे अदालत से कोई सजा मिलती है, तो वे उस सजा को भी स्वीकार करने के लिए सहर्ष तैयार हैं।
यानी राममंदिर कल्याण सिंह की राजनीति का मुख्य बिंदु होगा। मस्जिद के विध्वंस को वे अपनी उपलब्धि बताएंगे और मंदिर निर्माण को वे अपनी राजनीति का लक्ष्य बनाएंगे। सवाल उठता है कि क्या इस राजनीति के बूते वे अपने आपकों उत्तर प्रदेश ही राजनीति में एक बड़ी ताकत बना पाएंगे? भाजपा पिछले कुछ सालों से उत्तर प्रदेश में मंदिर निर्माण को राजनैतिक मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही है, लेकिन वह सफल नहीं हो रही है। कल्याण सिंह के नेतृत्व में भी भाजपा ने पिछले अनेक प्रयास किए, लेकिन वे सारे के सारे प्रयास विफल रहे। सवाल यह उठता है कि यदि कल्याण सिंह भाजपा में रहकर राम मंदिर के मुद्दे को राजनैतिक मुद्दा बनाने मे सफल नहीं हो रहे थे, तो फिर वे भाजपा से बाहर रहकर इस मसले का राजनैतिक लाभ कैसे उठा पाएंगे?
कल्याण सिंह को पता है कि राममंदिर की राजनीति को अपने बूते उत्तर प्रदेश का मुख्य मसला नहीं बना पाएंगे। इसलिए उनकी नजर भाजपा के आमंत्रण पर लगी रहेगी। भाजपा का भी उत्तर प्रदेश में सफाया हो रहा है। वह अब प्रदेश में चैथे नंबर की पार्टी बन गई है। अगड़ी जातियों का उसका आधार कांग्रेस की ओर खिसक रहा है। मुसलमान उसके साथ कभी रहे नहीं और रह भी नहीं सकते। दलितों के बीच भी भाजपा कभी लोकप्रिय नहीं रही। मायावती वैसे भी राज्य के दलितों के लिए मुख्य आकर्षण है। जाहिर है, पिछड़े वर्ग ही भाजपा की राजनीति के मुख्य सामाजिक आधार हो सकते हैं। और उन्हें अपने साथ जोड़ने के लिए भाजपा कल्याण सिंह को अपने साथ जोड़ना चाहेगी।
भाजपा में कल्याण सिंह की वापसी में सबसे बड़ा रोड़ा पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह ही हैं। राजनाथ सिंह के साथ कल्याण का रिश्ता अच्छा नहीं रहा है। जब कल्याण मंत्री थे, तो राजनाथ सिंह की गिनती प्रमुख विक्षुब्धों में हुआ करती थी। कल्याण को मुख्यमंत्री पद से हटवाने में राजनाथ की भूमिका महत्वपूर्ण रही थी। जब भाजपा राजनाथ सिंह के मुख्यमंत्री रहते उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव लड़ रही थी, उस समय कल्याण सिंह राष्ट्रीय क्रांति पार्टी बनाकर अलग से चुनाव लड़ रहे थे। उसी चुनाव में भाजपा समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी से नीचे तीसरे स्ािान पर चली गई थी। जब राजनाथ सिंह के अध्यक्ष रहते भाजपा उत्तर प्रदेश के लोकसभा चुनाव लड़ रही थी, उस समय भी कल्याण सिंह भाजपा के विरोध में अपनी स्वर बुलंद कर रहे थे। उस चुनाव में तो भाजपा चैथे नंबर की पार्टी बन गई।
यानी कल्याण सिंह ने राजनाथ सिंह के नेत्त्व को आभाहीन बनाने में कभी किसी प्रकार की कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। यही कारण है कि राजनाथ सिंह कभी नहीं चाहेगे कि कल्याण दुबारा भाजपा में आएं। लंकिन राजनाथ सिंह अब भाजपा के अध्यक्ष नहीं रहे। अभी वे ताजा ताजा अध्यक्ष पद से हटे हैं, इसलिए उनकी बातों को पार्टी अभी भी महत्व दे रही है। पर कल्याण सिंह को उस समय का इंतजार रहेगा, जब राजनाथ सिंह के आभामंडल से नये अध्यक्ष गडकरी मुक्त हो जाएंगे। वैसे भी श्री गडकरी ने कल्याण सिंह जैसे नेताओं कों फिर से पार्टी में लेने की बात कर भी दी है। इसलिए कल्याण सिंह उस समय का इंतजार करेंगे, जब भाजपा में उनके लिए स्थिति अनुकूल हो जाए। (संवाद)
कल्याण सिंह की नई पार्टी: रामभरोसे राजनीति
उपेन्द्र प्रसाद - 2010-01-07 11:34
कल्याण सिंह ने अपनी नई पार्टी बना ली है। इस बार उन्होंने अपनी पार्टी का नात रखा है जन क्रांति पार्टी। पिछली बार उन्होंने अपनी पार्टी का नाम रखा था, राष्ट्रीय क्रांति पार्टी। अलग पार्टी बनाकर वे कितनी राजनैतिक सफलता हासिल करते हैं, इसका उनके पास अच्छा अनुभव हो चुका है। इसलिए इस बार उनकी पार्टी बनाने की इच्छा नहीं थी। मुलायम सिंह द्वारा ठुकरा दिए जाने के बाद उन्होंने भाजपा का राग अलापना शुरू कर दिया था। कहने लगे थे कि वे भाजपा को ही मजबूत बनाएंगे, क्योंकि वही पार्टी राम मंदिर का निर्माण करवा सकती है।