गुना और ग्वालियर एक दूसरे से सटे हुए हैं और दोनों उत्तर प्रदेश सीमा से लगे हुए हैं। गुना में इस बात की चर्चा नहीं है कि श्री सिंधिया चुनाव जीतेंगे या नहीं, बल्कि चर्चा इस बात की है कि वे कितने मतों से चुनाव जीतेंगे।
गुना और ग्वालियर से आजतक सिंधिया परिवार का कोई व्यक्ति कभी पराजित हुआ ही नहीं है। गुना से चुनाव लड़ने वाले सिंधिया चुनाव जीतने वाली तीसरी पीढ़ी के हैं। उनके सिंधिया वंश के किसी व्यक्ति की इस बार चैदहवीं जीत होगी। बजरंग दल के पूर्व अध्यक्ष जयभान सिंह पवैया से उनका यहां मुकाबला है।
2009 के लोकसभा चुनाव में ग्वालियर से ज्योतिरादित्या की बुआ यशोधाराजे सिंधिया की जीत हुई थी। उस समय वह भारतीय जनता पार्टी के टिकट से चुनाव लड़ रही थीं। अभी वे विधायक हैं और प्रदेश सरकार में मंत्री भी हैं। इसके कारण वे इस बार यहां से चुनाव नहीं लड़ रही हैं।
गुना लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व सिंधिया परिवार 1957 से ही कर रहा है। अबतक मात्र तीन बार ही वहां से परिवार के बाहर का कोई व्यक्ति जीत पाया है और भी तब जब सिंधिया परिवार का कोई व्यक्ति वहां से चुनाव लड़ ही नहीं रहा था। परिवार के बाहर के व्यक्ति की जीत भी इसी कारण हुई, क्योंकि उसे परिवार का समर्थन हासिल था।
राजमाता विजयाराजे सिंधिया गुना से 6 बार सांसद चुनी गईं। उनके पुत्र माधवराव सिंधिया यहां से 4 बार चुने गए और ज्योतिरादित्या तीन बार। ग्वालियर से यशोधाराव दो बार चुनी गईं और माधवराव 5 बार चुनाव जीते।
भारतीय जनता पार्टी की समस्या यह है कि वह यहां से ज्योतिरादित्या पर वंशवाद का आरोप नहीं लगा सकती, क्योंकि उसने खुद विजयाराजे सिंधिया के अलावा उनके परिवार की यशोदाराजे और वसंुधराराजे को राजनीति में आगे बढ़ाया है। वसुंधराजे तो राजस्थान की मुख्यमंत्री हैं और यशोदाराजे भाजपा के टिकट पर सांसद का चुनाव जीत चुकी हैं और इस समय वह मध्यप्रदेश की सरकार में मंत्री हैं।
जहां तक सिंधिया परिवार के सदस्यों का सवाल है, तो वे एक दूसरे के खिलाफ न तो चुनाव लड़ते हैं और न ही एक दूसरे के खिलाफ चुनाव प्रचार करते हैं। जब माधवराव सिंधिया कांग्रेस के उम्मीदवार होते थे, तो विजयाराजे सिंधिया ने कभी भी उनके खिलाफ भाजपा उम्मीदवार के लिए प्रचार नहीं किया। बेटे ने भी कभी मां के खिलाफ प्रचार नहीं किया। यशोदाराजे भी इस परंपरा को अपना रही हैं और उन्होंने गुना से ज्योतिरादित्या के खिलाफ प्रचार करने से मना कर रखा है, हालांकि पार्टी इसके लिए उन पर बहुत दबाव डाल रही हैं।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर इस बार ग्वालियर से चुनाव लड़ रहे हैं। कहा जा रहा है कि जिस मोरैना लोकसभा क्षेत्र के वे इस समय सांसद हैं, वहां उनकी स्थिति ठीक नहीं थी। इसलिए उन्होंने मोरैना से नहीं, बल्कि ग्वालियर से चुनाव लड़ने का फैसला किया। यहां उनका मुकबला कांग्रेस के अशोक सिंह से है। अशोक सिंह पिछली बार भी यहां से कांग्रेस के उम्मीदवार थे और भाजपा के यशोदाराजे से वे 27 हजार मतों के मामूली अंतर से पराजित हुए थे। तोमर इस बार मोदी लहर से आस लगाए हुए हैं।
ग्वालियर चंबल क्षेत्र के एक अन्य सीट भिंड से पूर्व नौकरशाह भगीरथ प्रसाद भाजपा टिकट से चुनाव लड़ रहे हैं। पिछली बार वे यहीं से कांग्रेस के उम्मीदवार थे और चुनाव हार गए थे। इस बार भी कांग्रेस ने उन्हें यहां से अपना उम्मीदवार बनाया था, पर उम्मीदवारी की घोषणा होने के एक दिन बाद ही उन्होंने भाजपा में शामिल होने की घोषणा कर दी। भाजपा ने उन्हें अपना टिकट भी दे दिया।
एक अन्य लोकसभा क्षेत्र राजगढ़ दो भाइयों के संघर्ष का 2009 में गवाह रहा है। उस समय दिग्विजय सिंह के भाई लक्ष्मण सिंह भाजपा से दुबारा इस सीट पर जीत की कोशिश कर रहे थे। नारायण सिंह कांग्रेस के उम्मीदवार थे। तब दिग्विजय सिंह ने कहा था कि उनके लिए खून के रिश्ते से ज्यादा जरूरी विचारधारा है और वे लक्ष्मण सिंह की हार सुनिश्चित करना चाहें। दिग्विजय सिंह ने अपनी घोषणा को अमली जाता पहना भी दिया और उनके भाई लक्ष्मण सिंह वहां से पराजित हो गए। इस बार फिर नारायण सिंह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं।
राजगढ़ कांग्रेस का गढ़ रहा है। 1991 के बाद भाजपा यहां से सिर्फ एक बार चुनाव जीती है। दिग्विजय ंिसंह यहां से दो बार चुनाव जीत चुके हैं और उनके भाई लक्ष्मण सिंह पांच बार यहां से चुनाव जीते हैं। इसके कारण कांग्रेस उम्मीदवार की जीत यहां आसान मानी जा रही है, लेकिन मोदी लहर में वे पराजित भी हो सकते हैं।
अन्य अनेक सीटों पर भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों की स्थिति अच्छी बताई जा रही है।(संवाद)
मध्यप्रदेश का चुनावी परिदृश्य
सिंधिया आगे, पर अधिकांश सीटों पर भाजपा को बढ़त
एल एस हरदेनिया - 2014-04-16 11:48
भोपालः 17 अप्रैल को हो रहे मतदान में जिन महत्वपूर्ण नेताओं के भाग्य निर्धारित होने वाले हैं, उनमें से मुख्य हैं भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नरेन्द्र सिंह तोमर और केन्द्रीय मंत्री ज्यातिरादित्य सिंधिया। श्री तोमर ग्वालियर से चुनाव लड़ रहे हैं, तो श्री सिंधिया गुना से।