सबसे पहले वह यह देखना चाहेंगे कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद मुसलमानों की क्या प्रतिक्रिया होती है। अभी तक तो जो दिखाई पड़ रहा है, उससे तो साफ यही लगता है कि मुसलमान उन्हें पसंद नहीं कर रहे हैं। शिया धार्मिक नेता मौलाना काल्बे जवाद ने अभी हाल ही में कहा है कि मुसलमानों को मोदी से डर लगता है।
यह पहली बार है कि देश का एक अल्पसंख्यक समुदाय प्रधानमंत्री के उम्मीदवार से डरा हुआ है। हालांकि नरेन्द्र मोदी के एक भाई ने मुसलमानों के डर को मिटाने की कोशिश करते हुए कहा है कि श्री मोदी बचपन में मुस्लिम लड़कों के साथ खेला करते थे।
मोदी के प्रति अल्पसंख्यकों, खासकर मुसलमानों में व्याप्त भय को देखते हुए निवेशक कुछ इंतजार करना चाहेंगे और उसके बाद ही अपने पैसे का निवेश भारत में करना चाहेंगे। वे इसलिए भी सतर्कता बरतना चाहेंगे, क्योंकि संघ परिवार के उत्साही लोगों के इरादे भी सामाजिक माहौल को प्रभावित कर सकते हैं।
नतीजे आने के पहले ही संघ परिवार के सदस्य किस तरह से उत्साहित हो रहे हैं, इसका पता इस तथ्य से लगता है कि प्रवीण तोगडि़या अभी से कह रहे हैं कि हिन्दू और मुस्लिम समुदायों के इलाके अलग अलग होने चाहिए। नवादा से भाजपा के उम्मीदवार गिरिराज सिंह ने तो यह भी धमकी दे डाली के मोदी के विरोधियों को पाकिस्तान भेज दिया जाएगा।
नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति में ही शिवसेना के एक विधायक रामदास कदम ने मुसलमानों को देश द्रोही तक कह डाला। इससे यही लगता है कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद रामजन्मभूमि आंदोलन के समय वाली स्थिति की वापसी तक हो सकती है।
हालांकि नरेन्द्र मोदी ने इस तरह के बयानों से अपने आपको अलग किया है और इन्हें गैर जिम्मेदाराना भी बताया है, लेकिन भाजपा द्वारा तीन विवादित मसलों को अपने चुनाव घोषणा पत्र में वापस लाने का खास मतलब है। गौरतलब है कि इन मसलों को अटलबिहारी वाजपेयी के समय में दरकिनार कर दिया गया था। ये मसले हैं- रामजन्मभूमि मंदिर, धारा 370 और सामान्य नागरिक संहिता।
हालांकि नरेन्द्र मोदी का जोर विकास पर है, लेकिन गायों के निर्यात पर दिखाई गई उनकी चिंता का भी खास मायने है। इससे लगता है कि आरएसएस की उनकी पृष्ठभूमि उन्हें गाय सुरक्षा के लिए विचलित करती रहेगी और संघ के अन्य मसले भी उनपर हावी रहेंगे।
संघ जिन मसलों को उठाता रहता है, उनमंे ईसाइयों द्वारा किए जा रहे धर्म परिवर्तन, बांग्लादेश से आए मुस्लिम शरणार्थी और मुसलमानों की संख्या हिंदुओं की संख्या से बढ़ने का डर भी शामिल है। संघ चाहता है कि हिंदू ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करें, ताकि मुसलमानों से उनकी संख्या बढ़ी रहे। नरेन्द्र मोदी ने असम की अपनी चुनावी सभा में बांग्लादेशी शरणार्थियों के मसले को उठाया भी और कहा कि उनकी सरकार आने के बाद उन्हें बांग्लादेश वापस भेज दिया जाएगा।
इस तरह के हिंदू एजेंडे के कारण मुस्लिम प्रतिक्रिया से इनकार नहीं किया जा सकता। सिमी और इंडियन मुजाहिदीन जैसे मुस्लिम संगठन हमारे देश में पहले से ही मौजूद हैं, जो हिंसा भड़काने के लिए मौके की तलाश में रहते हैं।
भारतीय जनता पार्टी ने अपने चुनाव घोषणापत्र में मदरसों के आधुनिकीकरण का वायदा किया है। यदि मदरसों के साथ छेड़छाड़ की गई, तो मुसलमानों की ओर से तीखी प्रतिक्रिया भी हो सकती है।
मोदी विकास और आर्थिक उदारता की बात तो करते हैं, लेकिन संघ से जुड़ा स्वदेशी जागरण मंच बंद अर्थव्यवस्था की बात करता है। मोदी ने खुद भी खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश का विरोध किया है। इसलिए निवेशक मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों की प्राथमिकताओं को भी देखना चाहेंगे और उसके बाद ही निवेश करेंगे। (संवाद)
भारत
मोदी से आशाएं और आशंकाएं
निवेशक इंतजार करना चाहेंगे
अमूल्य गांगुली - 2014-04-30 11:03
नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने का पहला असर यह होगा कि इससे निवेशकों में नया विश्वास पैदा होगा। लेकिन यह कहना गलत होगा कि पैसे की थैलियां मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही भारत में आने लगेंगी। सच तो यह है कि पहले निवेशक यह देखना चाहेंगे कि मोदी के सत्ता संभालने के बाद देश का राजनैतिक और सामाजिक माहौल कैसा है।