पर उनकी आपत्ति के बावजूद भाजपा नेताओं ने तय किया कि यदि बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में पार्टी को ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल करनी है, तो मोदी की जाति के ओबीसी स्टैटस का सहारा लेना ही होगा, क्योंकि इन राज्यों में भाजपा को ओबीसी विरोधी पार्टी माना जाता है और इसके कारण मुलायम सिंह यादव, मायावती, लालू यादव और नीतीश कुमार की राजनीति चलती है। इन तीनों राज्यों में लोकसभा की 134 सीटें हैं और भाजपा को सत्ता में आने के लिए यहां की 100 सीटों पर जीत जरूरी थी और इसलिए मुलायम, माया, लालू और नीतीश जैसे नेताओं की जातिवादी काट के लिए मोदी की जाति का इस्तेमाल करना जरूरी समझा गया, ताकि बहुसंख्यक ओबीसी का एक हिस्सा हासिल किया जा सके।
इस रणनीति के अनुरूप भाजपा नेता मोदी के ओबीसी स्टैटस का प्रचार कर रहे थे। बिहार में सुशील मोदी ने इसकी शुरूआत की और नरेन्द्र मोदी का अति पिछड़ा नेता कह डाला। राजनाथ सिंह ने अपने भाषणों मंे भी मोदी को ओबीसी का बताते हुए लोगों को शिक्षित करने का काम किया। भाजपा के उम्मीदवार तो खुलेआम नरेन्द्र मोदी की जाति बता रहे थे। ऐसा करके वे बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में ओबीसी लोगों को ओबीसी पीएम बनाने के लिए मतदान करने को कह रहे थे। जाति के आधार पर मत मांगना आचार संहिता का उल्लंघन है, लेकिन जब यही काम कमजोर वर्ग या पिछड़ी जाति के नाम पर किया जाय, तब यह आचार संहिता उल्लंघन का मामला नहीं बनता, क्योंकि कमजोर लोगांे को मजबूत बनाने और पिछड़ों को सशक्त बनाने का प्रचार करना किसी भी समाज में कभी भी गलत नहीं माना जा सकता।
बहरहाल, मोदी की जाति का खूब प्रचार चला। मोदी ने खुद भी अनेक सभाओं में अपने को पिछड़ी जाति और बेहद पिछड़ी जाति कहा। उन्होंने गलत भी नहीं कहा, क्योंकि उनकी जाति वास्तव में सामाजिक रूप से बहुत पिछड़ी हुई है और हिमाचल प्रदेश में में अनुसूचित जाति के रूप में सूचीबद्ध है। देश के अन्य सभी राज्यों में यह ओबीसी है और छत्तीसगढ़, उड़ीसा और झारखंड में तो यह वहां की सबसे ज्यादा संख्या वाली जाति भी है। खैर, मोदी की जाति का इस्तेमाल सिर्फ उनकी जाति का मत पाने के लिए नहीं किया जा रहा था, बल्कि अन्य ओबीसी जातियों का मत पाने के लिए भी किया जा रहा था।
पर मोदी की जाति के ओबीसी स्टैटस से सबसे ज्यादा मायावती घबराई हुई थी। वह भी जाति की राजनीति करती रही है और उनके उत्थान में ओबीसी की कमजोर जातियों का खासा योगदान रहा है। ये जातियां मुलायम सिंह की जाति राजनीति से ऊबकर मायावती के साथ आ गई थीं। उसी तरह लालू यादव के यादववाद से ऊबकर ओबीसी की कमजोर जातियां नीतीश के पाले में आ गई थी। अब चूंकि नरेन्द्र मोदी एक कमजोर ओबीसी से ही आते हैं, इसलिए इन कमजोर जातियों का भाजपा की ओर जाना स्वाभाविक ही था। इसके कारण सबसे ज्यादा खतरा मायावती को महसूस हुआ और वे बार बार मोदी की जाति पूछने लगी। उन्हें किसी ने बता दिया था कि मोदी तेल की पेराई करने वाली जाति से ताल्लुकात रखते हैं, जिसे यूपी और बिहार व अन्य हिंदी भाषी राज्यों में तो तेली कहा जाता है, पर गुजरात में घांची कहा जाता है। उन्हें यह भी बताया गया था कि गुजरात में घांची ओबीसी की सूची में नहीं है। इसके कारण ही मायावती बार बार पूछ रही थीं कि मोदी अपनी जाति का नाम बताएं और उसके बाद मायावती पूछती कि गुजरात की ओबीसी लिस्ट में उस जाति का नाम कहां है।
नरेन्द्र मोदी ने तो नहीं, पर कांग्रेस ने मोदी की जाति का नाम जरूर बता दिया और कहा कि उनकी जाति मोढ़ घांची है और ओबीसी की सूची में उस नरेन्द्र मोदी ने खुद मुख्यमंत्री रहते डाला। कांग्रेस गलत बयानी कर रही थी, क्योंकि यदि ओबीसी की केन्द्रीय सूची देखी जाय, तो पता चलता है कि गुजरात की सूची के 23वें क्रम मंे घांची(मुस्लिम) 1993 यानी पहले दिन से ही और उसी एंट्री में तेली 1998 और मोढ़ घांची और साहू- राठौर 1999 में शामिल किया गया बताया गया है, जबकि नरेन्द्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री 2001 में बने थे। गुजरात की प्रदेश सेवाओं के लिए बनी सूची में तो नरेन्द्र मोदी कर मोढ़ घांची 1995 से ही है। नरेन्द्र मोदी के भाई सोमभाई ने कहा कि अपने परिवार के एक सदस्य के लिए उन्होंने 1995 में ही ओबीसी का प्रमाणपत्र बनाया था, जो उनके पास मौजूद है, फिर यह कैसे कहा जा सकता कि नरेन्द्र मोदी ने मुख्यमंत्री बनने के बाद मोढ़ घांची या तेली को ओबीसी सूची में शामिल करवाया। दरअसल राज्य सरकार की सूची और केन्द्र सरकार की सूची अलग अलग होती है और राज्य सरकार की सूची में यह 1995 से ही था और केन्द्र सरकार की सूची में 1998 से था।
मंडल सूची में तो यह जाति 1980 में ही आ गई थी, जब मंडल आयोग ने अपनी अनुशंसा दी थी। पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार 1993 में जो सूची बनाई गई थी, उसमें तकनीकी कारणों से मंडल सूची की अनेक जातियां शामिल नहीं की गई। बाद में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग उस सूची मे सुधार करता रहा और धीरे धीरे जो ओबीसी जातियां सूची से बाहर रह गई थीं, वह उसमें शामिल की जाने लगी। नरेन्द्र मोदी की जाति का भी यही हुआ। लेकिन इसके कारण यह कहना गलत है कि नरेन्द्र मोदी ने खुद मुख्यमंत्री रहते हुए ओबीसी की सूची में अपनी जाति का नाम डाला। ओबीसी की केन्द्रीय सूची में ओबीसी घोषित करने में मुख्यमंत्री की कोई भूमिका भी नहीं होती। जाहिर है मोदी की जाति को लेकर कांग्रेस जो राजनीति कर रही है, वह गलत है। (संवाद)
भारत
राजनीति अपने सबसे नीचले स्तर पर
उपेन्द्र प्रसाद - 2014-05-10 16:14
मतदान के अंतिम दौर में जाति का वह भी खासकर मोदी की जाति का जो सवाल खड़ा हुआ है, वह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। नरेन्द्र मोदी की जाति ओबीसी श्रेणी में आती है, यह देश के अनेक राजनीतिज्ञों को पहले से ही पता था। जाति हमारे राजनैतिक सोच का एक बड़ा हिस्सा है, इसलिए राजनेता भी एक दूसरे की जाति सूंघने की कोशिश करते रहते हैं। इसलिए उन लोगों से नरेन्द्र मोदी की जाति छिपी हुई नहीं थी। पर मोदी की एक खासियत यह है कि उन्होंने इस लोकसभा चुनाव से पहले जाति की राजनीति कभी नहीं की। कहते हैं कि जब भाजपा नेताओं ने राजनीति के तहत मोदी की जाति का कार्ड खेलने का प्रस्ताव रखा था, तो उन्होंने इसका विरोध किया था। उनके समर्थकों में अगड़ी जातियों के लोगों की संख्या भी बहुत अच्छी है और वे नहीं चाहते थे कि पिछड़ा कार्ड खेलकर वे अगड़ी जातियों में अपनी स्वीकार्यता को कम करें। उनकी शिकायत थी कि उनको राजनैतिक रूप से कमजोर करने के लिए गुजरात में कांग्रेस ने उनकी पिछड़ी जाति के होने का कार्ड खेला था।