आवास एवं शहरी गरीबी उपशमन मंत्रालय ने "भारतीय शहरी गरीबी रिपोर्ट-2009" जारी की है जिसमें आर्थिक विकास, शहरी गरीबी, शहरी गरीबी के लिंगीय पहलू, गरीबी और प्रवास, असंगठित क्षेत्र और शहरी गरीबों जैसे प्रमुख विषयों पर शोध पत्रअकादमिक पत्र हैं। अध्ययन के निष्कर्षों पर यह रिपोर्ट यह खुलासा करती है कि शहरी क्षेत्रों में गांवों से आने वाले लोगों में स्थानीय लोगों की तुलना में गरीबी की संभावना कम होती है। पलायित लोगों में, गरीबी गांव से शहरों में जाने वालों में, एक शहर दूसरे शहर जाने वालों की तुलना में अधिक होती है।

भारतीय शहरी गरीबी रिपोर्ट के ""शहरी गरीबी के लिंगीय पहलू"" अध्याय में कहा गया है कि शहरी क्षेत्रों में महिलाओं पर गरीबी और लिंगीय भेदभाव का बहुत असर पड़ता है। 1 अप्रैल 2009 से प्रभावी पुनर्गठित स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना (एसजेएसआरवाई) महिलाओं पर ध्यान केन्द्रित करते हुए शहरी गरीबी के मुद्दे के समाधान की प्रमुख योजना है। इसके पांच अवयव हैं।

1. शहरी स्वरोजगार कार्यक्रम (यूएसईपी)

2. शहरी महिला स्व-सहायता कार्यक्रम (यूडब्ल्यूएससी)

3. शहरी गरीबों में कौशल विकास हेतु कौशल-प्रशिक्षण (स्टेप-अप)

4. शहरी पारिश्रमिक रोजगार कार्यक्रम (यूडब्ल्यूईपी)

5. शहरी समुदाय विकास कार्यक्रम (यूसीडीएन)

शहरी महिला स्वयं-सहायता कार्यक्रम का लक्ष्य शहरी गरीब महिलाओं के समूह को लाभकारी स्वरोजगार, संयुक्त उपक्रम शुरू करने के लिए त्रऽण तथा सब्सिडी देना तथा शहरी महिलाओं पर गठित स्वयं सहायता समूह तथा थ्रिपऊट एंड क्रेडिट सोसाइटी के लिए गतिशील कोष उपलब्ध कराना है।

एसजेएसआरवाई के दिशा निर्देशों के तहत यह शर्त लगा दी गयी है कि यूएसईपी तथा स्टेप अप की महिला हितधारक 30 प्रतिशत से कम नहीं होंगी।#