समाजवादी पार्टी ने 2012 के विधानसभा चुनाव मे ंजबर्दस्त सफलता हासिल की थी और पूर्ण बहुमत की अपनी सरकार पहली बार बनाई थी। लोकसभा चुनाव को लेकर भी मुलायम सिंह अखिलेश सरकार के गठन के बाद बहुत उत्साहित दिख रहे थे। वे अपने समर्थकों से कहते थे कि सपा के 60 सांसदों को लोकसभा में भेजो, तो मैं प्रधानमंत्री बन जाऊंगा।
लेकिन उत्तर प्रदेश में उन्हें 6 सीटों पर भी जीत हासिल नहंीं हो सकी। मात्र 5 सीटों पर मुलायम के उम्मीदवार जीते हैं और उनमें से खुद दो सीटों से जीते हैं। यानी इस चुनाव ने मात्र चार सांसदों को लोकसभा में भेजा है और वे सभी के सभी मुलायम परिवार के ही सदस्य हैं। मुलायम सिंह के अलावा उनकी पुत्रवधु डिंपल वे उनके दो भतीजे अक्षय और धर्मेंद्र चुनाव जीते हैं।
समाजवादी पार्टी को 22 फीसदी मत मिले, जो पिछले विधानसभा चुनाव में मिले 30 फीसदी मतों से बहुत कम हैं। आखिर ऐसी हालत सपा की क्यों हुई? इसका ठीकरा अखिलेश सरकार पर फोड़ा जा सकता है। अखिलेश सरकार के गठन के बाद भी प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति बदतर होती चली गई। प्रशासन की निष्क्रियता बनी रही। लोगों को उम्मीद थी कि युवा मुख्यमंत्री कुछ बेहतर करेंगे, लेकिन अखिलेश की प्रशासन पर पकड़ ही कमजोर थी। इसका एक सबसे बड़ा कारण तो यह था कि अनेक वरिष्ठ नेता, जिनमें खुद मुलायम सिंह भी शामिल थे, अखिलेश को अपनी तरीके से काम करने दे ही नहीं रहे थे। इसके कारण प्रशासन में अनिश्चय का माहौल बना रहा। राज्य में सांप्रदायिक तनाव भी लगातार बना रहा। मुलायम सिंह को अखिलेश सरकार की विफलता का अहसास था, इसलिए चुनाव प्रचार के दौरान यह भी कहते रहे कि अखिलेश की विफलता का दंड उन्हें नहीं दिया जाय। लेकिन प्रदेश की जनता ने उनकी नहीं मानी और उनकी पार्टी को धराशाई कर दिया।
मायावती का हाल तो मुलायम से भी बदतर हुआ। उनकी पार्टी को 20 फीसदी मत मिले, लेकिन एक भी उम्मीदवार विजयी नहीं हो सका। मायावती कहती हैं कि ओबीसी और मुसलमानों ने उनके उम्मीदवारों को मत नहीं दिया, जिसके कारण उनके उम्मीदवार हारे, जबकि सचाई यह भी है कि दलितो ंने भी बसपा को पूरी तरह वोट नहीं दिया।
इस संवाददाता ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खुद देखा था कि किस तरह दलित समुदाय के लोग मोदी का गुणगान कर रहे थे और अबकी बार मोदी सरकार के नारे लगा रहे थे। मोदी का जादू दलितों पर भी चला है। उनके पिछड़े कार्ड ने मुलायम को ही नहीं, बल्कि मायावती को भी मटियामेट कर दिया। आने वाला समय मायावती के लिए चुनौतियों भरा होगा।
कांग्रेस की स्थिति तो देश भर में खराब हुई है और उत्तर प्रदेश उसका अपवाद नहीं है। यहां उसे 7 फीसदी मत मिले और मात्र दो सीटों पर ही विजय प्राप्त हो सकी। सोनिया और राहुल ही चुनाव जीत सके। 22 सीटों से घटकर कांग्रेस उत्तर प्रदेश में 2 सीटें पर आ गई है और उसका भविष्य यहां अंधकारमय दिखाई पड़ रहा है। (संवाद)
भारत
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस, सपा और बसपा का सूपड़ा साफ
मोदी लहर ने कहर बरपाया
प्रदीप कपूर - 2014-05-20 11:49
लखनऊ: उत्तर प्रदेश में लोकसभा के चुनाव ने तीन प्रधानमंत्री उम्मीदवारों की उम्मीदों पर न केवल पानी फेर दिया है, बल्कि उन्हें सदमे में भी डाल दिया है। राहुल गांधी, मुलायम सिंह यादव और मायावती प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे थे, लेकिन सपना पूरा होना तो दूर, तीनों के सामने अस्तित्व का संकट भी खड़ा होता दिखाई दे रहा है।