कमलनाथ की जीत को उनकी निजी जीत मानना सही होगा। उन्होंने अपने लोकसभा क्षेत्र को बहुत ही संभालकर रखा है। वे उसका बहुत ख्याल रखते हैं और इसके कारण वहां से उनको हरा पाना आसान नहीं है। इसलिए उनकी जीत को कांग्रेस की जीत नहीं, बल्कि उनकी अपनी जीत कहना ज्यादा उचित होगा। यह गुना के विजयी कांग्रेसी उम्मीदवार ज्योतिरादित्य के बारे में कहना उचित होगा। वे ग्वालियर राजपरिवार से आते हैं और इस क्षेत्र से ग्वालियर राजपरिवार का कोई सदस्य आजतक पराजित नहीं हुआ है। कभी भी यहां के लोगों ने सिंधिया घराने के किसी भी सदस्य को पराजित नहीं किया है। इसलिए उनकी जीत शुरू से ही निश्चित मानी जा रही थी। इसलिए हम कह सकते हैं कि मध्यप्रदेश से अपने किसी भी उम्मीदवार को जिताने में कांग्रेस सफल नहीं हुई। यानी उसका पूरी तरह सफाया हो चुका है।

पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 12 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल हुई थी। इस बार स्थिति खराब थी, फिर भी उम्मीद की जा रही थी कि वह 5 या 6 सीटों पर तो जरूर जीत हासिल करेगी। सच तो यह है कि इस तरह की उम्मीद निष्पक्ष राजनैतिक विश्लेषक ही नहीं कर रहे थे, बल्कि भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेता भी कर रहे थे। उन नेताओं में मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर भी शामिल थे। फिलहाल वे चैहान सरकार में एक मंत्री हैं। उनका भी मानना था कि कांग्रेस 5 से 6 सीटें जीत सकती हैं। उधर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश की सभी 29 सीटों पर जीत हासिल करने का अभियान चला रखा था। वैसी हालत में उनकी सरकार के एक मंत्री का उस तरह का बयान पार्टी के अनेक नेताओं को नागवार गुजरा और उन्होंने मांग की कि गौर के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाय।

इस बार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की स्थिति पिछले विधानसभा चुनाव से भी बदतर हो गई है। पिछले विधानसभा चुनाव में उसे 58 क्षेत्रों में जीत हासिल हुई थी, हालांकि उनके 58 विधायकों मंे से तीन इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गए। इस बार लोकसभा चुनाव के दौरान उसे सिर्फ 35 विधानसभा क्षेत्रों में ही बढ़त हासिल हो सकी।

जिन विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस के उम्मीदवार को भाजपा उम्मीदवार से कम मत मिले, उनमें विपक्ष के नेता सत्यदेव कटारे की सीट भी शामिल है। विपक्ष के पूर्व नेता अजय सिंह के क्षेत्र में भी कांग्रेस उम्मीदवार को भाजपा उम्मीदवार से कम मत मिले। दिग्विजय सिंह के बेटे जयवर्धन सिंह के विधानसभा क्षेत्र का भी यही हाल रहा। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव, पूर्व अध्यक्ष कांतिलाल भूरिया और अर्जुन सिंह के बेटे अजय सिंह चुनाव हारने वालों में शामिल हैं।

इसमें कोई शक नहीं कि लोकसभा चुनाव में मिली जीत ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान की प्रतिष्ठा काफी बढ़ा दी है, हालांकि सच यह भी है कि इस जीत का श्रेय चैहान के साथ साथ नरेन्द्र मोदी को भी मिलना चाहिए।

मुख्यमंत्री चौहान ने मध्यप्रदेश की 29 में से 27 सीटों पर भाजपा उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित करवाई, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि जिस विधानसभा क्षेत्र का वह प्रतिनिधित्व करते हैं, वहां सुषमा स्वराज को उनसे कम मत मिले। यानी विधानसभा चुनाव में चैहान को वहां से जितने मत मिले थे, लोकसभा चुनाव में सुषमा स्वराज को वहां से उससे कम ही मत मिले। (संवाद)