शुक्रवार, 1 सितंबर, 2006
आसमान छूती कीमतें और सरकारी दोमुंहापन
खाद्य सुरक्षा की उपेक्षा 11वीं योजना दृष्टिकोण में भी
ज्ञान पाठक
खुली बाजार व्यवस्था के तहत अधिसंख्य वस्तुओं के लिए मूल्यों को बेलगाम छोड़ देने के सरकारी निर्णयों के बाद भारत में लगभग सभी आम जरुरतों की वस्तुओं, विशेषकर खाद्य पदार्थों की कीमतें आसमान छू रही हैं। सरकार सिर्फ इन्हें नियंत्रित करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता बीच-बीच में दुहरा देती है, लेकिन उसके कदम खुली बाजार व्यवस्था की ओर ही बढ़ती हैं। परिणाम स्वरुप व्यक्ति के स्तर पर अधिसंख्य लोग खाद्य असुरक्षा तक की स्थिति में जी रहे हैं। और तो और, 11वीं पंचवर्षीय योजना के दृष्टिकोण पत्र को तैयार करते वक्त भी इस समस्या की ओर हमारे योजनाकारों का ध्यान समुचित तौर पर नहीं गया, जबकि सभी लोगों को भोजन की सुरक्षा ही मूल उद्देश्य होना चाहिए था।
उदाहरण के तौर पर भारत सरकार के ताजा निर्णय का यहां उल्लेख किया जा सकता है। केन्द्रीय खाद्य और नागरिक आपूर्ति, उपभोक्ता मामले और जन वितरण मंत्रालय ने पिछले सप्ताह बढ़ती हुई कीमतों पर काफी चिंता जतायी और इस विभाग के मंत्री शरद पवार, जो कृषि मंत्री भी हैं, ने राज्य सभा में सप्ताह के प्रारंभ में आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधन) विधेयक 2005 को पारित करवाने का श्रेय भी बटोरा। इतना ही नहीं, मंत्रालय ने गेहूं और दालों की कीमतें नियंत्रित करने के घोषित उद्देश्य के लिए उन्हें आवश्यक वस्तु अधिनियम के दायरे में लाने और राज्य सरकारों को इसके लिए अधिकार देने का निर्णय भी किया। लेकिन यह सब दिखावे भर के लिए था, क्योंकि इससे जनता में यह संदेश तो जाता है कि सरकार इस मोर्चे पर कुछ कर रही है लेकिन वास्तव में बाजार भाव पर इसका कोई असर नहीं पड़ने वाला।
कारण साफ है। यही वह शरद पवार हैं जिन्होंने पिछले दिसंबर महीने में आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधन) विधेयक 2005 राज्य सभा में पेश किया जिसके तहत केन्द्र सरकार के अपने अधिकार राज्य सरकारों या अन्य किसी अधिकरण को सौंपने का प्रावधान शामिल है। कई अन्य महत्वपूर्ण प्रावधान भी इसमें शामिल किये गये जिनकी अनुशंसा संसद की विभागीय समिति ने वर्षों पूर्व की थी। उसके बाद तो 2003 में इस कानून को ही बदल डाला गया तथा सभी तरह के नियंत्रण आदेश समाप्त कर दिये गये थे। वर्तमान संप्रग सरकार ने न सिर्फ पूर्व की राजग सरकार की इन नीतियों को कायम रखा बल्कि दो कदम आगे बढ़कर कदम भी उठाये जिनमे निजी क्षेत्र के व्यापारियों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को मंडियों से सीधी खरीद करने और असीमित भंडार रखने की अनुमति देना भी शामिल है।
लेकिन दिखावे के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधन) विधेयक 2005 संसद में दिसंबर महीने में लाया गया, जिसे पारित नहीं किया गया।
उसके बाद रबी वसूली मौसम में निजी क्षेत्र के व्यापारियों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने 650 रुपये के घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य से मामूली ज्यादा कीमत देकर किसानों से भारी मात्रा में गेहूं खरीदनी शुरु कर दी। मई महीने तक जब सरकार को होश आया तब तक उन्होंने 60 लाख टन गेहूं खरीद ली थी। बाद में सरकार ने 50 रुपये बोनस देने की घोषणा की जिसके कारण वह केन्द्रीय खाद्यान्न भंडार के लिए 92 लाख टन गेहूं खरीद सकी। यह जन वितरण प्रणाली की जरुरतों से भी 40 प्रतिशत कम थी। आज देश के विभिन्न भागों में साधारण किस्म का गेहूं 950 रुपये से 1500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिक रहा है।
फिर राज्य सभा में जो आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधन) विधेयक 2005 पारित भी किया गया उसे कृषि मंत्री ने लोक सभा में यह कहते हुए लाया ही नहीं कि इसे और मजबूत करने के लिए इसमें और संशोधन करना जरुरी हो गया है। अर्थात इसे अब आगामी दिसंबर महीने में लोक सभा में पेश किया जायेगा।
पूरे प्रकरण की चतुराई देखिये। राज्यों को भंडारण नियंत्रित करने का अधिकार देने की घोषणा की गयी है, लेकिन सिर्फ गेहूं और दालों के लिए। लेकिन व्यापारियों को इन्हें अन्य राज्यों में भेजने की छूट है। फिर यह आगामी छह महीनों के लिए ही लागू रहेगा। अर्थात जब रबी खरीद का मौसम आ जायेगा तब व्यापारियों को खरीद की खुली छूट मिल जायेगी। अभी खरीफ फसलों, विशेषकर धान, की खरीद का मौसम आ रहा है और इस मामले में व्यापारियों को खरीद की छूट है।
सवाल उठता है कि जब व्यापारियों को असीमित खरीद और भंडारण तथा अन्य राज्यों में उन्हें ले जाने की छूट मिलती ही रहेगी तो जमाखोरी और मुनाफाखोरी कैसे रोकी जा सकती है? इस सवाल का सटीक जवाब सरकार के पास नहीं है लेकिन बातें बनाने में नेताओं का कोई जवाब नहीं। चिकनी चुपड़ी बातें कर जनता को मोहित करना ही उनका काम है और जनता भी मानो ठगाने के लिए तैयार बैठी है। जनता कहती हुई सुनाई दे देती है कि बेचारी सरकार क्या करे, कितनी करे जब हर व्यापारी लूटने मे लगा है, या फिर व्यापारी क्या करें सराकर की नीतियां ही वैसी हैं। बहुत कम लोग इस तथ्य को कहते हैं कि सरकार और व्यापार जगत में मिलीभगत चल रही है। आम आदमी बेवस और लाचार है।#
ज्ञान पाठक के अभिलेखागार से
आसमान छूती कीमतें और सरकारी
System Administrator - 2007-10-20 05:48
खुली बाजार व्यवस्था के तहत अधिसंख्य वस्तुओं के लिए मूल्यों को बेलगाम छोड़ देने के सरकारी निर्णयों के बाद भारत में लगभग सभी आम जरुरतों की वस्तुओं, विशेषकर खाद्य पदार्थों की कीमतें आसमान छू रही हैं। सरकार सिर्फ इन्हें नियंत्रित करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता बीच-बीच में दुहरा देती है, लेकिन उसके कदम खुली बाजार व्यवस्था की ओर ही बढ़ती हैं।