केन्द्रीय वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा भी यह है कि यह मसला सरल नहीं है और इसका बहुत जल्द समाधान निकलने वाला भी नहीं है। दूसरी तरफ आंध्र प्रदेश के राज्यपाल नरसिंहन ने कहा है कि यदि तेलंगना राज्य का गठन हुआ, तो उसके पूरी तरह माओवादियों के हाथों में चले जाने के खतरे हैं।
जाहिर है तेलंगना राज्य का गठन बेहद ही पेचीदा मसला है। पिछले कुछ दिनों से इस मसले पर जो भावनात्मक उबाल आया है और उस उबाल से जो तूफान खड़ा हुआ है, उसमें केन्द्र और राज्य सरकार दोनों के होश उड़े हुए हैं। क्या किया जाय और क्या नहीं किया जाय, इसका पता न तो केन्द्र सरकार को चल रहा है और न ही राज्य सरकार को।
राज्य की हालत बहुत ही खराब है। रोज रोज बंद और हड़ताल के आयोजन किये जा रहे हैं। पूरा जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया है। कानून व्यवस्था के तो परखचे उड़ गए हैं। तेलंगना समर्थक और विरोधी दोनों सक्रिय हो गए हैं। दोनों तरह के आंदोलनों में युवा और छात्र भारी संख्या में शामिल हो गए हैं और उन पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं रह गया है। मामले से कैसे निपटें इसके बारे में मुख्यमंत्री को कुछ भी नहीं सूझ रहा है और वे बार बार दिल्ला की ओर मुखातिब होतें हैं, लेकिन दिल्ली को भी यह नहीं पता है कि वह आंध्र प्रदेश में आए तूफान को कैसे शांत करे।
इस बीच माओवादी भी सक्रिय हो गए हैं। उनकी मजबूत उपस्थिति तो आंध्र प्रदेश में पहले से ही है, आंदोलनों के बीच उन्होने अपनी सक्रियता और भी बढ़ा दी है। आंदोलनों से उपजे नये हालात का वे फायदा उठा रहे हैं। राज्य का विकास रुक गया है और निवेशकों के पांव ठिठक गए हैं। राज्य की राजधानी हैदराबाद को लेकर भी अनिश्चय कायम है। हैदराबाद तेलंगना की राजधानी बनेगा या आंध्र प्रदेश में ही रहेगा, इस पर संशय बना हुआ है और इस संश्सय को दूर करने की क्षमता किसी में नहीं है। कुछ लोग इसे दोनों राज्यों सक अलग रखते हुए चंडीगढ़ की तरह केन्द्र शासित प्रदेश बनाने की सलाह दे रहे हैं। क्या होगा, यह तो किसी को नहीं पता, लेकिन इसके कारण हैदराबाद को लेकर निवेशक सशंकित हो गए हैं और जिन्होंने वहां अपना निवेश कर रखा है, वे भी अपने को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।
राजनैतिक स्तर पर भी पार्टियां स्थितियों को अपने नियंत्रण में नहीं कर पा रही हैं। सभी पार्टियां इस मसले पर दो फाड़ हो गई हैं। कांग्रेस ने कुछ महीने पहले ही भारी बहुमत से अपनी सरकार बनाई थी, लेकिन कांग्रेस के विधायक और सांसद इस मसले पर अपने आलाकमान का आदेश मानने के लिए भी तैयार नहीं हैं। उन्हें आलाकमान की कोई परवाह नहीं है। बस उनके लिए अपने क्षेत्र के लोगों की भावनाओं का ख्याल रखना ही ज्यादा जरूरी है, जिसके खिलाफ वग जा नहीं सकते। यही हाल मुख्य विपक्षी तेलुगू देशम का है। चुनाव के पहले उसने टीआरएस के साथ चुनावी समझौता किया था और अलग तेलंगना राज्य के निर्माण के चुनावी वायदे के साथ चुनाव लड़ा था। लेकिन चन्द्रबाबू नायडू ने अलग राज्य का अब विरोघ कर दिया है। उनकी पार्टी के तेलंगना क्षेत्र के नेता उनके खिलाफ हो गए तो उन्होंने कभी हां तों कभी ना की राजनीति अपना रखी है। चिरंजीवी और उनकी पार्टी अलग राज्य के खिलाफ हैं। सीपीआई अलग राज्य का समर्थन कर रही है, लेकिन सीपीएम इसके खिलाफ है।
क्या इस समस्या का कोई हल केन्द्र सरकार के पास है? समितियों और पैनलों का गठन करके मामले को शांत करने की कोशिश की जा सकती है। फिलहाल सबसे बड़ी चुनौती राज्य में शांति लाना है। (संवाद)
भारत: आन्ध्र प्रदेश
तेलंगना की गांठ कैसे खुले?
राजनैतिक समझदारी दिखाने की जरूरत
कल्याणी शंकर - 2010-01-08 11:59
तेलंगना का मसला एक ऐसे दुल्हन की तरह है, जो बनठन कर तो तैयार है, लेकिन जो कहीं जा नहीं पा रही हैं। केन्द्र सरकार ने तेलंगना राज्य के गठन की घोषणा तो कर दी है, लेकिन यह फिलहाल संभव होता दिखाई नहीं देता। यदि केन्द्र की सरकार इसे बनाना भी चाहे तो इसमें समय लगेगा।