उनके पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ख्याति एक बड़े अर्थशास्त्री की रही है। वे एक विद्वान व्यक्ति माने जाते हैं। उनको कुछ लोग विचारक भी कहते हैं। उनकी विद्वता के सामने नरेन्द्र मोदी को कोई तुलना के लायक भी नहीं समझता। इसके बावजूद मनमोहन सिंह ने कभी भी संसद में कभी भी अलिखित अथवा बिना किसी नोट के भाषण नहीं किया। इसमें शक नहीं कि मनमोहन सिंह के पढ़े गए भाषणों में तथ्य होते थे और उद्देश्य भी होते थे, लेकिन उनके पास न तो भाषण की कला थी और न ही वह सुनने वालों को आकर्षित कर पाते थे। इसमें कोई शक नहीं कि अटल बिहारी वाजपेयी भी एक बहुत अच्छे वक्ता था। प्रधानमंत्री के रूप में संसद के अंदर अथवा संसद के बाहर उनके भाषण की कला देखते बनती थी। उनके भाषणों से यदि हम नरेन्द्र मोदी के भाषण की तुलना करें, तो पाते हैं कि अटलबिहारी का भाषण जहां आदर्शवादी होता था, वहीं नरेन्द्र मोदी का भाषण यथार्थवादी था।
पीवी नरसिंहराव सही मायनों मे एक दार्शनिक राजनेता थे। वे एक भाषाविद थे और एक मौलिक ंिचंतक भी थे। वे भविष्य द्रष्टा भी थे। उनकी भाषण भी शक्तिशाली होता था, इसमें किसी को शक नहीं, लेकिन मोदी की तरह उनका भाषण लोगों को आकर्षित नहीं कर पाता था। विद्वता में नरेन्द्र मोदी नरसिंहराव से बहुत पीछे हैं, लेकिन मोदी अपने भाषणों से लोगों की आंखों में आंसू लाने की क्षमता रखते हैं।
इन्दिरा गांधी एक वक्ता के रूप मंे बहुत ही कमजोर थीं। भाषण देते समय वह हकलाने भी लगती थी और उनके भाषण की सबसे बड़ी खामी यह थी कि उसमें विचारों की एकरूपता नहीं हुआ करती थी। एक बात कहते कहते वह दूसरी बात पर कूद पड़ती थी और सुनने वालों को पता नहीं चलता था कि वह कहना क्या चाहती हैं। इसके कारण रिपोर्टर भ्रमित हो जाते थे और उन्हें समझ नहीं आता था कि वे अपनी रिपोर्ट में क्या लिखें। यह लेखक भी रिपोर्टर के रूप में इन्दिरा गांधी के भाषण के उस स्वरूप का शिकार हो चुका है। इन्दिरा जी को पत्रकारों से शिकायत होती थी कि पत्रकार उनकी बातों की सही रिपोर्टिंग नहीं कर पाते हैं। पर सवाल उठता है कि जब वे खुद अपने भाषणों में बहुत स्पष्ट नहीं होती थीं, तो फिर पत्रकारों से स्पष्ट होने की उम्मीद वह कैसे कर सकती थीं
राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हुई बहस पर अपना जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने समझदारी से विवादास्पर मसलों को नहीं छुआ। संविधान की धारा 370 पर उन्होंने कुछ नहीं कहा। समान सिविल संहिता पर भी वे चुप रहे और राम मन्दिर के निर्माण पर भी उनका मुह नहीं खुला। इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि प्रधानमंत्री ने मुसलमानों को भी अपने भाषण में संबोधित किया। अपने चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने मुसलमानों को अलग से संबोधित करने से इनकार कर दिया था, पर संसद मंे भाषण करते हुए उन्होंने इस बात को रेखांकित किया शरीर का जो हिस्सा सबसे कमजोर है, उसे ठीक करने के लिए विशेष प्रयास की जरूरत पड़ती है।
राजीव प्रताप रूड़ी ने सबसे घटिया भाषण किया। दुर्भाग्य से भाजपा ने उनको ही बहस की शुरुआत करने का मौका दिया था। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर अपना ध्यान केन्द्रित करने के बदले वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चापलूसी पर ही अपना ध्यान केन्द्रित करते रहे और विपक्ष ने इसके लिए उनकी खिंचाई भी की। पता नहीं इस तरह की चापलूसी करने का ईनाम प्रधानमंत्री उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल करके देते हैं या नहीं।
लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़के ने भी बहुत अच्छा भाषण किया। उन्होंने प्रधानमंत्री को आगाह किया कि वे कांग्रेस की ताकत को कम करके नहंीं आंकें। उन्होंने महाभारत का उदाहरण दिया और कहा कि कौरव सौ थे और पांडव सिर्फ पाच, पर महाभारत के युद्ध में आखिरकार पांडवों की ही जीत हुई थी।
संसद का पहला सत्र इस सरकार के बारे में एक अच्छा संदेश देकर गया है। यह आने वाले दिनों के लिए एक शुभ संकेत है। (संवाद)
भारत
नरेन्द्र मोदी श्रेष्ठतम प्रधानमंत्री वक्ता
पहले सत्र ने अच्छा प्रभाव छोड़ा
हरिहर स्वरूप - 2014-06-17 08:05
एक लंबे अरसे के बाद संसद के दोनों सदनों ने पहली बार किसी प्रधानमंत्री को अलिखित भाषण करते सुना। प्रधानमंत्री के पास कोई लिखित भाषण तो था ही नहीं, उन्होंने कोई नोट्स भी नहीं अपने पास बना रखे थे और न ही प्वाॅइंट्स नोट कर रखे थे। उन्होंने जो कुछ भी कहा संसद मंे भाषण करते समय ही तैयार किया हुआ था। वह एक बहुत ही शक्तिशाली भाषण था, जिसमें राष्ट्रपति के अभिभाषण में भाग लेने वाले विपक्षी सांसदों के सवालों के जवाब भी शामिल थे। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने सभी आलोचकों को जवाब दिया। लिख कर लाए बिना सबको जवाब दे देना और वह भी बहुत ही प्रभावशाली भाषा में प्रभावशाली तरीके से, एक बहुत बड़ी बात थी। सच कहा जाय, तो संसद में दिया गया नरेन्द्र मोदी का यह भाषण उनका अबतक का दिया गया सर्वश्रेष्ठ भाषण था।