प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भूटान यात्रा एक खास पृष्ठभूमि में हुई है। भूटान के राजा ने उन्हें इस यात्रा के लिए आमंत्रित किया था। पिछले कुछ समय से चीन भूटान में दखलंदाजी कर रहा है। वह वहां अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है। यही कारण है कि भूटान की यात्रा पर प्रधानमंत्री की टीम में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी शामिल थे और विदेश मंत्री व विदेश सचिव भी।

भूटान में अपनी उपस्थिति दर्ज करने के लिए चीन वहां की सरकार पर दबाव डाल रहा है कि उसे वह राजधानी थिम्फू में अपना दूतावास खोलने दे। अप्रैल 2012 में चीन के भारत में एक पूर्व राजदूत को वहां विशेष दूत बनाकर भेजा गया था। उसने भूटान को साफ साफ शब्दों में कहा था कि यदि वह चीन के साथ अपने सीमा विवाद को हल करना चाहता है, तो वह थिम्फू में उसे दूतावास खोलने की इजाजत दे दे। इस समय भारत के अलावा वहां सिर्फ बांग्लादेश और कुवैत के ही दूतावास हैं।

चीन के साथ भूटान के 470 किलोमीटर लंबी सीमा है। भूटान की कुल अंतरराष्ट्रीय सीमा का वह 44 फीसदी है। भारत और चीन के बीच एक बफर स्टेट के रूप मंे वह सामरिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है। चुम्बी घाटी भारत के चिकेन नेक से 500 किलामीटर दूर है। चिकेन नेक भारत के उस हिस्से को कहते हैं, जो इसकी मुख्यभूमि के साथ पूर्वाेत्तर राज्यों को जोड़ता है। चुंबी घाटी भारत, चीन और भूटान के बीच में है।

भूटान और चीन का सीमा विवाद भूटान के 4500 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को लेकर है, जिसे चीन अपना हिस्सा मानता है। भूटान का कुल क्षेत्र 38,394 वर्ग किलोमीटर है। जाहिर है कि चीन उसके करीब 12 फीसदी हिस्से पर अपना दावा जता रहा है। वह इलाका चुंबी घाटी से सटा हुआ है। पिछले साल जून महीने में चीन की सेना ने वहां घुसपैठ भी की थी। चीन ने भूटान के अंदर तीन सैनिक चैकियां भी बनाई थी।

जिस तरह से भारत के साथ चीन का सीमा विवाद लंबे अरसे से चल रहा है, उसी तरह भूटान के साथ भी चीन का सीमा विवाद लंबे समय से चल रहा है और वह समाप्त होने का नाम नहीं ले रहा है। बातचीत का 21वां दौर पिछले साल अगस्त महीने में चला था। उसमें भी कोई हल नहीं निकला। अब बातचीत का अगला दौर कब चलेगा, यह किसी को नहीं पता।

भूटान और चीन के बीच के ये संबंध भारत के लिए भी लगातार चिंता के कारण बने हुए हैं। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भूटान यात्रा को इसी पृष्ठभूमि में देखा जाना चाहिए। भूटान को भारती की सहायता सिर्फ अपने विकास की गति को तेज करने के लिए नहीं चाहिए, बल्कि वह सुरक्षा के लिए भी भारत की ओर देखता है।

मनमोहन सिंह सरकार ने चीन और पाकिस्तान के प्रति बहुत ही लचीला रुख अपना रखा था और उधर चीन भारत और भूटान के बीच मतभेद पैदा करने की कोशिश कर रहा है। (संवाद)