पिछले 24 अप्रैल को देश के मौसम विभाग ने सामान्य से कम मानसून की भविष्यवाणी की थी। उसके बाद से ही आवश्यक वस्तुओं का थोक मूल्य सूचकांक बढ़ने लगा। इसके कारण समग्र थोक मूल्य सूचकांक भी बढ़ने लगा।

2 अप्रैल की भविष्यवाणी शुरुआती भविष्यवाणी थी, लेकिन 9 जून को जो अंतिम भविष्यवाणी की गई, वह भी कोई राहत देने वाली नहीं थी। उसके बाद तो मानूसन के सामान्य से कम होने की बात पर किसी प्रकार का संदेह तक नहीं रह गया। अंतिम भविष्यवाणी के अनुसार मानसून सामान्य से 7 फीसदी कम होगा। मानसून ने देश मंे आने में भी विलंब किया है और उसका फैलाव भी देरी से हो रहा है। इसके कारण देश के लोगों का चिंतित होना स्वाभाविक है।

हालांकि वर्षा में कमी आने की आशंका है, लेकिन देश में जल भंडारों की स्थिति संतोषजनक है। दक्षिण भारत को छोड़कर देश के अन्य हिस्सों मे पानी का पर्याप्त भंडार है। उपलब्ध जल भंडारों का इस्तेमाल सिंचाई के लिए किया जा सकता है।

पर संकट की इस घड़ी में सरकार को चाहिए कि वह किसानों को होने वाली परेशानियों को समझे और उन्हें दूर करे। उन्हें सही सही जानकारी उपलब्ध कराई जानी चाहिए। अलग अलग इलाकों में मानसून की स्थिति भी अलग होगी। इसलिए सभी इलाको के किसानों को वहां मानूसन के बारे में समय से पहले ही बता दिया जाना चाहिए, ताकि वे किसान उसी हिसाब से खेती की तैयारी कर सकें। किसानों को पर्याप्त मात्रा में सस्ती कीमत पर डीजल और बिजली उपलब्ध कराया जाना चाहिए, ताकि वे सिंचाई के लिए पानी निकाल सकें। नहरों को सफाई और उन्हें गहरा करने का काम भी शुरू कर दिया जाना चाहिए। कुंओं को भी गहरा किए जाने की जरूरत है और खराब पड़े बोरिंग पंपों को भी दुरुस्त कराए जाने की जरूरत है। किसानों को कम कीमत पर खाद भी उपलब्ध कराया जाना चाहिए। जानवरों के चारे की भी समस्या आ सकती है। उनका भी इंतजाम किया जाना चाहिए।

किसानों द्वारा आत्महत्या किए जाने की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं। किसान कर्ज लेते हैं और उसके बाद यदि फसलें मारी जाती हैं, तो कर्ज चुकाना उनके लिए असंभव हो जाता है। फिर अपनी इज्जत बचाने के लिए वे आत्महत्या करने जैेेसे अपराधों की ओर प्रेरित होते हैं। सरकार को उनकी समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए। किसानों को दिए गए कर्जों की वसूली की तारीखें बदली जानी चाहिए और ब्याज को भी माफ करने की शालीनता दिखाई जानी चाहिए।

किसानों की समस्याओं के हल करने के साथ ही सरकार को आम लोगों के बारे में भी सोचना चाहिए। सरकार के पास इस समय अनाज का पर्याप्त भंडार है। 206 लाख टन अनाज सरकार के भंडार में हैं और 415 लाख टन गेहूं भी उसके पास है। इसलिए उसकी कमी की ंिचंता तो होनी ही नहीं चाहिए।

लेकिन फिर भी यदि कीमतें बढ़नी शुरू हो गई हैं, तो इसका कारण यह है कि लोगों में डर व्याप्त हो गया है और आपूर्ति चेन से जुड़े लोग इसका फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं। सरकार को वायदा कारोबार पर रोक लगानी चाहिए। कीमतों के बढ़ने का सबसे बड़ा कारण आज यही है। खराब मानसून कीमतों के बढ़ने का बहाना नहीं हो सकता। (संवाद)