आर्थिक तौर पर देश को मजबूत करने के लिए दिवंगत प्रधानमंत्री श्री नरसिंहराव शासन काल में उनके वित्तीय मंत्री तथा पूर्व प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने अपने पन्द्रह वर्षीय आथर््िाक योजना के दौरान देश की आर्थिक नीतियों को मजबूत करने अपनी सारी शक्ति लगा दी। देश की राजनीतिक परिस्थितियां जैसी भी हो लेकिन आर्थिक परिस्थितियों में मोदी सरकार चाहे जितना भी जोर लगाए लेकिन वे डा. मनमोहन सिंह की आर्थिक नीतियों को दर-किनार नहीं कर पाएंगी। जहां तक महंगाई का प्रश्न वह जिस तरह बढ़ती उसके माप-दण्ड सभी अर्थशास्त्रियों का अर्थशास्त्र होता है। इसके आगे तो मोदी सरकार भी नतमस्तक हो रही है उसका ताजा उदाहरण गैस सिलेंडरों की बढ़ती कीमत और रेल किरायों में बढ़ोतरी का होना। पैटृोल एवं गैस की कीमतों पर मोदी सरकार कब तक काबू पाएगी यही तो आम आदमी जानना चाहता है।
सरकारी तन्त्र के आंकड़ों का यदि कांग्रेस सरकार में अर्थशास्त्री खेलते आएं हैं तो क्या मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों को बढ़ावा देने के लिए क्या ये सरकारी बाबू कर गुजरेंगे ये तो वक्त ही बताएंगा लेकिन वित्तीय बजट पर भारत के गुजरात से बडोदरा और उत्तर प्रदेश के वाराणसी से चुनकर आने वाले भवछवि वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी क्या देश की आर्थिक नीति दशा देने वाले हैं ये तो वक्त ही बताएं लेकिन जो संदेश उनके रेल, पेटृोलियम और वित्तीय मंत्री दे रहे है उससे तो नहीं लगता कि मोदी सरकार की राह आसान होगी?
अभी हाल ही में मोदी सरकार के गृ्रहमंत्रालय ने देश में एक ही भाषा यानि हिन्दी में काम करने की जो बात दोहराई है उससे भी राज्यों जम्मू व कश्मीर से कन्याकुमारी तक हडक्क्प मच गया है जो काम सरदार पटेल ने जोड़ने के लिए था वही काम एकसूत्रीय भाषा यानि हिन्दी में देश को बांधने की नई योजना बनाई ताकि कोई भारत का नागरिक देश के किसी भी कोने में जाए तो उसे किसी भाषाई विवाद में नहीं फंसे। ये है मोदी सरकार की नई सोच और भारतीय आम आदमी दिक्कतों को दरकिनार करने की उभरती योजनाएं!
अच्छे दिनों के इंतजार में भारत
विजय कुमार मधु - 2014-06-21 10:59
जब भारत आजाद हुआ था तो ब्रिटिश हुकूमत ने सभी राजे-रजवाड़ों को स्वतन्त्र रहने के लिए छूट दे दी और भारत के विभाजन की लकीर खींच दी ताकि ये आपस लड़ मरे और फिर पुनः ये सब उनकी हुकूमत को तरसे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। गुजरात प्रांत के नेता और लौहपुरूष सरदार बल्लभ भाई पटेल ने अपनी कुशाग्र बुद्धि से सभी को ना केवल एकत्रित किया बल्कि सभी राज्यों को भारतीय संविधान में अपने को नई सोच में ढालने की पेश की जिसमें वे अपने अधिकारों को सुरक्षित रख सकें और राजा-महाराजाओं के लिए वार्षिक तौर प्रिवीपर्स के धन-राशि भी तय कर दी लेकिन जब लौह-महिला इन्दिरा गांधी सत्ता में आई तो उन्होंने राजा-महाराजाओं के प्रिसीपर्स समाप्त कर दिए और वित्तीय संस्थाओं को भारतीय संविधान में ले लाई ताकि आम जनता तक उनकी सुविधाएं आसानी से पहुंच सकें।