यह सच है कि नरेन्द्र मोदी का पार्टी इस समय क्या भविष्य में भी हटाने की हिम्मत नहीं कर सकती। वे अपने पद पर बने रहेंगे। पार्टी के अंदर उनका वर्तमान कद भी बरकरार रहेगा, लेकिन उन्हें अपने भगवा कैंप से विरोध का सामना करता रहना पड़ेगा। उनमें अनेक ऐसे लोग हैं, जो उन्हें देखना भी पसंद नहीं करते हैं।

संघ से जुड़े अनेक संगठन मोदी के लिए परेशानी का कारण बने रहेंगे। उनके विरोधी दो प्रकार के हैं। पहले प्रकार के विरोधी स्वदेशी जागरण मंच, भारतीय किसान संघ और भारतीय मजदूर संघ के हैं, तो दूसरे प्रकार के विरोधी बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद की तरफ से आ सकते हैं।

जब मोदी सरकार ने रेल किराया बढ़ाने का फैसला किया, तो उनका विरोध देखने को मिला। वित्तमंत्री अरुण जेटली के साथ हुई एक बैठक में जागरण मंच, किसान संध और मजदूर संघ के नेताओं ने रेल किराया बढ़ाए जाने का विरोध किया और कहा कि सरकार को जनविरोधी नीतियां अपनाने से परहेज रखना चाहिए।

विरोध का उनका तर्क उनका वही है, जो वामपंथी दलों व अन्य विपक्षी पार्टियों का होता है। इसमें कोई शक नहीं कि यदि भाजपा विपक्ष में होती और इस तरह किराए को बढ़ाया गया होता, तो वह भी इसी तरह का विरोध करती। सभी विपक्षी पार्टियां चाहती हैं कि सरकारी सुविधाओं को कभी भी महंगा नहीं किया जाय, भले ही सुविधा पहुंचाने वाले सरकारी संगठन दिवालिया हो जाएं।

भारत में विपक्षी पार्टियांे का यही रूख रहा है। कुछ पार्टियां सत्ता में आकर भी इसी तरह का रुख अपनाने की कोशिश करती हैं। यह गुलामी का हैंगओवर है। आजादी के बाद सरकारी तबके के लोग जिस तरह की जीवन शैली अपनाते हैं, शायद उसे देखकर भी लोगों को लगता होगा कि सरकारी संगठन मालोमाल हैं और उनके वित्तीय दिवालिएपन का कोई खतरा नहीं है। उन्हें यह लगता है कि उनके खर्च को कम करके घाटा घटाया जाए और लोगों के ऊपर महंगाई का भार नहीं डाला जाए।

यही कारण है कि सरकारें सरकारी सुविधाओ ंके शुल्क में वृद्धि करने से डरती रही हैं। रेल का किराया हो या बस का किराया या बिजली का शुल्क, उनमें वृद्धि करने से लोगों में भारी असंतोष होता है और सरकार उस असंतोष का सामना करने से बचना चाहती है। 1966 में जब कलकत्ता के ट्राम का किराया एक पैसा बढ़ा दिया गया था, तो गुस्साए हुए लोगों ने 13 ट्रामों को आग के हवाले कर दिया था।

आने वाले कुछ समय में पता चलेगा कि नरेन्द्र मोदी की सरकार इस प्रवृति से अपने को मुक्त रख पाती है या नहीं। कहने को तो उन्होंने कह दिया है कि वे कुछ कड़वे कदम उठा सकते हैं, जिसके कारण उनकी लोकप्रियता को भी नुकसान हो सकता है। पर सवाल उठता है कि क्या वे जो कह रहे हैं, वे कर भी पाएंगे?

मोदी को अपनी पार्टी और अपने संघ परिवार की ओर से सिर्फ इसी तरह की चुनौती का सामना नहीं करना पड़ेगा, बल्कि हिंदुत्ववादियों के विरोध का भी उन्हें सामना करना पड़ सकता है। जब अटल बिहारी की सरकार थी, तो धारा 370, समान सिविल कोड और राम मन्दिर निर्माण के मसले को दरकिनार कर दिया गया था। पिछले लोकसभा चुंनाव के पहले ये सारे मुद्दे भारतीय जनता पार्टी के घोषणापत्र में आ चुके हैं, लेकिन सरकार गठन के बाद नरेन्द्र मोदी की सरकार ने उनसे संबंधित कोई घोषणा नहीं की है। इसके कारण विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल में बेचैनी हो सकती है। लगता है नरेन्द्र मोदी विकास की खातिर इन मसलों से बचना चाहेंगे, लेकिन अंदर से इन मसलों पर भी उन्हें चुनौतियां मिलती रहेंगीं। (संवाद)