इन अलोकप्रिय कदमों को उठाने के पहले गोवा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि उनकी सरकार को कुछ कठोर कदम उठाने पड़ सकते हैं, जिसके कारण उनकी लोकप्रियता को कुछ नुकसान उठाना पड़ सकता है। उसके बाद से ही यह कयास लगाया जाने लगा था कि किस तरह के कठोर कदम सरकार उठाने जा रही है। पहला कठोर कदम रेल किराये और भाड़े में वृदिध के रूप मंे आया, जिसे लोगो ंने पसंद नहीं किया। किराया और भाड़ा बढ़ाने के केन्द्र सरकार के अपने तर्क हैं। उन तर्को में दम भी हो सकता है, लेकिन जिस जनता ने अच्छे दिनों की तलाश मे ंमोदी सरकार को चुना हो, वह उन तर्कांे की परवाह नहीं करती। उसे तो ऐसे किसी भी कदम से नाराजगी रहेगी, जिससे उसका जीवन थोड़ा और कठिन हो जाता है।

कांग्रेस की अलोकप्रियता के मुख्य दो कारण थे। एक कारण था भ्रष्टाचार और दूसरा कारण थी महंगाई। इन कारणों से ही अलोकप्रिय हुई और इनके कारण ही भारतीय जनता पार्टी की मोदी के नेतृत्व में सरकार बनी। इस सरकार से उम्मीद की जा रही थी कि व न केवल भ्रष्टाचार को रोके, बल्कि महंगाई को भी बढ़ने से रोके। इस बीच अन्ना हजारें के लोकपाल आंदोलन के दौरान इस बात का खूब प्रचार हुआ कि हमारे देश मंे महंगाई का असली कारण भ्रष्टाचार है। अरविंद केजरीवाल और उनके साथियो ंने देश की जनता को इस बारे में अच्छा खासा जागरूक कर दिया है।

यही कारण है कि अर्थव्यवस्था के सिद्धांत यहां विफल हो रहे हैं। मांग और आपूर्ति की दशा से बाजार मंे कीमतें तय होती हैं। यदि आपूर्ति पक्ष कमजोर हो, तो महंगाई बढ़ती है। आपूर्ति पक्ष निश्चय रूप से कमजोर नहीं है, कयोंकि ज्यादातर महंगाई उन आवश्यक उपभोग की वस्तुओं में है, जिनकी उपलब्धता बाजार में पर्याप्त है। अनाजों से हमारे देश के सरकारी भंडार पटे पड़े हैं। सच तो यह है कि जितना उत्पादन हुआ, उसके भंडारण की हमारी क्षमता तक नहीं है। इसके कारण अनाज सड़े भी। उसके बावजूद अनाज महंगा हुआ, तो उसके कारण वितरण व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार ही था। भ्रष्टाचार के कारण आवश्यक वस्तुओं का भी वायदा कारोबार होता है और कारोबारी अपने फायदे के लिए नकली अभाव पैदा कर देते हैं, जिसके कारण बाजार मंे महंगाई हो जाती है। वायदा कारोबार की आवश्यक वस्तुओं के मामले में कोई जरूरत नहीं, उसके बावजूद इसे सरकार इजाजत दे दी जाती है। इस इजाजत के पीछे भी भ्रष्टाचार एक बडा कारण होता है। कोयला में घोटाला होता है। तेल में घोटाला होता है। बिजली कंपनियों में भारी घोटाले हो रहे हैं। इन घोटालों के कारण ऊर्जा महंगी हो जाती है और उसके कारण चैतरफा महंगाई देश में व्याप्त हो जाती है।

भ्रष्टाचार के कारण ही काले धन की अर्थव्यवस्था अस्तित्व में आ जाती है। एक आकलन के अनुसार आज काले धन की की अर्थव्यवस्था सफेद धन की अर्थव्यवस्था से भी बड़ी हो गई है। इसके कारण सरकार की महंगाई रोकने के लिए बनाई गई नीतियां विफल हो जाती है, क्योंकि वे नीतियां तो सफेद धन की अर्थव्यवस्था के आकलन के आधार पर ही तैयार की जाती है। लेकिन काला धन सरकार के सारे प्रयासों पर पानी फेर देता है और भारतीय रिजर्व बैंक की मुद्रानीति अपने लक्षित नतीजा को पाने में विफल हो जाती है। ठीक इसका उलटा असर यह होता है कि इससे सफेद अर्थव्यवस्था की गतिविधियों पर असर पड़ता है, क्योंकि आम तौर पर महंगाई को कम करने के लिए भारीतय रिजर्व बैंक मुद्रा प्रसार पर अंकुश लगाती है और ब्याज दर को बढ़ा देती है। बढ़ी ब्याज दर औद्योगिक उत्पादन को महंगा बना देता है। उद्योगों के पास पैसे की कमी भी होने लगती है, जिससे औद्योगिक विकास दर प्रभावित होने लगती है। भारत में महंगाई के दौर में औद्योगिक विकास दर में आई गिरावट का कारण भी यही रहा है। औद्योगिक उत्पादन की विकास दर अनेक बार नकारात्मक हो गई है।

इसलिए यदि केन्द्र सरकार को महंगाई की समस्या से देश को निजात दिलाना है, तो उसे भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर कार्रवाई करनी होगी। इसके बिना महंगाई पर अंकुश लगाया ही नहीं जा सकता। रेल के उदाहरण को ही ले। रेल किराये में वृद्धि को आवश्यक मानते हुए उसे बढ़ा दिया गया, लेकिन रेल में भ्रष्टाचार भी तो कोई कम नहीं है। वहां बचत भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाकर भी की जा सकती है। यदि यह अंकुश नहीं लगाया गया, तो बार बार किराया बढ़ाने की बात की जाएगी। देश की जनता को यह कहकर गुमराह नहीं किया जा सकता कि बुलेट ट्रेन चलाने के लिए किराये बढ़ाए गए हैं। इस तरह के लुभावने नारे को जनता समझ चुकी है।

नरेन्द्र मोदी को देश में प्राप्त लोकप्रियता के कारण ही भाजपा को बहुमत मिला। गुजरात में उनकी उपलब्धि के कारण देश की जनता को लगा कि देश के सामने महंगाई और भ्रष्टाचार की जो समस्याएं हैं, उनका निदान उनके ही पास है। प्रधानमंत्री को लोगों की आकांक्षाओं पर खरा उतरना होगा। संसद मे ंउनकी पार्टी को भले बहुमत मिल गया हो, लेकिन बहुमत तो 1984 के लोकसभा चुनाव मे ंराजीव गांधी को भी मिला था। श्री गांधी को जो बहुमत मिला था, उसके सामने श्री मोदी को मिला बहुमत बहुत ही छोटा है। लेकिन तब श्री गांधी भी र्सि दो साल तक ही लोगों के बीच अपनी लोकप्रियता को बचाकर रख सके थे। देश की जनता जितनी तेजी से किसी को सिर पर चढ़ाती है, उतनी ही तेजी से उसे उतार भी देती है। राजीव गांधी इसके उदाहण हैं। उनसे श्री मोदी को सबक लेना चाहिए और यथासंभव कोशिश करनी चाहिए कि उनकी नीतियों से देश की जनता पर महंगाई की मार नहीं पड़े। (संवाद)