पार्टी को कुछ कड़वे सच स्वीकार करने चाहिए और उसे कुछ ऐसे कठोर फैसले लेने चाहिए, जो किसी कड़वी घूट से कम न लगे, पर पार्टी ऐसा करने को तैयार नहीं दिख रही है। उसने हार के कारणों की ईमानदार समीक्षा के बदले बलि के बकरों को ढ़ंूढ़ना शुरू कर दिया है। इस समय वह अपने तीन मुख्यमंत्रियों को बलि का बकरा बनाने की तैयारी कर रही है।
उसके तीन मुख्य मंत्री हैं हरियाणा के भूपींदर सिंह हुडा, असम के तरुण गोगाई और महाराष्ट्र के पृथ्वीराज चौहान। इन तीनों की जान इस समय सांसत में है और देश भर में कागेस की हुई हार का ठीकरा जैसे इन्ही तीनो ंपर फूटता दिखाई पड़ रहा है।
हरियाणा में भूपीन्दर सिंह हुडा पिछले 9 साल से भी ज्यादा समय से मुख्यमंत्री हैं। 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद उन्होंने हरियाणा में समय से पहले ही विधानसभा के चुनाव करवा दिए थे ओर कांग्रेस की वहां दुबारा सरकार बनाने में सफलता पाई थी। हालांकि कांग्रेस को पूर्ण बहुमत हासिल नहीं हुआ था, लेकिन उन्होने सबसे बड़ी पार्टी के नेता होने का लाभ उठाते हुए सरकार बनाई और दलबदल के द्वारा अपनी सरकार को बहुमत भी दिलवा दिया।
2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को हरियाणा की कुल 10 में से 9 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। इस बार भी कांग्रेस को लग रहा था कि वहां से ज्यादा सीटें उसे ही मिलेगी, क्योंकि हरियाणा का उसका मुख्य विरोधी इंडियन नेशनल लोकदल की हालत खराब है और उसके सबसे बड़े नेता ओम प्रकाश चैटाला शिक्षक भर्ती घोटाले में जेल की सजा गुजार रहे हैं। मुख्य विपक्षी के कमजोर होने के बावजूद वहां भी कांग्रेस की करारी हार हुई और मात्र 10 में से एक सीट पर ही उसकी विजय हुई।
भूपींदर सिंह हुडा पहले से ही वहां अपने विरोधी कांग्रेसियों के असंतोष का सामना कर रहे थे। कांग्रेस नेता कुमारी शैलजा उनके मुख्य विरोधियों में शामिल हैं। वह उनको हटाने की मुहिम पिछले कुछ सालों से चला रही हैं लोकसभा चुनाव के पहले उन्होंने कहा था कि यदि हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपींदर सिंह हुडा के रहते लोकसभा चुनाव हुए, तो कांग्रेस बुरी तरह हारेगी। आज वह कह रही हैं कि उनकी बात सही साबित हुई।
लोकसभा में हार के बाद श्री हुडा के विरोधियों की मुहिम और भी तेज हो गई है। वहां कुछ महीनों में ही विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं। अब उनके विरोधी चाहते हैं कि चुनाव के पहले उन्हें हटा दिया जाय, क्योंकि उनके नेतृत्व में यदि कांग्रेस वहां चुनाव में गई तो उसकी करारी हार निश्चित है। कांग्रेस आलाकमान ने भी उनको बदलने के बारे में सोचना शुरू कर दिया।
हरियाणा के अलावा महाराष्ट में भी विधानसभा के चुनाव होने हैं। वहां भी कांग्रेस का ही मुख्यमंत्री है। एनसीपी के साथ उसकी वहां गठबंधन सरकार है। इस बार लोकसभा चुनाव में गठबंधन को करारी हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस को मात्र 2 सीटें वहां मिलीं, जबकि एनसीपी के 4 उम्मीदवार वहां जीते। पृथ्वीराज चैहान को हटाने की मुहिम भी वहां जोरों पर है और कांग्रेस आलाकमान को लगता है कि वहां भी बदलाव करने मे कोई बुराई नहीं है।
असम में तरूण गोगोई लगातार चैथी बार कांग्रेस को जीत दिलाकर वहां के मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन उनके विरोधियों की संख्या भी वहां बहुत ज्यादा है। कुल 78 कांग्रेसी विधायकों मंे 45 उनका इस्तीफा मांग रहे है और कांग्रेस आलाकमान को भी लगता है कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेसी उम्मीदवारों को अच्छी जीत दिलाने में विफल होने के कारण गोगाई को कुर्सी छोड़ देनी चाहिए। फिलहाल अंतिम फैसला अभी नहीं हुआ हे, पर कांगेस आलाकमान इस बात को नहीं पचा पा रहा है कि वहां उसके मात्र 3 उम्मीदवार ही चुनाव जीत सके। (सवाद)
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कड़वी घूंट पीने के लिए कांग्रेस तैयार नहीं
मुख्यमंत्रियों को बलि का बकरा बनाया जा रहा है
कल्याणी शंकर - 2014-06-27 17:11
लोकसभा चुनावों में शर्मनाक हार का सामना करने के बाद भी कांग्रेस सीख लेने को तैयार नहीं है। इस चुनाव के पहले हुए अनेक विधानसभा चुनावों में उसे मुह की खानी पड़ी थी। लेकिन तक शायद ही कभी भी हार के कारणों पर मंथन करने की हिम्मत कांग्रेस ने जुटाई थी। इस लोकसभा चुनाव मे तो उसकी अन्य चुनावांे की अपेक्षा ज्यादा शर्मनाक हार हुई। देश के अधिकांश राज्यों में उसके खाते नहीं खुल पाए और किसी भी राज्य में उसे दहाई अंकों में लोकसभा की सीट नहीं मिली। इतनी बड़ी हार के बाद कांग्रेस में जिस तरह का आत्ममंथन होना चाहिए था, वह अबतक न तो हुआ है ओर न इसके होने के कोई लक्षण ही दिख रहे हैं।