महाराष्ट्र में अपनी चुनावी स्थिति मजबूत करने के लिए कांग्रेस के नेतृत्ववाली वहां की चैहान सरकार ने मराठों को 16 फीसदी और मुसलमानों को 5 फीसदी आरक्षण देने की घोषणा की है। एक अनुमान के अनुसार वहां की आबादी का 30 फीसदी मराठा हैं और लगभग 200 विधानसभा सीटों पर चुनाव परिणामों को प्रभावित करने की वे क्षमता रखते हैं। भारतीय जनता पार्टी भी मराठों का समर्थन हासिल करने की कोशिश में है। इसलिए उसने मराठों को दिए गए आरक्षण का विरोध नहीं किया है, लेकिन वह मुसलमानों को दिए गए कोटे का विरोध कर रही है। उसका कहना है कि मजहब के आधार पर आरक्षण की इजाजत हमारा सेकुलर संविधान देता ही नहीं है। मुसलमानों को आरक्षण देने के निर्णय को वह वोट बैंक की राजनीति बता रही है।

महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों को प्रभावित करने में रेलवे का बढ़ा किराया भी अपनी भूमिका निभा सकता है। खासकर उपनगरीय पासों के मासिक किरायों को 200 फीसदी बढ़ाए जाने से वहां के लोगो में असंतोष की लहर देखी जा रही है। सरकार ने डर को भांपते हुए अपने उस निर्णय को थोड़ा वापस भी लिया है, लेकिन संदेश जो जाना था, वह तो चला ही गया।

दिल्ली में भी विधानसभा के चुनाव हो सकते हैं। अभी यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि वर्तमान विधानसभा के तहत ही किसी सरकार का गठन किया जा सकता है या नहीं। अभी विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी ही है, लेकिन उसे बहुमत का समर्थन हासिल नहीं है। वह आम आदमी पार्टी के कुछ विधायको को तोड़कर उनके समर्थन से अपनी सरकार बनाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन यह कोशिश कामयाबी की ओर बढ़ती दिखाई नहीं दे पा रही है, क्योंकि आम आदमी पार्टी में विभाजन के लिए उसके कम से कम दो तिहाई विधायकों का एक साथ होना जरूरी है, जो बहुत ही ज्यादा है। 27 सदस्यीय विधायक मंडल में विभाजन के लिए विभाजित गुट को 18 विधायकों का साथ चाहिए, जो संभव नहीं दिखाई पड़ रहा है।

इस समय कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के लिए अच्छा यह रहेगा कि वे आपस में मिलकर सरकार बना लें। आम आदमी पार्टी के 27 और कांग्रेस के 8 सदस्य मिलकर बहुमत का आंकड़ा पा लेते हैं, क्योंकि भाजपा के 3 विधायक सांसद बनने के बाद विधानसभा से इस्तीफा दे चुके हैं और इस समय विधानसभा में कुल 67 विधायक ही हैं। लेकिन कांग्रेस केजरीवाल को समर्थन देकर सरकार बनाने के पक्ष में नहीं है। इसलिए चुनाव ही एक मात्र रास्ता दिखाई दे रहा है। आज के माहौल में यदि चुनाव हुए, तो भाजपा की जीत की ही उम्मीद की जा सकती है, क्योंकि आम आदमी पार्टी से जुड़ा लोगों का उत्साह ठंढा पड़ चुका है।

श्रीनगर से खबर आ रही है कि वहां कांग्रेस और नेशनल कान्फ्रेंस के बीच मतभेद बढ़ता जा रहा है और दोनों के गठबंधन आगामी विधानसभा चुनाव के पहले ही समाप्त हो जाने की संभावना है। बहुत संभव है कि वहां कांग्रेस और मुफ्ती के नेतृत्व वाल पीडीपी के बीच चुनावी गठबंधन हो।

हरियाणा में भी विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। वहां कांग्रेस की हालत अच्छी नहीं है। पिछले लोकसभा चुनाव में उसे 10 में से मात्र 1 सीट पर ही सफलता हासिल हुई। हुडा की प्रदेश सरकार के खिलाफ भी लोगों में असंतोष व्याप्त है। कांग्रेस के अंदर भारी गुटबाजी है। इसके कारण वहां इसकी सरकार फिर से बनने की संभावना नहीं के बराबर है।

झारखंड में भी विधानसभा के चुनाव इसी साल होने वाले हैं। बिहार में अगले साल नवंबर महीने मे चुनाव होने हैं, लेकिन जनता दल (यू) की हालत वहां पतली है और वह आंतरिक असंतोष की समस्या से गुजर रहा है। इसलिए वहां चुनाव समय से पहले भी हो सकते हैं।

लोकसभा चुनाव में शर्मनाक हार पाने के बाद कांग्रेस के पास एक मौका है कि वह इस साल के अंतिम महीनों मंे होने वाले विधानसभा चुनाव में अपनी स्थिति कुछ बेहतर कर अपनी प्रतिष्ठा कुछ बचा ले। पर सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस के लिए ऐसा करना आसान है?(संवाद)