श्रद्धा और भक्ति आस्था का विषय है, इसलिए इसमें न तो तर्कों की ज्यादा गुंजायश रहती है और न ही बहस मुबाहिसे की। फिर भी बहस होती है और उस बहस में ऐसी ऐसी बातें भी की जाती हैं, जिनका कोई सिर और पैर नहीं होता है। भारत का अपना जो भी स्थानीय घार्मिक आस्था है, उसे पारिभाषित करने वाला कोई सर्वस्वीकृत केन्द्र नहीं है और न ही कोई संगठित समूह है, जो यहां की धार्मिक आस्था की रक्षा करने की जिम्मेदारियों से युक्त है। हिंदू क्या है, इसकी भी कोई सर्वसम्मत और सर्वस्वीकृत परिभाषा नहीं है। किसी हिंदू का धार्मिक विश्वास क्या है, इसे लेकर भी कोई एक या दो वाक्य में कुछ बता नहीं सकता। सच कहा जाय, तो एक हिंदू की धार्मिक मान्यता वहीं है, जो वह हिंदू विशेष मानता है। वह यह मानने के लिए स्वतंत्र है कि भगवान एक है। यदि कोई यह मानना चाहे कि भगवान तीन (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) हैं, तो भी कोई दूसरा हिंदू इस पर आपत्ति नहीं करेगा। वह चाहे तो भगवान के पुरुष रूप शिव को माने और चाहे तो उसके स्त्री रूप शक्ति को माने। वह यदि चाहे तो 33 करोड़ भगवानों को माने और यदि चाहे तो वह साफ साफ कहे कि भगवान होता ही नहीं है। ईश्वर और भगवान की अपनी मान्यता को लेकर एक हिंदू वही मानता है, जो वह मानना चाहता है।
इस असंगठित धार्मिक मान्यताओं वाले इस संगठित धार्मिक समुदाय के लोगों का एक वर्ग साई बाबा को भगवान मानता है, तो उसके इस मामने के अधिकार पर कोइ्र्र सवालिया निशान नहीं लगा सकता है। आज का हिंदू समुदाय वह वैदिक समुदाय नहीं है, जिसकी अपनी खास मान्यताएं हैं, बल्कि आज के हिंदू समुदाय मे बौद्ध और जैन धर्म की अनेक मान्यताएं भी शामिल हो गई हैं। जैनियों के अनुसार जीव में भगवान बनने का सामथर््य होता है, और वह भगवान बन भी जाता है। यही कारण है कि एक आम हिंदू किसी सिद्ध पुरुष में भगवान का दर्शन करने लगता है। आदि शंकराचार्य का अद्वैत दर्शन तो यहां तक कह देता है कि जीव ही ब्रह्म है, ’’ब्रह्म सत्यम् जगत् मिथ्या, जीव ब्रह्मेव, नापरः’’। यानी ब्रह्म सत्य है और जगत् मिथ्या है। जीव ही ब्रह्म है, वह कोई दूसरा नहीं है। आदि शंकराचार्य ने ही कहा है, ’’ ब्रह्म विद् ब्रह्मेव भवति’’। यानी ब्रह्म को जानकर वह खुद ब्रह्म हो जाता है।
ऐसे दार्शनिक माहौल में यदि कोई हिंदू किसी संत को भगवान मान लेता है, तो इसमें गलत क्या है? साईं बाबा के मजहब को लेकर भी सवाल खड़ा किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि वे मुस्लिम थे और अल्लाह को मानते थे, इसलिए उनकी पूजा करने वाले हिंदू नहीं हो सकते। हिंदू किसी की भी पूजा कर सकते हैं, क्योंकि उन्हें बताया गया है कि कण कण में भगवान बसा है और भगवान किसी भी रूप में दिखाई पड़ सकते हैं। भगवान की धारणा इतनी लचीली है कि कोई किसी को भी भगवान मान सकता है। यहां तो लोग क्रिकेट खिलाड़ी सचिन को भगवान कहने लगते हैं। डाॅक्टरों को भगवान मानना तो आम बात है। गुरु को गाविन्द मानने वाले लोगों की भी कोई कमी नहीं है। आज का हिंदू मानस मध्ययुग में चले भक्ति आंदोलन से प्रभावित है। कबीर दास एक बहुत बड़े संत थे। उनका भारत के समाज पर बहुत ज्यादा असर रहा है। उनके बारे में ही कोई दावे से कुछ नहीं कह सकता कि वह हिंदू थे या मुसलमान थे। हालांकि कबीर दास के अपने साहित्य उपलब्ध हैं, जिन्हें देखकर उनकी राय के बारे में जाना जा सकता है। वे वैष्णव थे और अपने को रामभक्त कहा करते थे, हालांकि राम के बारे में उनकी अपनी अलग धारणा थी।
जो साईं के भक्त हैं, उनके लिए साई का मजहब कोई मायने नहीं रखता। उनके लिए मायने यह रखता है कि साईं बाबा एक अवतार पुरुष थे। उनको अवतार पुरुष मानने के पीछे का मुख्य कारण यह है कि उनके चमत्कारों की अनेक कहानियां लोगों द्वारा कही सुनी जाती है। वे जीते जी क्या चमत्कार करते थे, इससे भी लोग ज्यादा प्रभावित नहीं हैं, बल्कि उनकी दिलचस्पी इस बात को लेकर है कि उनके देहावसान के बाद भी उनके चमत्कार देखे जा सकते हैं। यदि आज साईं के भक्तों की एक विशाल संख्या हमारे देश में है, तो इसका सबसे बड़ा कारण यही है कि लोगों को उनके चमत्कारों में दिलचस्पी है। वे शिरडी कुछ मन्नतों के साथ जाते हैं। उन्हें लगता है कि चमत्कारिक बाबा उनका भी बेड़ा पार करेंगे। साईं बाबा के मन्दिरों में यदि आज अन्य मंदिरों से ज्यादा भीड़ उमड़ती है, तो इसका कारण यही है कि लोगों को लगता है कि बाबा उनके लिए भी कुछ चमत्कार कर देंगे।
साईं के झूठे चमत्कारों का खूब प्रचार किया गया है। वैज्ञानिक विधियों का इस्तेमाल करते हुए कहीं सुगंध फैलाया जाता है, तो हाथ ही सफाई दिखाते हुए कहीं फूलों की वर्षा करा दी जाती है, तो कहीं किसी दीवार पर साई बाबा की तस्वीर उभार दी जाती है। इस तरह चमत्कृत करके लोगों की आस्था उनमें बढ़ाई जा रही है। इसका ही परिणाम है कि साईं अब अवतार भी समझे जाने लगे हैं। शंकराचार्य को एक बड़ी आपत्ति इसी बात को लेकर है कि साई को अवतार क्यों बताया जा रहा है। उन्हें साईराम क्यों कहा जा रहा है? कोई साईं को राम का अवतार कहे, यह शंकराचार्य को मंजूर नहीं।
आज शंकराचार्य तथा उनके समर्थक जिस तरह साईं कल्ट के खिलाफ हैं, वह उनके संकट को ही दिखाता है। आज हिन्दू धर्म के मन्दिरों में साईं बाबा की मूर्तियां लगाने का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है। शायद मंदिरों के पुजारियों और प्रबंधकों को लगता होगा कि साईं की मूर्ति के कारण श्रद्धालुओं की संख्या वहां बढ़ जाती है। इसलिए वे ऐसा कर रहे हैं।
पर इस सारे विवाद में असली मुद्दा गायब है और असली मुद्दा है चमत्कार और अंधविश्वास का। साईं बाबा को लेकर अनेक किस्म के अंधविश्वास फैलाए जा रहे हैं। इस तरह के अंधविश्वास के खिलाफ शंकराचार्य और उनके समर्थकों को अभियान चलाना चाहिए। पर उनकी समस्या शायद यह है कि अंधविश्वास और भी अनेक बाबाओं को लेकर फैलाया जाता रहा है। इसलिए यदि वे साईं के नाम के अंधविश्वास के खिलाफ अभियान चलाते हैं, तो अन्य बाबाओ के खिलाफ भी उन्हें वैसा ही अभियान चलाना होगा। क्या इतनी शक्ति शंकराचार्य और उनके समर्थकों में है? (संवाद)
भारत
साईं बाबा पर छिड़ा विवाद
असली चुनौती अंधविश्वास मिटाने की है
उपेन्द्र प्रसाद - 2014-07-01 11:32
शंकराचार्य द्वारा शिरडी के साईं बाबा के अनुयाइयों के खिलाफ दिए गए बयान के बाद जो विवाद हो रहा है, वह बहुत ही दिलचस्प हैं। साई्र बाबा के भक्त शंकराचार्य के खिलाफ सड़कों पर उतर आए हैं। उनके पुतले जलाए जा रहे हैं। शंकराचार्य के समर्थक उस तरह हिंसक तो नहीं हुए हैं, लेकिन उनके पास भी कहने के लिए बहुत कुछ है और लगता है कि जिस उद्देश्य से यह विवाद खड़ा गया, उनका वह उद्देश्य पूरा होता दिखाई पड़ रहा है।