यह भारत की अर्थव्यवस्था की कमर को तोड़ भी सकता है यदि हमने संचार विस्फोट की मांग को पूरा करने के लिए अपनी घरेलू क्षमता को नहीं बढ़ाया और विदेशों पर ही हमारी निर्भरता बनी रही। जब से संचार क्रांति हुई है तब से हम अपनी संचार जरूरतों को पूरा करने के लिए विदेशों पर ही निर्भर रहे हैं। यह हमारे लिए बहुत ही दुर्भाग्य की बात है।
मोदी टेल्सट्रा ( जो अब वोडाफोन के नाम से जाना जाता है) ने भारत में सबसे पहले मोबाइल सेवा 1 जुलाई, 1994 को कोलकाता से शुरू की थी। उस समय के मुख्यमंत्री ज्योति बसु को भारत मे ंसबसे पहले मोबाइल फोन से बात करने का श्रेय जाता है।
संचार उद्योग के लिए भारत का आयात संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद के अनुसार अगले 6 सालों में बढ़कर 400 अरब डालर का हो जाएगा। भारत में पिछले वित्तीय साल तेल का आयात बिल 168 अरब डालर था। इससे 2020 ईस्वी में होने वाले संचार आइटमों पर होने वाले अनुमानित 400 अरब डालर से तुलना कीजिए। पिछले साल तेल आयात पर खर्च की गई विदेशी मुद्रा कुल आयात बिल का 37 फीसदी थी और कुल आयात बिल था 415 अरब डालर।
यदि वर्तमान ट्रेंड बना रहा तो संचार संबंधित उपकरणों पर खर्च होने वाली विदेशी मुद्रा तेल पर खर्च होने वाली राशि से दुगनी हो जाएगी। इसके कारण व्यापार घाटा बढ़कर 300 अरब डालर हो जाएगा, जो पिछले साल 140 अरब डालर था। पिछले साल विदेशी प्रत्यक्ष निवेश 28 अरब डालर का था। यदि हम अपनी स्थिति बिगड़ते देखना नहीं चाहते हैं, तो हमें 2020 तक 200 अरब डालर के विदेश्ी प्रत्यक्ष निवेश के बारे में सोचना होगा। यदि ऐसा नहीं हो पाया, तो हमारी अर्थव्यवस्था आयात बिल के बोझ के तले दब कर टूट सकती है। और इसमे ंसबसे ज्यादा योगदान संचार व अन्य इलेक्ट्राॅनिक उपकरणों का ही होगा।
देश को उस संकट से बचाने के लिए यह जरूरी है कि हम उन उपकरणों को निर्माण अपने देश में ही करें और उनके आयात पर अपनी निर्भरता हटाएं। हम सिर्फ आयात ही बंद नहीं करें, बल्कि इन उपकरणों के एक उत्पादक देश के रूप में अपने आपको दुनिया भर में स्थापित कर दें। ऐसा करने के क्रम में हमारे देश में लाखों की संख्या में रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे और बेरोजगारी को हम बहुत हद तक कम करने में सफल हो पाएंगे। ज्यादा उत्पादन और बढ़ता रोजगार हमारे देश की विकास दर को और तेज करेगा। 10 फीसदी से ज्यादा की विकास दर हमारे लिए सपना नहीं रह जाएगा।
ऐसा करने के लिए हमें विदेशों का भी सहयोग लेना होगा। हम अपने देश में संचार उपकरणों का उत्पादन कितना बढ़ा पाते हैं, यह इस पर भी निर्भर करेगा कि विदेशी कंपनियां हमारे देश मंे इस सेक्टर मंे निवेश करने में कितनी दिलचस्पी लेती है। क्या वे अपने मूल देश से उत्पादन के बेस को भारत स्थानांतरित करना चाहेंगी?
यूपीए की पिछली सरकार की लापरवाही के कारण भारत ने इन उपकरणों के निर्माण के अवसर बहुत गंवाए हैं और हम अपनी जरूरतों के लिए विदेशों पर निर्भर हो गए हैं। आज विदेशी कंपनियों के लिए भारत एक मुनाफा देने वाला बाजार बनकर रह गया है। (संवाद)
भारत में संचार विस्फोट
यह देश को बना भी सकता है और नष्ट भी कर सकता है
नन्तू बनर्जी - 2014-07-03 11:38
भारत का संचार विस्फोट देश को बना भी सकता है और यह उसकी बर्बादी का कारण भी बन सकता है। यह भारत की विकास दर को दहाई अंकों में ले जा सकता है। यह कठिन हो सकता है, लेकिन असंभव नहीं। इसके कारण भारत दुनिया में अपने आपको एक प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था बना सकता है। इसमें उसे 3 से 5 साल तक लग सकता है।