ए के एंटोनी आमतौर पर शांत रहने वाले नेता हैं। लेकिन उन्होंने अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा कि कांग्रेस के सेकुलरिज्म से लोगों का विश्वास थोड़ा डगमगाने लगा है। उन्होंने इसकी पड़ताल करने की जरूरत भी बताई। उन्होंने कहा कि पार्टी के लिए यह जरूरी है कि वह फिर से लोगों का विश्वास हासिल करे।

ए के एंटोनी को पार्टी ने हार के कारणों की समीक्षा करने का काम सौंप रखा है। उन्हें यह बताने के लिए कहा गया है कि पता करके बताएं कि पार्टी की हार के कौन कौन से कारण रहे हैं और उन कारणों को कैसे दूर किया जा सकता है। श्री एंटोनी खुद एक एक ऐसे नेता हैं, जिस पर पार्टी विश्वास कर सकती है। वह खुद भी एक अल्पसंख्यक समुदाय से आते हैं।

एंटोनी के बयान पर विवाद अभी थमा भी नहीं था कि एक अन्य वरिष्ठ नेता दिग्चिजय सिंह ने भी एक ऐसा बयान दे दिया जो कांग्रेस नेतृत्व के लिए नागवार गुजरने वाला था। उन्होंने कहा कि कांग्रेस हमेशा वैचारिक लड़ाई लड़ने वाली पार्टी रही है, लेकिन कभी कभी ऐसा होता है कि पार्टी के कुछ लोग सुविधावादी राजनीति करने लगते हैं। ऐसा वे सत्ता के मोह में करते हैं और इसके कारण कांग्रेस का नुकसान होने लगता है।

कांग्रेस ने 2014 के लोकसभा चुनाव को सेकुलर बनाम कम्युनल बनाना चाहा था। भारतीय जनता पार्टी भी यही करने की कोशिश कर रही थी, लेकिन वह एक दूसरे तरीके से ऐसा कर रही थी। वह अपने को सेकुलर और अपने विरोधियों को कम्युनल बता रही थी। भारतीय जनता पार्टी अपनी राजनीति में सफल रही, जबकि कांग्रेस विफल रही। कांग्रेस के लोग अब अपनी अपनी बातो को रखने के लिए मंच की तलाश कर रहे हैं। इसलिए इस समय या तो कांग्रेस का सत्र बुलाया जाना चाहिए अन्यथा उसका ंिचंतन शिविर लगाया जाना चाहिए।

अनेक कांग्रेसियों का मानना है कि इस समय कांग्रेस दिशाहीन हो गई है। इसने एक के बाद एक हार का सामना किया है और लोकसभा चुनाव में तो इसकी सबसे ज्यादा शर्मनाक पराजय हुई है। कुछ महीने के बाद कुछ राज्यों में विधानसभा के चुनाव भी होने वाले हैं। इनमें से दो राज्य हैं- महाराष्ट्र और हरियाणा। इन दोनों राज्यों में कांग्रेस की हालत बहुत ही पतली है। वह इन राज्यों में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए किसी चमत्कार की उम्मीद लगाए हुए है।

पार्टी कोई पहली बार इस तरह की समस्या का सामना नहीं कर रही है। आजादी के बाद अनेक ऐसे मौके आए, जब पार्टी आशा और निराशा के बीच झूलती दिखाई पड़ रही थी, पर इस बार पार्टी ने जिस तरह की हार का स्वाद चखा है, उसका अतीत में कोई उदाहरण नहीं मिलता है। उसे मात्र 44 लोकसभा की सीटें मिली हैं। इसके कारण कांग्रेस जन आज इतने मायूस हैं, जितना वह पहले कभी नहीं हुए थे।

अब कांग्रेसियों को अहसास हो गया है कि नेहरू-गांधी परिवार उन्हें वोट नहीं दिलवा सकता। अब वोट पाने के लिए उन्हें दूसरा विकल्प ढूंढ़ना होगा। नेहरू गांधी का वंश अब वोट नहीं दिलवा पा रहा है, लेकिन अब एक बार प्रियंका की ओर देखा जा रहा है और नारा लगाया जा रहा है कि प्रियंका लाओ, कांग्रेस बचाओ।

पार्टी को अब इस बात का भी अहसास हो गया है कि उसके सामने आज जो चुनौती है, उसका सामना राहुल गांधी के नेतृत्व में नहीं किया जा सकता। राहुल पार्टी का नेतृत्व करने में विफल साबित हुए हैं। दिग्विजय सिंह ने राहुल गांधी के नेतृत्व से संबंधित बहस को एक नई दिशा दे दी है। उन्होंने कह डाला है कि राहुल गांधी में शासन करने वाला व्यक्तित्व ही नहीं है। यदि ऐसी बात है तो यह पूछा जाना चाहिए कि राहुल राजनीति में रहकर क्या कर रहे हैं। (संवाद)