रेल किराये और माल भाड़े में भारी वृद्धि तो पहले ही हो चुकी थी। महंगाई का डोज पाने के साथ लोग यह सोच रहे थे कि बजट में कुछ ऐसी घोषणाएं होगी, जो उनकी रेल यात्राओं को ज्यादा सुरक्षित कर पाएंगी और वे यात्रा के दौरान सुकून पा सकेगे। सच कहा जाय, तो रेल यात्रियों को असुविधा का सामना यात्रा के पहले से ही शुरू हो जाता है और उसका कारण होता है टिकटों की कालाबाजारी। पहले तो गर्मियों की छुट्टियों, त्यौहारों और शादी विवाह के मौसम में लोग टिकट पाने में परेशानी का सामना करते थे। अब तो यह बारहो महीनों की चीज बन गई है। इसलिए लोगों की पहली अपेक्षा सरकार से थी िकवह टिकटों की कालाबाजारी को रोकें।

काला बाजारी को रोकने के लिए प्रत्येक छह महीने परकुछ न कुछ घोषणाएं होी हैं,लेकिन फिर भी समस्या का समाधान नहीं निकलता। काला बाजारी का रैकेट देश व्यापी हो गया है और उसमें शामिल लोगों का राष्ट्रीय नेटवर्क बन गया है, जिसमें रेल के अंदर के लोग भी शामिल पाए गए हैं। उा नेटवर्क को तोड़ना और ऐसा पुख्ता इंतजाम करना कि टिकट की कालाबाजारी, जिसके कारण लोगों को कभी कभी टिकट की कीमत से तीन गुना और चार गुना भी खर्च करने पड़ते हों, समाप्त करना रेल के सामने एक बड़ी चुनौती है। इस चुनौती का गंभरतापूर्वक उल्लेख भी अपने बजट भाषण मे ंरेलमंत्री ने नहीं किया है। रेल बजट भाषण का यह एक बहुत ही निराशाजनक पहलू था।

इस रेल बजट में शायद सरकार के पास करने के लिए कुछ खास नहीं था। यह सिर्फ 8 महीने के लिए ही पेश किया गया है, क्योंकि पिछली सरकार ने पहले 4 महीनों का लेखानुदान पहले ही पेश कर दिया है। यदि हम बुलेट ट्रेन और पीपीपी से सबधित घोषणाओं को हटा दें, तो यह इस वित्तीय साल का दूसरा रेलवे लेखानुदान कहा जा सकता है। बुलेट ट्रेन एक सपना है और उसे संभव होने में समय लगेगा। जिस तरह सरकार के लिए यात्री किराया और मालभाड़ा बढाना उसकी फौरी जरूरत थी, उसी तरह रेलयात्रियों की भी कुछ फौरी जरूरत थी, जिसे इस रेल बजट में महत्व नहीं दिया गया है।

रेलमंत्री ने कहा है कि बुलेट ट्रेन के लिए 60 हजार करोड़ रुपये की जरूरत पड़ेगी, पर उतना पैसा कहां से आएगा, यह नहीं बताया गया है। गौरतलब है कि रेल का सालाना बजट ही 1 लाख 60 हजार रूपये का होता है, तो फिर 60 हजार करोड़ रुपये आएंगे कहां से़? यदि इतने सारे पैसों का इंतजाम होता भी है, तो क्या यह बुलेट ट्रेन जैसी परियोजना पर ही खर्च की जाय, या रेलवे के पास इससे भी बड़ी परियोजना है, जिसे इस बुलेट ट्रेन के ऊपर प्राथमिकता मिलनी चाहिए?

एक परियोजना को मालवाही गलियारा (फ्रेट कारिडोर) बनाने का है। माल की ढुलाई रेलवे के लिए ही नहीं, बल्कि देश के विकास के लिए भी बहुत मायने रखता है, लेकिन इस क्षेत्र में रेल लगातार पिछड़ती जा रही है। 1950 में कुछ माल ढुलाई का 90 फीसदी रेल द्वारा ही संपन्न होता था, जो अब घटकर 31 फीसदी हो गया है। रेलवे की अपनी जो आमदनी होती है, उसमे रेल भाड़े का योगदान 70 फीसदी होता है। यात्रियों के लिए गाड़ियां चलाने की माग बहुत तेजी से बढ रही है और माल ढुलाई की कीमत पर उस मांग को पूरा करने का प्रचलन हो गया है। जाहिर है, रेलवे अपनी आमदनी का एक स्रोत ही कमजोर नहीं कर रही है, बल्कि देश के विकास में अपने योगदान को भी कम रही है। मालवाही गलियारा बनाने का निर्णय इसीलिए लिया गया था, ताकि रेल ज्यादा से ज्यादा माल की ढुलाई कर सके और वर्तमान रेल पटरियों को यात्रियों की गाड़िया चलाने के लिए मालगाड़ियों से मुक्त किया जाय। लेकिन लगता है कि सरकार बुलेट ट्रेन को मालवाही गलियारे से ज्यादा महत्व दे रही है।

बुलेट ट्रेन भी जरूरी है। हमें रफ्तार चाहिए। लेकिन जब संसाधन सीमित हो तो हमें प्राथमिकता तय करनी होती है। उम्मीद है कि जब रेल मंत्री अगला बजट पेश करेंगे, तो वे अपनी प्राथमिकताओं में बदलाव करेंगे। फ्रेट कोरिडोर सिर्फ रेलवे के लिए और माल ढुलाई के लिए ही जरूरी नहीं है, बल्कि हमारी ऊर्जा संरक्षण के प्रयासों के भी हक में है। यदि रेल ज्यादा माल ढोती है, तो ट्रकों की आवश्यकता कम हो जाएगी और उनके द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले डीजल की बचत होगी। ट्रेन से माल ढुलाई सस्ती पडती है और दि ऊर्जा की खपत की बात करें, तो समान माल ढोने मे ट्रक से जितनी ऊर्जा खर्च होती है, उसका दसवां भाग भी रेल द्वारा ढोये गए माल से नहीं होता है।

रेल के नेटवर्क का और भी विस्तार किए जाने की जरूरत है। देश का बहुत बड़ा हिस्सा इसकी पहुंच से बाहर है। उन हिस्से का रेल के दायरे में लाने से वहां के लोगों का तो कल्याण होगा ही, रेलवे का भी अपना कोई कम भला नहीं होगा। और ऊर्जा की भी बचत होगी। सच कहा जाय, तो भारत में ऊर्जा संरक्षण और बचत को बढ़ावा देने के लिए रेलवे के विस्तार के अलावा और कोई विकल्प है ही नहीं।

यह नई सरकार का पहला बजट है। सरकार गठन के 50 दिन भी नहीं हुए हैं। जाहिर है रेल मंत्री को ज्यादा समय नहीं मिला है और यह नौकरशाहों द्वारा बनाया गया बजट है, जिसमें राजनैतिक दिशा का अभाव दिखता है। हमें उम्मीद करनी चाहिए कि अगला रेल बजट, जो सही मायने मे रेल बजट होगा, रेलवे के विकास को सही दिशा और विस्तार देने वाला साबित होगा। सरकार के मंत्री खुद कह रहे हैं कि अभी तो वह यूपीए सरकार के बोझ को ढो रही है। अगले बजट तक वह इस बोझ से जरूर मुक्त हो जाएंगे और एक दूरगामी सोच वाला रेल बजट ला पाएंगे, जिसमें लोगों की फौरी समस्या का निदान भी हो। (संवाद)