राज्यपाल की भूमिकाओं में सुधार के लक्षण नहीं दिखाई पड़ रहे और दिनों दिन स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। कांग्रेस के पास अवसर था कि वह सरकारिया आयोग की सिफारिशों के अनुकूल काम करती और एक परंपरा बन जाती कि राज्यपाल वैसे व्यक्ति बनें, जो राजनीति से बाहर के हों। पर कांग्रेस ने वैसा कभी नहीं किया। पहले तो राज्यपाल की नियुक्ति के समय प्रदेश के मुख्यमंत्री से सलाह मशविरा किया जाता था, पर अब वैसा भी नहीं किया जाता। निर्णय लेने के बाद केन्द्र सरकार मुख्यमंत्री को यह बता देती है कि कौन उनके प्रदेश का राज्यपाल बनने वाला है।
सरकारिया आयोग की एक सिफारिश यह भी थी कि राज्यपाल की नियुक्ति के पहले केन्द्र सरकार को लोकसभा के स्पीकर और उपराष्ट्रपति से भी सलाह मशविरा करना चाहिए।
भारत एक बहुदलीय व्यवस्था वाला लोकतंत्र है। यहां केन्द्र और राज्यों में अलग अलग पार्टियों की सरकारें होना आम बात है। वैसी स्थिति में राज्यपाल की भूमिका काफी संवेदनशील हो जाती है। अनेक बार राज्यों में राजनैतिक अस्थिरता का दौर शुरू हो जाता है और तब राज्यपाल का निर्णय बहुत ही मायने रखता है। वैसी हालत में ही केन्द्र अपनी पसंद और नापसंद की राजनीति राज्यपाल की सहायता से करने लगता है। इस समस्या का दूर करने के लिए ही सरकारिया आयोग का गठन हुआ था और आयोग ने अनेक सिफारिशें की थीं।
कांग्रेस ने सरकारिया आयोग की सिफारिशों के तहत राज्यपालों की नियुक्ति करने का मौका तो गंवाया ही, भारतीय जनता पार्टी की नरेन्द्र मोदी सरकार ने भी यह मौका गंवा दिया। उन्होंने भी वही किया, जो कांग्रेस कर रही थी। नरेन्द्र मोदी की सरकार ने 5 प्रदेशों के राज्यपालों की हाल ही में नियुक्ति की और वे सभी के सभी भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस से जुड़े रहे हैं।
वे पांचों उम्रदराज भी हैं। सबसे कम उम्र वाले राज्यपाल 79 साल के हैं, तो सबसे ज्यादा उम्र वाले 87 साल के हैं। उनमे से कुछ ऐसे हैं, जिन्हें लोकसभा में टिकट दिया ही नहीं गया और कुछ ऐसे भी हैं, जो चुनाव हार गए।
केशरीनाथ त्रिपाठी को पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनाया गया है। वे उत्तर प्रदेश के हैं और चार बार विधायक रह चुके हैं। वे तीन बार विधानसभा के स्पीकर भी रह चुके हैं। पहली बार वे 1977 में विधायक बने थे और तब वे प्रदेश के वित्तमंत्री भी बन गए थे। पिछले लोकसभा चुनाव में वे इलाहाबाद से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिल सका। उसके कारण वे खासे नाराज भी हो गए थे। अब उन्हें राज्यपाल बना दिया गया है।
राम नाईक भी 80 साल के हैं। वे केन्द्र में पेट्रोलियम मंत्री भी रह चुके हैं। 2009 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद वे पार्टी के हाशिए पर चले गए थे। वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बहुत करीबी समझे जाते हैं। उन्हें देश की सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश का राज्यपाल बना दिया गया है। वे इसके पहले दो बार विधायक और 4 बार सांसद रह चुके हैं।
86 साल के बलरामजी दास टंडन छत्तीसगढ़ के राज्यपाल बनाए गए हैं, तो ओमप्रकाश कोहली गुजरात के राज्यपाल बने हैं। पीबी आचार्य की उम्र 83 साल है और वे नगालैंड के राज्यपाल बने हैं। (संवाद)
भारत
केन्द्र राज्य संबंधों के लिए चुनौती भरा समय
नवनियुक्त पांचों राज्यपाल आरएसएस के हैं
हरिहर स्वरूप - 2014-07-21 11:05
बहुत साल पहले सरकारिया आयोग ने केन्द्र राज्य संबंधों को बेहतर बनाने के लिए अनेक सिफारिशें की थीे। उनमें से कुछ सिफारिशें राज्यपालों की नियुक्ति को लेकर भी थीं। आयोग ने कहा था कि राज्यपाल ऐसे व्यक्ति होने चाहिएं, जिन्होंने समाज और सार्वजनिक जीवन में अपना खास स्थान बना लिया हो और वह किसी राजनैतिक दल से जुड़ा हुआ नहीं हो। लेकिन उस सिफारिश का ठीक उलटा हो रहा है। राज्यपालों के निर्णय अनेक बार विवादपूर्ण रहे हैं। खासकर अस्थिरता की स्थिति में उन पर पक्षपात पूर्ण निर्णय लेने का आरोप लगता रहा है और अधिकांश आरोप सही ही होते हैं। केन्द्र की सरकार राज्यपाल का इस्तेमाल अपने हितों को साधने में करती है और इसके कारण ऐसे लोगों को राज्यपाल बनाया जाता है, जो केन्द्र सरकार में बैठे लोगों से राजनैतिक या किसी अन्य तरीके से जुड़े होते हैं।