कांग्रेस को बाहर से ही नहीं, बल्कि अंदर से भी समस्या का सामना करना पड़ रहा है। महाराष्ट्र, असम और हरियाणा में विद्रोह की स्थिति पैदा हो गई है और पार्टी जन वहां बदलाव की मांग कर रहे हैं। असंतुष्टों के निशाने पर इन तीनों राज्यो की सरकारों के मुख्यमंत्री हैं। महाराष्ट्र और हरियाणा में कुछ ही महीनों में विधानसभा के चुनाव होने हैं। दिल्ली में भी कांग्रेस का बुरा हाल है। यहां की विधानसभा स्थगित है। उसमें कांग्रेस के 8 विधायक हैं। इस बात की चर्चा बहुत जोरों पर है कि कांग्रेस के 6 विधायक पार्टी तोड़ सकते हैं और भाजपा से मिलकर केन्द्र शासित दिल्ली प्रदेश में सरकार बना सकते हैं। लोकसभा चुनाव के बाद देश के सभी प्रदेशों में पार्टी जनों का असंतोष उमड़ रहा है। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने असम, हरियाणा और महाराष्ट्र के वर्तमान मुख्यमंत्रियों को अपने पद पर बनाए रखने का निर्णय किया है। इससे उन तीनों राज्यों में कांग्रेस का संकट और भी बढ़ गया है।
महाराष्ट्र के एक शक्तिशाली मंत्री नारायण राणे ने हाल ही में अपने मंत्रिपद से इस्तीफा दे दिया है। वे जब से कांग्रेस में आए हैं, मुख्यमंत्री बनने के लिए लगातार कोशिश करते रहे हैं। उन्होंने अपने मंत्रिपद से कोई पहली बार इस्तीफा नहीं दिया है। इसके पहले भी वे एक बार मुख्यमंत्री पद का दावा करते हुए इस्तीफा दे चुके हैं। उनका दावा है कि जब वे कांग्रेस में शामिल हो रहे थे, तो उस समय उनसे वायदा किया गया था कि उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाएगा, लेकिन उनके साथ किया गया वह वायदा अभी भी पूरा नहीं हो सका है। गौरतलब है कि श्री राणे 2005 में शिवसेना छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए थे।
उनका कहना है कि वर्तमान मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चैहान सभी लोगों को अपने साथ लेकर चलने में असमर्थ हैं। पिछले 15 सालों से वहां कांग्रेस- एनसीपी गठबंधन की सरकार रही है और एक बार फिर उसे सत्ता में आना संभव नहीं है। राणे यह भी कहते हैं कि गठबंधन की हार में वे भागीदार नहीं बनना चाहते है और इसलिए ही उन्होंने मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया।
असम में विद्रोही मंत्री हिमंत बिस्वाल सरमा मुख्यमंत्री तरुण गोगोई के खिलाफ उभरे असंतोष का नेतृत्व कर रहे हैं। उन्होंने भी अपने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है और घोषणा की है कि वे दुबारा मंत्री का पद स्वीकार नहीं करेंगे। उन्होंने 50 विधायकों के समर्थन का दावा किया है, जिनमें 30 तो उनके कट्टर समर्थक हैं। दूसरी तरफ 13 मंत्रियों ने कांग्रेस आलाकमान को पत्र लिखकर आग्रह किया है कि वह हिमंत व अन्य असंतुष्टों के खिलाफ अनुशासन की कार्रवाई करें। कांग्रेस आलाकमान कुछ समय तक उधेड़बुन में पड़ी रही और अंत में उसने गोगाई को मुख्यमंत्री बनाए रखने का फैसला किया।
हरियाणा में विद्रोही कांग्रेसी नेता वीरेन्द्र सिंह मुख्यमंत्री हुड्डा के खिलाफ अपनी छुरी तेज कर रहे हैं। कुमारी सैलजा भी उनके खिलाफ है। वीरेन्द्र सिंह ने तो घोषणा की है कि वे हुडा के नेतृत्व में चुनाव नहीं लड़ेंगे, क्योंकि हुडा एक दागी मुख्यमंत्री हैं। पर कांग्रेस आलाकमान पूरी तरह हरियाणा के मुख्यमंत्री हुडा के साथ है।
हार के दो महीने के बाद भी कांग्रेस के अंदर सुधार के कोई लक्षण नहीं दिखाई पड़ रहे हैं। (संवाद)
भारत
साथी दल छोड़ रहे हैं कांग्रेस को
डूबती नाव में कोई रहना नहीं चाहता
कल्याणी शंकर - 2014-07-25 11:22
यूपीए के सहयोगी दल अब कांग्रेस को छोड़ते जा रहे हैं। कांग्रेस आज एक डूबती हुई नाव है, जिसकी सवारी करना अब कोई नहीं चाहता। जो उसके साथ पहले से थे, अब वे भी उसे छोड़ रहे हैं, तांिक वे ऐसी जगह जा सकें, जहां उन्हें ज्यादा माल मिले। उसे छोड़ने वालों में अब नेशनल कान्फ्रेंस भी शामिल हो गई है। कुछ दूसरी पार्टियां भी पीछे नहीं रहने वाली हैं। कांग्रेस अब लगातार अलग थलग पड़ती जा रही है। उसके साथ अब एनसीपी, राष्ट्रीय जनता दल और मुस्लिम लीग जैसे ही इक्के दुक्के दल रह गए हैं।