उनकी मांग थी कि मतदाता पहचान पत्र ही मतदान देते समय मतदाताओं के पहचान का एक मात्र पहचान पत्र हो, ताकि चुनावी धांधली को रोका जा सके। उस समय वाम मोर्चे पर व्यापक चुनावी धांधली के आरोप लगा करते थे। कहा जाता था कि उसके कार्यकत्र्ता विरोधी मतदाताओं के वोट खुद डाल दिया करते थे और अनेक लोग मतदान करने से वंचित रह जाया करते थे। मतदाता पहचान पत्र बनाने का काम उस समय देश के अनेक हिस्सों में चल रहा था। ममता बनर्जी के नेतृत्व में युवक कांग्रेस मतदाता पहचान की व्यवस्था को लागू करने की मांग कर रही थी। उस समय वह कांग्रेस में ही थी। तृणमूल कांग्रेस का गठन तो उन्होंने उसके 5 साल बाद 1998 में किया था।

पिछले 21 जुलाई को ममता बनर्जी ने शहीद दिवस के अपने भाषण में तीन महत्वपूर्ण संकेत दिए। पहला संकेत तो उन्होंने यह दिया कि पश्चिम बंगाल में अब कांग्रेस और वाम मोर्चा डूबते हुए सूरज हैं। उनकी ताकत समाप्त हो रही है और तृणमूल कांग्रेस को आने वाले दिनों मंे असली चुनौती भारतीय जनता पार्टी से मिलनी है।

अपने भाषणों मंे पहले ममता वाम मोर्चे को ही अपना मुख्य निशाना बनाती थीं, पर उन्होंने इस बार उन्हें अपना मुख्य निशाना नहीं बनाया। उन्होंने अपना मुख्य निशाना बनाया भारतीय जनता पार्टी की पश्चिम बंगाल ईकाई को। उन्होंने केन्द्र सरकार अथवा नरेन्द्र मोदी को भी बहुत बुरा भला नहीं कहा। रेल किराया बढ़ाने और बढ़ती महंगाई के लिए केन्द्र सरकार को जरूर कोसा, लेकिन वैसा उन्होनंे सिर्फ खानापूर्ति के लिए ही किया।

ममता बनर्जी के भाषणों से साफ लग रहा था कि वह भारतीय जनता पार्टी को तो अपना मुख्य प्रतिद्वंद्वी मानती है और उसके खिलाफ किसी तरह की बात करने मे ंउन्हें कोई दिक्क्त नहीं है, लेकिन वे नरेन्द्र मोदी और नरेन्द्र मोदी की केन्द्र सरकार के खिलाफ आग उगलना नहीं चाहती, क्योंकि प्रदेश की वित्तीय समस्याओ के हल के लिए उन्हें नरेन्द्र मोदी और उनकी केन्द्र सरकार के सहयोग की ही जरूरत पड़ेगी।

उस दिन तीन कांग्रेसी और एक वाम मोर्चा के विधायक ने तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने की घोषणा भी कर डाली। अनेक राजनैतिक विश्लेषक कह रहे हैं कि ममता की लोकप्रियत अब ढलान पर है, लेकिन जिस तरह से इन चार विधायकों ने तृणमूल की सदस्या हासिल की, उससे साथ जाहिर होता है कि अभी भी वे जीत की कुंजी ममता बनर्जी को ही समझते हैं।

इन विधायकों को पार्टी में मिलाने के साथ साथ ही ममता बनर्जी ने अपने भाषण में वाम रुझान वाले लोगों को जो उनकी पार्टी में शामिल होने की अपील की, वह काफी महत्वपूर्ण है। इससे साफ पता चलता है कि ममता बनर्जी अपनी वैचारिक स्थिति स्पष्ट कर रही है। देश की राजनीति में वे वामपंथी रुझान वाली नेता के रूप में अपने आपको स्थापित करना चाहती हैं।

कांग्रेस भी एक वामपंथी रुझान वाली पार्टी ही रही है। नेहरू महालनोबिस माॅडल के तहत उस मिश्रित अर्थव्यवस्था में उसका विश्वास था, जिसमें सार्वजनिक सेक्टर की भूमिका ज्यादा महत्वपूर्ण होती है। पर 1991 में नरसिंह राव ने मनमोहन सिंह को वित्त मंत्री बना उस माॅडल को बदल दिया।

ममता बनर्जी को शायद लगता है कि कांग्रेस के पतन के लिए उसमें आया यह वैचारिक बदलाव ही जिम्मेदार है। इसलिए वह फिर कांग्रेस के मूल की ओर जाना चाहती है। यही कारण है कि वह वामपंथी रूझान वाले लोगों को अपनी पार्टी में लाना चाह रही हैं। (संवाद)