उसके बाद हुए लोकसभा चुनाव में तो कांग्रेस की लुटिया ही डूब गई। उसे ऐसी हार का सामना करना पड़ा, जिसके बारे में उसके कट्टर विरोधियों तक ने भी नहीं सोचा था। उसे 543 में मात्र 44 सीटें ही मिलीं। अनेक राज्यों में तो उसके खाते भी नहीं खुले। किसी भी राज्य में उसे दहाई संख्या में सीटें नहीं मिली। चुनाव अभियान के समय नरेन्द्र मोदी देश को कांग्रेस मुंकत बनाने की लोगों से अपील कर रहे थे। लोकसभा चुनाव परिणामों के बाद तो यही लग रहा था कि वास्तव में भारत कांग्रेस मुक्ति की ओर बढ़ रहा है।

लेकिन दो महीने कें अंदर वह हुबा, जिसकी उम्मीद किसी ने नहीं की थी। उत्तराखंड में विधानसभा के तीन उपचुनाव हो रहे थे। वहां भी कांग्रेस की भारी हार लोकसभा चुनाव के दौरान हुई थी। 5 लोकसभा क्षेत्र वहां हैं और उन पाचों में कांग्रेस के उम्मीदवार भारी मतों से हारे थे। यही कारण है कि कांग्रेस तीन सीटों पर हो रहे उपचुनाव मे बहुत अच्छा करने की सोच नहीं रही थी। कांग्रेस क्या, खुद भारतीय जनता पार्टी को भी ऐसा नहीं लग रहा था कि उसे तीनों सीटों पर हार का सामना करना पड़ेगा।

आखिर वहां ऐसा क्यों हुआ? इसके बारे में कोई भी दावे के साथ कुछ बता नहीं सकता, हालांकि लोग इसके बारे में तरह तरह के विश्लेषण पेश कर रहे हैं। एक कारण सेवानिवृत सैनिको ंद्वारा एक रैंक एक पेंशन की सरकार की नीति के खिलाफ विरोध है। जाति की राजनीति को भी एक कारण बताया जा रहा है और कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री हरीश रावत की जाति के लोगों की संख्या यहां कुल आबादी का 60 प्रतिशत है और उन लोगों ने अपनी जाति के मुख्यमंत्री को बनाए रखने में दिलचस्पी दिखाई। एक कारण भारतीय जनता पार्टी के अंदरूनी मतभेद को भी बताया जा रहा है।

सच कहा जाय, तो भारत के लोगों के सामूहिक दिमाग के बारे में कुछ भी अंदाज नहीं लगाया जा सकता है। यहां का चुनाव किसी भी नतीजे को प्राप्त कर सकात है। कांग्रेस की जीत उत्तराखंड में छोटी है, लेकिन यह काफी महत्वपूर्ण है। फिर भी कांग्रेस को इस पर उसे बहुत इतराना नहीं चाहिए। यहां की जीत उसके लिए संतोष का कारण हो सकता है, लेकिन इसे वह देश भर में अपनेी वापसी के रूप में नहीं ले सकती।। इसका कारण यह है कि कांग्रेस के सामने आगामी विधानसभाओं के आम चुनाव मे ंहार का खतरा टला नहीं है। महाराष्ट्र और हरियाणा में उसकी सरकारें हैं। उन दोनों राज्यों में उसके सामने हार नजर आ रही है। झारखंड में भी वह वहां की मिली जुली सरकार में शामिल है। उस राज्य मंे भी उसकी स्थिति अच्छी नहीं है। लोकसभा चुनाव में झारखंड में कांग्रेस के सारे उम्मीदवार चुनाव हार गए थे, पर उसके सहयोगी दल को दो स्थानों में जीत मिली थी। उसी तरह महाराष्ट्र में भी उसके सहयोगी दल की स्थिति उससे अच्छी थी।

लोकसभा चुनाव के बाद अनेक लोग कह रहे थे कि कांग्रेस का अंत नजदीक आ गया है और जीत उससे लगातार दूर होती जाएगी। उत्तराखंड में उपचुनाव के नतीजों ने साबित कर दिया है कि इस तरह की भविष्यवाणी में दम नहीं है। (संवाद)