कुुछ लोग ऐसे हैं जो भारत की पड़ोसी नीति के कटु आलोचक रहे हैं। उनका कहना है कि हमारी पड़ोसी नीति में सही दृष्टि का अभाव है। चीन हमारे पड़ोसी देशों के साथ हमसे बेहतर संबंध बना रहा है। इसके कारण हमें चिंता होनी चाहिए। नरेन्द्र मोदी ने इस कमी को पूरा करने की कोशिश शुरू कर दी है। पिछले 10 साल के यूपीए सरकार ने पड़ोसी देशों के साथ बेहतर संबंध बनाने के लिए जरूरी प्रयास किए ही नहीं। मनमोहन सिंह खुद पड़ोसी देशों को छोड़कर अमेरिका व अन्य पश्चिमी देशों के साथ बेहतर संबंध बनाने के लिए लगातार सक्रिय रहे। अब नई सरकार इस पर नई दृष्टि से काम कर रही है और यूपीए सरकार के समय जो गलतियां हुईं, उन्हें ठीक करने की कोशिश कर रही है।
लगता है कि नरेन्द्र मोदी सही कदम सही तरीके से उठा रहे हैं। भौगोलिक नजरिए से देखा जाय, तो भारत दक्षेस देशों के मध्य में स्थित है। यह छोटे छोटे देशों से घिरा हुआ है। दक्षेस के देश इस समय तेज गति से विकास कर रहे हैं। उनके विकास की दर 8 फीसदी तक पहुंच जाती है। उनका आपसी व्यापार पिछले 5 सालों में दुगना हो गया है। पावर सेक्टर की बात करें, तो भारत ने बांग्लादेश, भूटान और नेपाल के साथ ग्रिड का निर्माण कर लिया है। साफ्टा के तहत कुल व्यापार 85 अरब डालर तक बढ़ाया जा सकता है।
नरेन्द्र मोदी ने अच्छी शुरूआत की है। वे एक प्रान्तीय नेता रहे हैं। इसलिए उनके प्रधानमंत्री बनने के पहले यह पता नहीं चल पा रहा था कि विदेश नीति की उनकी प्राथमिकताएं क्या होंगी और उसके बारे में वे कैसा सोचते हैं। लेकिन उन्होंने शुरूआत बहुत अच्छी की है। अपने शपथ ग्रहण में अपने पड़ोसी देशों को बुलाकर उन्होंने विदेश नीति के मोर्चे पर एक जबर्दस्त काम किया। इसके लिए उन्हें बहुत शाबासी भी मिली। तमिलनाडु की सरकार और वहां की पार्टियां श्रीलंका के राष्ट्रपति को भारत आमंत्रित करने का विरोध किया था, लेकिन मोदी ने उनके विरोध की परवाह नहीं की। सरकार के प्रमुखों के साथ नरेन्द्र मोदी की मुलाकात बहुत ही अच्छी रही। सरकार गठन के साथ ही पड़ोसी देशों की सरकारों से संवाद भारत की मोदी सरकार के लिए बेहतर राजनय था।
मोदी सरकार अपने पड़ोसी देशों को जानने की कोशिश कर रही है और इसके लिए वहां की यात्राएं भी हो रही हैं। श्री मोदी ने खुद पड़ोसी देश की यात्रा की। उन्होंने भूटान के लिए भारत का नारा दिया। भूटान की यात्रा में भारत ने यह भी दिखाने की कोशिश की कि वह इस क्षेत्र में बहुत महत्व रखता है।
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की पहली यात्रा बांग्लादेश की हुई। चुनाव अभियान के दौरान बांग्लादेश में नरेन्द्र मोदी को लेकर अनेक प्रकार के संदेह पैदा हुए थे, क्योंकि उन्होंने कहा था कि भारत बांगलादेश के शरणार्थियों को वहां वापस भेजेगा। विदेश मंत्री स्वराज ने कोशिश की कि बांग्लादेश की गलतफहमी को दूर की जाय। भारत और बांग्लादेश के परस्पर रिश्तों को बेहतर करने के लिए जरूरी है कि तीस्ता पानी के बंटवारे को जल्द से अपने अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचाया जाय। दोनो देशों के बीच साझा इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण की भी जरूरत है।
सुषमा स्वराज ने पिछले सप्ताह नेपाल की भी यात्रा की। उनकी यह यात्रा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यात्रा की भूमिका तैयार करने के लिए हुई थी। नेपाल और भारत के बीच अनेक मुद्दे हैं, जिनपर सहमति होनी चाहिए और जिन पर काम आगे बढ़ना चाहिए। स्वराज आने वाले दिनों में म्यान्मार भी जाने वाली हैं।
भारत की पड़ोसी नीति घरेलू राजनीति की भी शिकार रही है। गठबंधन की राजनीति ने विदेशों से संबंध बेहतर करने में बाधा पहुंचाई है, लेकिन मोदी की सरकार बहुमत वाली सरकार है। उम्मीद है यह सरकार उन बाधाओं को दूर करेगी। (संवाद)
भारत
एक नई पड़ोसी विदेश नीति का निर्माण जरूरी
मोदी सरकार के सामने एक नई चुनौती
कल्याणी शंकर - 2014-08-01 11:14
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पिछले दो महीने से एक व्यावहारिक पड़ोसी नीति के निर्माण मंे लगे हुए हैं। पर सवाल उठता है कि क्या वे इसे पूरा कर पाएंगे और उम्मीदों पर खरे उतर पाएंगे? अभी कुछ भी कहना मुश्किल है, क्योंकि नीति निर्माण के साथ साथ ही उस पर अमल भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है। इस समय तो विदेश मंत्रालय इस काम में पूरी तन्मयता के साथ लगा हुआ है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज खुद पड़ोसी देशों की सरकारों से संपर्क कर रही हैं और उन्हें मोदी सरकार के इरादों से अवगत करा रही हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने खुद भी शपथ ग्रहण के बाद सबसे पहले भूटान की यात्रा की। उसके बाद अगले सप्ताह वे नेपाल की यात्रा पर जा रहे हैं।